Friday, April 19, 2024
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नए भितरघाती- ट्रोजन राइट विंग (TRW)

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यह लेख एक अपेक्षाकृत नयी समस्या पर प्रकाश डालने के लिए लिखा गया है जो हाल ही में सोशल मीडिया स्पेस में विराट रूप ले रही है। हम इस लेख के आरम्भ एक केस स्टडी पर चर्चा के साथ करेंगे:

बैंगलोर मॉडल और दो ट्विटर रुझान 

कुछ राज्यों के चुनावों और आम चुनाव-2019 के शुरुआती चरणों के दौरान एक ख़ास सोशल मीडिया अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान के कुछ ख़ास लक्षण थे: पहला, इस अभियान का लक्ष्य युवा शहरी भाजपा मतदाता को भ्रमित करना था। इस रणनीति के तहत शहरी हिंदू और प्रतिबद्ध भाजपा मतदाताओं को यह कह कर निरुत्साहित किया जाता था कि भाजपा ने हिन्दुओं के लिए आखिर किया ही क्या है? उन्हें वोट क्यों दिया जाये? दूसरा, यह कोशिश की जा रही थी कि भाजपा को एक दुविधाग्रस्त, छद्म कांग्रेस के तौर पर दिखाया जाये और ऐसा दृश्य बनाया जाये कि भाजपा अब कट्टर हिन्दू छवि से दूर हट रही है। तीसरा, इस अभियान का दूरगामी उद्देश्य था कि आम चुनाव-2019 में भाजपा को बहुमत तो आये मगर बहुत मामूली बहुमत आये। ऐसा होने पर मोदी-शाह को बाहर रखने और पुराने समय के लोगों को सत्ता देने के लिए दांव-पेंच खेले जाते। इस दूरगामी योजना के लिए राज्य के चुनावों को ड्रेस रिहर्सल के रूप में इस्तेमाल किया गया। 

इन विचारों के परिणामस्वरुप, #NOTA और #NoRamMandirNoVote ट्विटर ट्रेंड लॉन्च किए गए। इन प्रयासों में कुछ स्थानों पर सफलता भी मिली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में, कई शहरी सीटों पर (जैसे बंगलुरु) पर कट्टर भाजपा समर्थक वोट देने गए ही नहीं। उन हिंदू युवाओं के भाजपा से मोहभंग के फलस्वरूप बंगलुरु में कई विधानसभा सीटों पर कम अंतर से भाजपा को पराजय देखनी पड़ी। भाजपा के आंतरिक विश्लेषण से पता चला कि भाजपा के  कई  मतदाताओं ने #NOTA दबाया या घर पर ही रहे। परिणामत: यद्यपि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन उस समय सरकार नहीं बना सकी। इस ‘सफल’ परिणाम ने षड्यंत्रकारियों का हौसला बढ़ाया और अनौपचारिक चर्चाओं में इस प्रयोग को “बैंगलोर मॉडल” कहा गया। 

2019 के आम चुनाव में यही प्रयोग दोहराया गया (“सूत्रों के अनुसार” एक से अधिक शीर्ष भाजपा नेताओं को इस बारे में पता था)।हालांकि, 2019 में, प्रारंभिक चरण के बाद, इस अभियान को बंद कर दिया गया था। इसके दो कारण थे – इनके अपने ही सहयोगियों को लगा कि गलत हो रहा है और उन्होंने इसे लीक कर दिया। लीक होने के बाद अनेक भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेताओं ने व्यक्तिगत अनुरोध कर इन गतिविधियों को रोकने के लिए आग्रह किया।

आरएसएस और भाजपा समर्थकों को भ्रमित करने के प्रयास 

लेफ्ट-लिबरल वर्ग मोदी-शाह की जोड़ी से कितना व्यथित है, इसको लिखने की आवश्यकता नहीं है। लेफ्ट-लिबरल वर्ग के लिए संघ-भाजपा और मोदी- शाह व्यवस्था, मुख्य विरोधी हैं। अतः लेफ्ट-लिबरल वर्ग तो खुलकर इस नेतृत्व जोड़ी को बदनाम करने के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भाजपा के अपप्रचार के लिए विभिन्न राजनीतिक और संचार रणनीतियों का आयोजन करता रहता है। 

