हम कागज लेके आयेंगें, उनको जरूर दिखायेंगे। तुम हमको फासिस्ट बोलोगे, हम तब भी मुस्कुरायेंगे। तुम हिंदु की कब्र खोदोगे, हम तुमको गले लगायेंगे। हम कागज लेके आयेंगें, उनको जरूर दिखायेंगें।।
किसी ने कहा है कि फिल्में (साहित्य) समाज का दर्पण होती है। अगर यह नॉरेटिव आज सेट हो गया तो आगे आने वाली पीढ़ी हमें सिर्फ हिंदू आतंकवादी के नाम से जानेगी।