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ज्ञानवापी, इस्लाम हि नहीं, अब्राहम से भी प्राचीन है
जब इस धरा पर ना तो अब्राहम थे, ना यहूदी थे, ना ईसाई थे और ना इस्लाम था और यही नहीं जब ना तो रोमन सभ्यता थी, ना तो बेबिलोनिया की सभ्यता थी, ना तो मिश्र की सभ्यता थी, ना मेसोपोटामिया अस्तित्व में थी और ना माया और यूनानी सभ्यता थी, तब भी हमारे भोले बाबा की काशी थी जिसे आज आप बनारस या वाराणसी के नाम से जानते हैँ।
हमारा चांद हमारा चंद्रयान
असफलताओं को पीछे छोड़, उनसे सबक सीखते और सफलताओ का विश्वकीर्तिमान गढ़ते हुए हम भारतवासी सम्पूर्ण विश्व में सर्वप्रथम दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने वाले मानव प्रजाती बन गये। यह संकल्प से सिद्धी तक की यात्रा का सर्वोत्तम उदाहरण है।
भारत को आजाद कराने में कवि, लेखक और साहित्य आदि का योगदान
ddubey -
साहित्य समाज का दर्पण होता है। जैसा समाज होता है, वैसा ही साहित्य दिखाई देता है।
सनातन विमर्श के महानायक– गोस्वामी तुलसीदास
तुलसी चाहते तो वेद, पूरण, उपनिषद, गीता या महाभारत को लोकवाणी या जनवाणी में लिख सकते थे, क्या कठिन था उनके लिए किन्तु उन्होंने रामकथा को चुना क्योंकि रामकथा, मर्यादा पुरुषोत्तम की कथा है, रामकथा राष्ट्रनिर्माण की कथा है, रामकथा असुरों के सर्वांग उन्मूलन की कथा है और तुलसी के समकालीन समाज को उन मूल्यों की आवश्यकता थी जो पद दलित हो चुके हिन्दू समाज को मर्यादा में बांधकर उसकी शक्ति को पुनः सहेजने में सहायक सिद्ध हों।
“जिद” और चरित्र में अकड़ आवश्यक है
जिद्दीपन है ना जब सकारात्मक हो समाजिकता से ओत प्रोत हो, नैतिकता से परिपूर्ण हो और राष्ट्रवाद की भावना के रस से सराबोर हो तो कभी सावरकर, कभी भगत, कभी नेताजी, कभी आज़ाद, कभी बिस्मिल, कभी लाल बाल और पाल तो कभी सरदार, कभी मुखर्जी, कभी उपाध्याय, कभी शास्त्री, कभी अटल, कभी आडवाणी तो कभी नरेंद्र दामोदर दास मोदी बनकर समस्त विश्व को प्रभावित कर देता है और अपने रंग में रंग देता है।
गदर्-२ और पठान दोनों में अलग क्या है?
पठान फिल्म भी देशभक्ति पर आधारित थी, परन्तु इसमे देश से प्रेम के स्थान पर "पठान" प्रेम अधिक दिखलाई पड़ रहा था। इस फिल्म में भी बालीवुड़ ने भारतीय समुदाय के बहुसंख्यक समुदाय के भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का सम्पूर्ण प्रयास किया गया था
पढ़े लिखे भ्र्ष्टाचारी का शिशमहल
काले कारनामे को छिपाने के लिए वो भ्र्ष्टाचारी पढ़ा लिखा अनपढ़ केंद्र सरकार द्वारा लाये गये "दिल्ली सेवा बिल" के विरोध के लिए गली गली भटक कर समर्थन जुटा रहा था, और यही नहीं जिन लोगों को भ्र्ष्टाचारी बताकर उनको जेल भेजने की बात करने वाला आज उनकी ठोकरों में पड़ा समर्थन करने की भीख मांग रहा है।
विपक्ष फ्लोर टेस्ट में हुआ फेल
अविश्वाश प्रस्ताव बुरी तरिके से असफल हो गया। सत्य की जीत हुई और धर्म विजयी हुआ। वर्ष २०१८ की भांति एक बार फिर एकजुटता का दम्भ भरने वाला विपक्ष फ्लोर टेस्ट में असफल हो गया।
सुन मेहबूबा “रईस मट्टू” के भी हाथ “तिरंगा”!
ये वही मेहबूबा मुफ़्ती है, जो रैलियों में चीख चीख कर कह रही थी कि "यदि ३७० हटा, तो तिरंगे को कोई हाथ लगाने वाला भी नहीं मिलेगा"! ये
यूट्यूबर पुण्य प्रसून वाजपेयी ने क्यों कहा की अब १० नेता शीघ्र जेल भेजे जाएंगे
सारे भ्र्ष्टाचारी घबड़ाए हुए हैँ कि कब किसका नंबर आ जायेगा, कब किसको उसके कुकर्मो की सजा मिलेगी ये कोई नहीं जानता, यदि जानता है तो बस एक शख्श और वो हैँ श्री संजय कुमार मिश्रा।