किन्तु मोदी-शाह की जोड़ी (और आरएसएस-भाजपा) को एक छुपी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है और इस लेख का उद्देश्य उस छली चुनौती को सामने लाना है।

भारतीय सोशल मीडिया में गैर भाजपा-आरएसएस परन्तु हिन्दू हितों की बात को रखने वाला एक बड़ा वर्ग है जिसे राइट विंग (दक्षिणपंथ, या RW) का नाम दिया जाता है। जब हम इस वर्ग पर चर्चा करते हैं, तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि इस वर्ग में सभी लोग एक समान नहीं हैं– भिन्न भिन्न व्यक्ति और संगठन भिन्न भिन्न मुद्दों से प्रेरित हैं। कुछ सिद्धान्तः इस वर्ग से जुड़े हैं, कुछ महत्वकांक्षी हैं, और अन्य कुछ यूट्यूब से धनार्जन कर रहे हैं।

इस लेख का मूल उद्देश्य भितरघाती RW आवाजों (जिन्हें हम ट्रोजन राइट विंग -टीआरडब्ल्यू कहेंगे) पर केंद्रित  है। यह TRW वे सोशल मीडिया आवाजें हैं, जो RW की तरफ होने का नाटक करते हुए, वास्तव में हिंदू हितों को हानि पहुंचा रही हैं। ये टीआरडब्ल्यू नियमित रूप से आरएसएस-बीजेपी गठबंधन को बदनाम करने के अवसर तलाश करते रहते हैं।

TRW क्या है?

अब सवाल उठता है कि ट्रोजन आरडब्ल्यू (TRW) क्या है? हम कैसे पहचाने कि कोई सोशल मीडिया की आवाज TRW है? यह भी प्रश्न उठता है कि क्या केवल मोदी / शाह या भाजपा / आरएसएस की आलोचना करने से ही कोई TRW हो जाता है?

इस प्रश्न का उत्तर हम कुछ उदाहरणों द्वारा देंगे:

RW की एक सम्मानित आवाज ने एक बार गोवा भाजपा में भ्रष्ट विधायकों के शामिल होने के मुद्दे को उठाया था और भाजपा से कुछ कठिन प्रश्न पूछे थे। उनकी आलोचना एक विशेष मुद्दे पर थी और इस आलोचना का उद्देश्य पूरे भाजपा/आरएसएस नेतृत्व को बदनाम करना नहीं था। इसके अलावा इस मुद्दे को उठाने के बाद उन्होंने बार बार भाजपा या आरएसएस की सार्वजनिक आलोचना नहीं की। इसलिए उन्हें TRW नहीं माना जायेगा। 

एक दूसरा उदाहरण लेते हैं । कुछ दिनों पूर्व, RW में स्थापित दो व्यक्तित्व साथ आये और एक नया उद्यम आरम्भ किया। पहले इन दोनों महानुभावों ने एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप में काम करते हुए, अपने RW तमगे को स्थापित किया। फिर वे एक साथ आए और हर दूसरे दिन भाजपा और आरएसएस पर हमला करना शुरू कर दिया। इसके लिए वे झूठ बोलने, मनगढ़ंत खबरें बनाने को भी तैयार रहे। एक बार बिना किसी सरकारी पुष्टिकरण के इन्होने यह कह दिया कि भारत सरकार पाकिस्तान से व्यापारिक और खेल सम्बन्ध बनाने जा रही है। जब इसका खंडन पाकिस्तान से आया, तो बिलकुल चुप साध गए। इनका हर दूसरा वीडियो भाजपा-आरएसएस गठबंधन का अपमान या उपहास करता है। अपने वीडियो के बाद, वे  छोटे लेख पोस्ट करते हैं और यह घोषणा करते हैं कि उनकी निष्ठा मोदी के लिए नहीं बल्कि हिंदू हितों से है। अब यह शर्तिया TRW हैं और आगे हम देखेंगे कि ऐसा क्यों है।

तीसरे उदाहरण में वे RW टिप्पणीकार आते हैं जो भाजपा/आरएसएस की आलोचना तो करते हैं पर साथ ही साथ स्पष्तः यह कहते हैं कि हिन्दू हितों के लिए भाजपा-आरएसएस ही अभी भी एक संगठित राजनीतिक शक्ति के रूप में सबसे उपयुक्त हैं। इन्हें हम TRW नहीं कहेंगे।

