पुलवामा: एक परिप्रेक्ष्य
क्या कभी भी हमने हमारे बीच रह रहे शहरी नक्सलियों के इन आतंकी सहायता समूहों को, इन स्लीपर सेल्स को जवाबदेह ठहराया है जो हमारी शिक्षा, मीडिया, मनोरंजन, राजनीति, कानून, न्यायपालिका में घर कर चुके हैं और उन्हें भीतर ही भीतर दीमक कि तरह खाये जा रहे हैं?