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क्या कोरोना का फैलना एक संयोग है या फिर एक प्रयोग?
ये बात अचंभित करती है कि चीन आज दुनिया के लिए खतरा बन चुका कोरोना वायरस को सुरक्षा के लिए ख़तरा नही मान रहा है। जबकि 2014 में इबोला वायरस को संयुक्त राष्ट्र परिषद ने ख़तरा मानते हुए रेजॉलूशन भी पास किया था।
COVID-19, एक शांतिपूर्ण युद्ध
यह एक ऐसी जंग है जो सिर्फ घर पर बैठकर और सोशल डिस्टैन्सिंग से ही जीती जा सकती है। हमें ये 21 दिन स्वयं को व अपने परिवार को ही देने हैं तथा सरकार का पूरा सहयोग करना है।
क्या सच में? जी हाँ सच में।
लॉकडाउन के बीच दुकानों अनावश्यक भीड़ बढ़ाना और राशन की जमाखोरी करना संकट को ही आमंत्रित करता है। यदि हम घर पर रहकर दाल रोटी जैसे सामान्य लेकिन पौष्टिक भोजन में काम चलाएंगे तो सोशल डिस्टन्सिंग से हम इस चीन वुहान वायरस की कड़ी को खत्म कर सकते है।
राजनीति और निर्लज्जता के साहचर्य का सामाजिक विमर्श
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"सारे नियम कानून बस आम लोगों के लिए हैं? नेता, मंत्री, अफसर सब मौज में ही रहते हैं? उनके लिए कोई नियम नहीं होते?
लाल सलाम से लाल कोरोना तक! और कितनी जानें लोगे वामपंथियों?
तानाशाही व्यवस्था वाले चीन से यूँ तो ज़्यादा खबरें बाहर नहीं आतीं, परन्तु इस बार कुछ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में ये खबरें छपी है के कोरोना वायरस का निर्माण चीन की प्रयोगशालाओं में पूरी तरह एक ख़ास रणनीति के तहत किया गया था।
एक पैगाम राहुल गाँधी के नाम …
deepa -
राहुल जी, होम आइसोलेशन लेकर शांति से बैठिये, मेरे देश के इतिहास और संस्कृति के बारे में कुछ अच्छी किताबें पढ़िए आपको देश और देश के लोगों के साथ एक लगाव महसूस होगा और यकीन मानिये जिस दिन आपको ये लगाव महसूस हो गया आप सरकार के हर प्रयास को समझ पाएंगे।
बराबरी की होड़ में,आधुनिकता की दौड़ में महिलाऐं!
deepa -
बराबरी की होड़ में,आधुनिकता की दौड़ में,मेरी सहेलियों पीछे छूट रहा हमारा सच्चा अवतार है !
हवा में बन्दूक लहराने वाला रामभक्त गोपाल, गोडसे. तो शाहरुख़, कसाब क्यों नहीं?
जब भी प्रधानमंत्री देशहित में कोई भी फैसला लेते हैं तो उसके बार में इतना घटिया तरीके से प्रचार होता हैं की लोगों में उस फैसले को लेकर भ्रम फ़ैल जाता हैं. इसका ताज़ा उदाहरण नागरिकता संशोधन कानून हैं