इन उदाहरणों पर चर्चा कर अब हम आगे बढ़ते हैं और उन कारणों को स्थापित करते हैं, जिनके द्वारा हम TRW को पहचान सकते हैं। 

मूल नियम: TRW लगातार मोदी और शाह या भाजपा/ आरएसएस पर हमला करेंगे। वे बीच बीच में हिंदू विरोधी आवाजों का उपहास करते हुए कुछ वीडियो पोस्ट करेंगे, लेकिन उनके वीडियो में एक ही आवर्ती मकसद होगा– मोदी सरकार हिंदुओं के लिए पर्याप्त नहीं कर रही है। कृपया ध्यान दें कि TRW होने के लिए मोदी और शाह का विरोध जरूरी है (necessary condition) लेकिन यह पर्याप्त शर्त नहीं है (not sufficient)। दूसरी शर्त है- हमलों की पुनरावृत्ति।

ध्यान रखें कि TRW मोदी सरकार द्वारा हल किए गए सभ्यतागत मुद्दों पर किसी भी चर्चा को आसानी से टाल देंगे।   

ट्रोजन राइट विंग (TRW) खतरनाक क्यों है 

संगठनात्मक व्यवहार पर चर्चा में कॉर्टिना आदि (२००१) कहते हैं कि छोटे जहरीले व्यवहार और घटनाएं अपेक्षाकृत मामूली प्रतीत होती हैं, परन्तु उनका लगातार होना एक स्थायी प्रभाव छोड़ता है। लाजर एवं फोकमैन (1984) बताते हैं कि लगातार अपघर्षक घटनाओं में एक बार की बड़ी घटना की तुलना में अधिक रोगजनक क्षमता होती है।

“सतसैया के दोहरे ज्यों नाविक के तीर, देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर”.

एक और हिंदी कहावत है:

रस्सी आवत – जात ते, सिल पर परत निसान

(जब कुएं से लगातार पानी निकाला जाता है तो रस्सी पत्थर पर निशान छोड़ जाती है)

TRW की हरकतें छोटी लग सकती हैं, लेकिन जब वे लगातार कहते हैं- “मोदी नोबेल पुरस्कार जीतना चाहते हैं; “मौलाना मोदी” तो ऐसे लगातार हमलों का असर होता है, और लोगों का मोदी जी के प्रति जो भावनात्मक जुड़ाव है, उसमें कमी आती है।

आइए याद करते हैं कि नक्सली हमले में क्या होता है। नक्सली पुल या सड़क उड़ा देते हैं या पुलिस दल को मार देते हैं। नक्सलियों की इस कार्रवाई का प्राथमिक परिणाम यह होता है कि सरकार के प्रति अविश्वास बढ़ जाता है। लोग पूछते हैं कि इंटेलीजेंस (जासूसी व्यवस्था) क्या कर रही थी? यह शायद आश्चर्य की बात है कि जनता की राय नक्सलियों के खिलाफ नहीं बल्कि सरकार के खिलाफ हो जाती है। नक्सली इस बात को जानते हैं, और इसलिए ही वे ऐसे हमले करते हैं।

आइए एक ताजा उदाहरण लेते हैं। पश्चिम बंगाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं पर चुनाव के बाद हुए सुनियोजित हमले में आम हिन्दू जनता का गुस्सा तृणमूल कार्यकर्ताओं से अधिक केंद्र सरकार पर था। भाजपा सरकार की अप्रभावीता को उजागर करने के लिए TRW समूह के पास अकूत भण्डार आ गया था।उन्होंने आग में और अधिक घी डाल कर मोदी जी और भाजपा/आरएसएस को बदनाम करने में पूरा सहयोग दिया। आइए अब विचार करें कि इनसे क्या हासिल हुआ?          

