Friday, March 29, 2024

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casteism

मनुस्मृति और जाति प्रथा! सत्य क्या है?

मनुस्मृति उस काल की है जब जन्मना जाति व्यवस्था के विचार का भी कोई अस्तित्व नहीं था. अत: मनुस्मृति जन्मना समाज व्यवस्था का कहीं भी समर्थन नहीं करती.

Caste on wheels

Showing the caste names opening on the wheels and investing wholeheartedly of to which caste one is brought into the world is such backward and in reverse and absolutely not dynamic or forward looking.

जातिगत आधार पर कुख्यात अपराधी विकास दुबे की पैरवी करने वाले लोगों को कुछ तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए

आप जिसे अपना ब्राह्मण भाई समझ कर शेर बता रहे हैं या उसके अपराधी बनने के पीछे सिस्टम को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, आपके उसी शेर विकास दुबे ने जितनी हत्याएं अब तक की है उनमें से 80% ब्राह्मण ही हैं।

Sonam Kapoor, Karma and Caste: How left-liberal ecosystem normalizes casteism

What would a upper-caste left-liberal do after a warm lunch on quiet Sunday?

अतार्किक होते हुए भी क्यों प्रचलित है जातिवाद

इस समाज को यदि जातिवाद के जाल से निकलना है तो, इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य मे पढ़ाना होगा, सभी जन मानस को समान समझना होगा और पुत्र मोह को त्यागना होगा, तभी हम एक सभ्य समाज कि रचना कर सकते है जिसकी कल्पना हमारे पूर्वजों ने की थी।

“I don’t believe in caste”

Caste- the original phrase carries as much weight as claiming to disbelieve in capitalism. The question of belief does not arise at all. As the duality of rich and poor exists, so does caste. And it will stay.

Sir Jadeja and his sword

Neither Ravindra Jadeja’s identification to a caste, nor his Rajputana sword wave is an endorsement of casteism.

अम्बेडकरवादियों का सच

बाबासाहेब का यथार्थवाद वर्तमान समय में किसी भी राजनीतिक दल के खांचे फिट नहीं बैठता। आंबेदकरवाद का पुर्ण अनुकरण किसी दल या नेता के बस की बात नहीं हैं।

पहले इंसान बन जा

माना की जातीय परंपरा एक भाग हैं भारतीय समाज काI परन्तु ये जातीय परंपरा कम और अंतरजातीय संघर्ष ज्यादा प्रतीत होता हैI भारत में लोग जात के नाम पर भीड़ जाते है, मार दिए जाते हैंI

सामाजिक भेदभाव: कारण और निवारण

भारत में व्याप्त सामाजिक असामानता केवल एक वर्ग विशेष के साथ जिसे कि दलित कहा जाता है के साथ ही व्यापक रूप से प्रभावी है परंतु आर्थिक असमानता को केवल दलितों में ही व्याप्त नहीं माना जा सकता।

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