विस्तृत चर्चा – TRW क्यों खतरनाक हैं

“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाए, टूटे से फिर न जुड़े और जुड़े गाँठ पड़ जाए

बार-बार किए गए सर्वेक्षणों से पता चला है कि कई हिंदुओं का प्रधानमंत्री के साथ गहरा भावनात्मक संबंध है। वे उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखते हैं जो अपनी विचारधारा को छुपाता नहीं अपितु गर्वित होता है। जो खुलकर गंगा आरती में भाग लेता है, मंदिरों में शीश नवाता है। साथ ही हिन्दू जनमानस उनकी मेहनत, गहरी प्रतिबद्धता, और  निस्वार्थता को पहचानता है। कभी-कभार हुई गलतियों को स्वीकार करते हुए भी, मोदी समर्थकों का एक बड़ा वर्ग अभी भी मानता है कि पीएम के इरादे सही हैं, और वह धर्म और राष्ट्र की सेवा करने के लिए लगे रहते हैं।

TRW का मूल उद्देश्य है– इसी भावनात्मक सम्बन्ध में कमी लाना, संशय पैदा कर देना, मन में गाँठ डाल देना।

TRW का खतरा: मोदी समर्थक हर किसी कि बात आसानी से नहीं मानते। अगर एक धुर मोदी विरोधी मीडिया व्यक्तित्व (मैडिसन उपद्रवी) या एक विपक्षी नेता (पप्पू) मोदी विरोध करता है तो आम मोदी समर्थक उस पर तो ध्यान ही नहीं देता । लेकिन TRW ने क्योंकि “कट्टरपंथी” हिंदू आवाज का मुखौटा पहना हुआ है तो उनकी बात सुनी जाती है।

यह TRW इसलिए खतरनाक हैं क्योंकि यह पहले से ही आश्वस्त हिंदुओं तक को भ्रमित कर देते हैं। वह झूठ सबसे खतरनाक होता है जो सच्चाई से काफी मिलता-जुलता हो। हिन्दू वैसे ही “अर्जुन मानसिकता” से ग्रसित हैं और हमेशा संशय में रहते ही हैं। कई वर्षों के मेहनत के बाद हिन्दू थोड़े जागरूक हुए हैं। यह TRW नामक मायावी इस सारे प्रयत्न को धुंधला देते हैं। हिन्दुओं को भी लगता है कि यह “हिन्दू आवाज” ठीक ही तो कह रहे हैं।     

हमने देखा है कि अमेरिकी चुनावों में क्या हुआ था। कोविड संकट और निरंतर मीडिया अभियान के कारण, ट्रम्प समर्थकों में ट्रम्प के प्रति मोहभंग हुआ और वे निरुत्साहित हो गए। परिणाम यह हुआ कि ट्रम्प के वफादार मतदाता २०२० में वोट करने के लिए उतने संख्या में नहीं आए जितने उन्होंने २०१६ में आये थे। नतीजा सबके सामने है।

इस लेख के आरम्भ में हमने बाते से पता चलता है बैंगलोर के हिंदू मतदाताओं को भ्रमित करने का कैसा सुनियोजित प्रयास हुआ था, और कई हिन्दुओं ने NOTA का बटन दबा दिया या वोट देने ही नहीं गए। सनद रहे कि हिन्दू विरोधी ताकतें कभी NOTA का बटन नहीं दबाती हैं।

यदि इन TRW को अबाधित कार्य करने दिया गया और इन्हें पहचाना नहीं गया तो हिंदू मतदाता निरुत्साहित हो जायेंगे । वैसे भी, शहरी हिंदुओं को वोट न देने के लिए एक कारण चाहिए। वे पहले से ही बहुत भ्रमित हैं। अगर प्रतिबद्ध और आश्वस्त हिंदू भी नेतृत्व की प्रभावशीलता के बारे में संदेहग्रस्त होंगे, तो हिंदुओं का चुनावी लड़ाई हारना निश्चित है। ध्यान रहे हिन्दूविरोधी ताकतें अपने संस्थागत धार्मिक ढांचे के कारण हमेशा एकजुट रहती हैं। हिन्दू ही बंटते रहे हैं।

हिंदुओं को यह महसूस करना होगा कि वे विभाजित होने और राजनीतिक सत्ता खोने का जोखिम नहीं उठा सकते । किसी भी महत्वपूर्ण परिवर्तन (राजनीतिक, न्यायिक, शैक्षिक या सांस्कृतिक) करने के लिए एक अनुकूल राजनीतिक प्रतिष्ठान की आवश्यकता होती है। मोदी-शाह के नेतृत्व में बीजेपी-आरएसएस का गठबंधन एक स्पष्ट व वास्तविकता आधारित  राजनीति (realpolitik) के साथ मैदान में है और वाजपेयी युग की खोखली आदर्शवादिता को दरकिनार कर दिया गया है । इस बात से हिन्दू विरोधियों को बहुत तकलीफ है – आखिर यह सपने देखने वाले हिन्दू जमीनी लड़ाई क्यों लड़ने लगे? इसलिए हिन्दू विरोधियों के मुख्य विरोधी मोदी और शाह ही हैं। लेफ्ट लिबरल को वाजपयी, जसवंत सिंह चाहिए, मोदी और शाह नहीं. हिन्दुओं को भी लेफ्ट लिबरल जैसी स्पष्टता चाहिए। उन्हे समझना होगा कि हिंदुओं के पास वर्तमान भाजपा नेतृत्व और आरएसएस जैसी अच्छी-खासी राजनीतिक मशीनरी का कोई विकल्प नहीं है।    

TRWs अपनी विश्वसनीयता की स्थापना कैसे करते हैं?

TRW अपनी विश्वसनीयता की स्थापना हिन्दू मुद्दों पर अतिवादी पक्ष लेकर करते हैं। पश्चिम बंगाल में चुनाव के उपरान्त भाजपा कार्यकर्ताओं की हाल ही में हुई लक्षित हत्याओं से सभी हिन्दुओं की भावनाओं को चोट लगी। इस मौके का TRW समूह ने भरपूर लाभ उठाया और भाजपा, आरएसएस, पर पर्याप्त रीढ़ की हड्डी न होने का या “छप्पन इंच की छाती” न होने का तंज कसा गया।

कई TRW हिंदू मुद्दों पर अदालती मामले दर्ज कर देते हैं और उसी फसल की कटाई बार बार करते रहते हैं। इनमें से कुछ मामलों को उन्होंने अब ठन्डे बस्ते में क्यों डाल दिया है इस पर कभी नहीं बोलते।

कई बार मोदी-शाह की जोड़ी को बदनाम करने के लिए फेक न्यूज और मनगढ़ंत पोस्ट का भी इस्तेमाल किया जाता है। हम ऊपर बताया कि एक हाल ही में लॉन्च TRW पोर्टल ने झूठा दावा किया कि भारत सरकार पाकिस्तान के साथ व्यापारिक संबंधों दोबारा स्थापित करेगी। पाकिस्तान द्वारा आधिकारिक इनकार के बाद इस “खबर” को चुपचाप दबा दिया गया। लेकिन उनका काम हो गया था। कई हिंदू इस बात से नाराज और निराश थे कि मोदी सरकार वाजपेयी की गलती को दोहराने जा रही है। एक मजबूत नेता के तौर पर मोदी की छवि को थोड़ा झटका लगा गया. “मन में गांठ गहरी हो गयी”।

हमें अब्राहमिक पंथों की राजनीतिक जागरूकता को पहचानने और उसकी सराहना करने की आवश्यकता है। इन पन्थों के अनुयायी दिखावाबाजी पूरी तरह से समझते हैं। हिंदू-विरोधी शक्तियां राहुल गांधी के मंदिर दौरों पर चुप रहती हैं। इसी तरह , दिल्ली में, AAP के अल्पसंख्यक वोटर हनुमान मंदिर दर्शन और सुन्दरकाण्ड पाठ पर शान्त रहते हैं। वे जानते हैं, कि यह सब करने से विरोधीपक्ष (यानि हिन्दू) बाँट सकते हैं। 

आइए अब हम इस व्यवहार की तुलना हिंदुओं से करते हैं तथाकथित हिन्दू कट्टर आवाजों से या हिन्दू “रणनीतिक” आवाजों से। हमारे यह विशेषज्ञ “एक में कुरआन और एक हाथ में कंप्यूटर” के बयान को उठाएंगे और इस बात के लिए प्रधानमंत्री को “मौलाना मोदी” तक कह देंगे।  वे इस बात पर भी हिन्दू समर्थकों को भड़का देते हैं। अब या तो एक पंचर बनाने वाले में जितनी राजनीतिक समझ है हमारे TRW में उसकी आधी भी नहीं है, या फिर वे ऐसा जानबूझकर कर रहे हैं।

ट्रोजन RWs (TRWs) – महानता का दावा

जो भी व्यक्ति इन TRW समूहों से हिंदूओं को विभाजित नहीं करने का अनुरोध करता है, यह उसका उपहास करते हैं। यह दावा करते हैं कि इनकी प्रतिबद्धता राष्ट्र और धर्म के प्रति है न कि मोदी के प्रति। 

तथ्य क्या है?

हिंदुओं के लिए एक ही संगठित राजनीतिक विकल्प है। अपने कृत्यों द्वारा यह लोग हिंदुओं के सामने उसी एक विकल्प को कमजोर कर रहे हैं । अपनी हरकतों से यह हिंदुओं को और संशय में डाल देते हैं – मगर इन्हें इस बात कि कोई आत्म ग्लानि नहीं।

क्या यह वाकई राष्ट्र और धर्म के प्रति समर्पित हैं? तो फिर इनके कृत्य और लेफ्ट लिबरल के कृत्य एक जैसे कैसे हो रहे हैं? इन दोनों का ही मुख्य विरोधी मोदी क्यों है?   

TRW ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं?

अब हमें यह समझना होगा कि TRW ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं। इन TRW ने बीजेपी-आरएसएस और एबीवीपी सेटअप का अध्ययन किया है। उन्होंने महसूस किया है कि आरएसएस से जुड़े संगठनों में वरिष्ठता एवं पूर्णकालिक प्रतिबद्धता को महत्व दिया जाता है। कई वरिष्ठ आरएसएस नेताओं के लिए राजनीतिक सत्ता अपने आप में अंत नहीं है। 

दूसरी तरफ TRW तो राजनीतिक सत्ता (पावर) ही चाहते हैं। उन्हें वनवासी कल्याण आश्रम या एकल विद्यालय या किसी अन्य सेवा गतिविधि में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए उनकी महत्वाकांक्षा और अधीरता उन्हें भाजपा/आरएसएस व्यवस्था के खिलाफ काम करने के लिए प्रेरित करती है। उनकी हताशा उनके आंतरिक संघर्ष से उत्पन्न होती है। उनमें से कई वास्तव में पप्पू और पिछली “कांग्रेस” संस्कृति को नापसंद करते हैं। दूसरी ओर अपनी महत्वाकांक्षा और आत्मविश्वास के कारण वे मानते हैं कि यदि उन्हें मौका दिया जाए तो वे वर्तमान मंत्रियों या अधिकारियों से बेहतर कार्य कर सकते हैं। यही कुंठा उन्हें भाजपा और आरएसएस के खिलाफ कर देती है।

दूसरा कारण वित्तीय है। टीआरडब्ल्यू अक्सर हिन्दू विषयों पर आक्रामक मुद्रा अपनाते हैं जिससे यूट्यूब या फेसबुक के माध्यम से उन्हें धन मिलता है। इसलिए वे इन मुद्दों को उठाते रहते हैं। लोग मीडिया या लेफ्ट-लिबरल के खिलाफ पर्याप्त सुन चुके हैं और इसलिए वे अब अपनी बंदूकें भाजपा और आरएसएस की ओर मोड़ते हैं और दुःख कि बात यह है कि इन बातों में अधिकतर कट्टर हिंदुओं ही आ जाते हैं और भ्रमित हो जाते हैं।

लिटमस टेस्ट- अब्राहमिक्स के मुख्य लक्ष्य कौन हैं?

चूंकि हिंदू संशयग्रस्त रहते हैं, इसलिए अच्छा होगा कि वे अब्राहमिक लिटमस टेस्ट लेने के बाद ही तय करें कि उनके मुख्य हितैषी कौन हैं? लिटमस परीक्षण यह है: आप देखिये कि अब्राहमिक हमलों का लक्ष्य कौन है। आप देखिये कि जो भी व्यक्ति उनके निशाने पर है वह कहीं न कहीं अब्राहमिक प्रणाली को चोट पहुंचा रहा है। उदाहरण के लिए, दुनिया भर में अब्राहमिक्स (और लिबरल मीडिया) हमेशा मोदी-शाह और योगी आदित्यनाथ के खिलाफ हमला करेंगे। एक भी अब्राहमिक तंत्र केजरीवाल के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलेगा।

TRW हमेशा इस लिटमस टेस्ट में असफल हो जायेंगे क्योंकि अब्राहमिक कभी भी उन्हें लक्षित नहीं करेंगे। यह विभिन्न कारणों से हो सकता है – कुछ TRW छोटे स्तर पर कार्य कर रहे होंगे, कुछ को आसानी से “समझाया” जा सकता है, और कुछ को छेड़ने का लाभ नन्हीं क्योंकि वे हिंदू कारण को नुकसान पहुंचाने का अच्छा काम खुद ही कर रहे हैं।

घर के भीतर चर्चा हो और बाहर एका हो   

यहूदियों के बारे में कहा जाता है – 4 यहूदी 5 मत। यहूदी कम तर्कवादी नहीं हैं। हालांकि, जब बाहरी शक्तियों से निबटना है तब वे एक साथ हो जाते हैं। इसरायली नेता शिमोन पेरेज़ को अक्सर पश्चिमी मीडिया द्वारा आमंत्रित किया जाता था– तब भी जब वे विपक्ष में थे।ऐसे समय में पेरेज़ (लेबर पार्टी के अध्यक्ष) उन मंचों पर इसरायली सरकार (जो लिकुड के नेतृत्व में थी) का बचाव किया करते थे। क्या इजरायल के पूर्व पीएम से हिंदू कुछ सीख सकते हैं? प्रख्यात विचारक राजीव मल्होत्रा हिंदुओं को आगाह करते हैं कि वे आंतरिक रूप से विभाजनकारी कृत्य ना करें। अपने एक लेख में वे स्वार्थी हिंदू प्रवृत्ति पर अपनी निराशा व्यक्त करते हैं।

हिंदू संस्कार विरोधी विचारों और विविध दृष्टिकोणों का स्वागत करता है। भारत में विभिन्न मत एवं संप्रदाय पनपे (नास्तिकता के भी अनेक दर्शन आये)। मुझे एक सेमिनार कि एक बात याद है: किसी ने कहा क्या कारण है कि बुद्ध अरब में नहीं हुए? बुद्ध, महावीर, नानक इस भूमि में ही क्यों उत्पन्न हुए? अपनी निहित प्रकृति के कारण हिन्दू  विविध राय और बहस स्वीकार करते हैं।

आज के युग में, राजनीतिक दृष्टि से हिंदू भ्रमित होने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, और इसलिए इस तरह की चर्चा परिपक्व दर्शकों के साथ बंद मंचों में ही होनी चाहिए। खुले मंचों पर एकजुट मोर्चा पेश करना जरूरी है।

ट्रोजन RW (TRW) की घर वापसी

इस चर्चा के निष्कर्ष के में, हमें यह चिंतन करना चाहिए कि क्या कुछ TRW को हम वापस RW में बदल पाएंगे? इस विषय पर कुछ प्रासंगिक प्रश्न हैं: कौन से TRW को वापस लाया जाए? किन लोगों को नज़रअंदाज़ किया जाए? किन लोगों को बेनकाब किया जाये? TRW जीतने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

पहले तीन सवाल के उत्तर के लिए हमें विभिन्न TRW पर सिलसिलेवार चिंतन करना होगा, बारीकियों में जाना होगा जो इस लेख के स्कोप से बाहर हो जायेगा। हमें उम्मीद है कि इस मुद्दे पर भाजपा/आरएसएस थिंक टैंक में ही कुछ गंभीर चर्चा होगी।

हम TRWs को वापस जीतने के लिए तंत्र पर कुछ संकेत देने का प्रयास करते हैं। सबसे पहले, आरएसएस-भाजपा को लेटरल प्रविष्टियों को पहचानने और पुरस्कृत करने पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। आरएसएस और बीजेपी के बाहर ऐसे लोग हैं जो अपनी परंपरा को महसूस करते हैं और उनकी सेवाओं का उपयोग किया जाना चाहिए। 

दूसरा, कुछ कमेंटेटर जो बीजेपी/आरएसएस को कोसने में लिप्त हैं, हो सकता है उनका इरादा हिंदू कारण को नुकसान पहुंचाने का न हो और वे इससे होने वाले नुकसान से अवगत न हों। इन व्यक्तियों से संपर्क करना और उन्हें सुधार के लिए कहना महत्वपूर्ण है। तीसरा, कुछ लोग अल्पकालिक वित्तीय लाभ के लिए भाजपा/आरएसएस का खंडन कर रहे होंगे – उदाहरण के लिए यूट्यूब में ऐसे विडियो। 

चूंकि इन आवाजों में व्यक्तिगत पहल और रचनात्मकता होती है, इसलिए उन्हें रणनीतिक रूप से समर्थन और पोषण किया जा सकता है। उनकी मदद मांगी जा सकती है और अधिक प्रभावी और उद्यमशील मीडिया अभियान चलाया जा सकता है। 

क्या बीजेपी/आरएसएस कुछ सुधार कर सकते हैं

कुछ शहर के लोग भी ज़ालिम थे, मरने का मुझे कुछ शौक़ भी था[1]

उपर्युक्त विवेचन से एक बात तो स्पष्ट तौर पर सामने आती है कि कुछ हद तक TRW अभियान इस लिए सफल रहा है कि कुछ गलतियाँ हुईं हैं। TRW कि यह सफलता भाजपा / आरएसएस को यह स्पष्ट संकेत दे रही है कि उन्हें अपना मूल वोट बैंक बचाने के लिए प्रयास करना होगा और अधिक दृश्यमान (visible) कार्य करने होंगे। सत्तारूढ़ दल के रूप में, भाजपा संकीर्ण नहीं हो सकती है, लेकिन उन्हें हिंदुओं की चिंताओं को और अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित करना होगा। उदाहरण के लिए, बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा ने कई हिंदुओं को निराश किया। ऐसे मामलों में शीर्ष नेतृत्व द्वारा कुछ स्पष्ट कार्रवाई की आवश्यकता है। इसी तरह, किसान विरोध को अब कठोरता के साथ संभाला जाना चाहिए। दृश्यमान क्रियाएं विश्वास के स्तर के साथ-साथ नेतृत्व के साथ भावनात्मक जुड़ाव को बढ़ाती हैं। हम पहले ही कह चुके हैं [१] कि TRW अभियान का प्राथमिक उद्देश्य प्रधान मंत्री के साथ भावनात्मक संबंध को कम करना है। भाजपा को अपने मूल वोट बैंक के भरोसे को मजबूत करने की जरूरत है।

निष्कर्ष यह है कि भाजपा /आरएसएस को TRWs पर ध्यान देना होगा और इसके लिए एक अलग रणनीति बनानी होगी। भाजपा की संचार टीम को दो स्पष्ट संदेश भेजने हैं – पहला, कट्टर हिंदू सोशल मीडिया योद्धाओं की आवश्यकता है, लेकिन एक संगठित राजनीतिक ताकत की कीमत पर नहीं। दूसरा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अपने प्रतिबद्ध स्वयंसेवकों के साथ एक कहीं बेहतर विकल्प है बजाय इसके कि कई तथाकथित कट्टरपंथी मगर संगठनविहीन हिंदुत्व नेता सामने आयें। हिंदुओं को अपनी ओर से भाजपा और आरएसएस पर constructive दबाव बनाना चाहिए, लेकिन यह स्पष्टता हमेशा रहनी चाहिए कि वर्तमान स्थिति में हिंदुओं के पास भाजपा नेतृत्व और आरएसएस जैसी अनुभवी और संगठित राजनीतिक मशीनरी का कोई विकल्प नहीं है।      

संदर्भ

कॉर्टिना, एलएम, मैगली, वीजे, विलियम्स, जेएच, और लैंगहौट, आरडी (2001)। कार्यस्थल में अक्षमता: घटना और प्रभाव। व्यावसायिक स्वास्थ्य मनोविज्ञान के जर्नल, 6(1), 64.

लाजर, आरएस, और फोकमैन, एस (1984)। तनाव, मूल्यांकन और मुकाबला। स्प्रिंगर प्रकाशन कंपनी।

https://rajivmalhotra.com/library/articles/importance-protecting-gurus/


[१] अनुभाग देखें ” ट्रोजन राइट विंग खतरनाक क्यों है “


[1] (मुनीर नियाज़ी साहब की पंजाबी नज़्म के तर्जुमे से लिया गया है)

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