हमारे देश का दुर्भाग्य यह है की, जब तक कोई राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री आकर अपने पद पर बैठा तब तक वामपंथी विचारधारा से जुड़े हुए लोग मीडिया, न्याय पालिका, सरकार, बॉलीवुड, संगीत, खेलों और शिक्षा व्यवस्था में पूरी तरह से घुस चुके थे.
इसका परिणाम यह हुआ की जब भी प्रधानमंत्री देशहित में कोई भी फैसला लेते हैं तो उसके बार में इतना घटिया तरीके से प्रचार होता हैं की लोगों में उस फैसले को लेकर भ्रम फ़ैल जाता हैं. इसका ताज़ा उदाहरण नागरिकता संशोधन कानून हैं, जिसका भारत के लोगों का कोई भी लेना देना नहीं हैं. फिर भी देश भर में वामपंथी विचारधारा के लोगों ने डर का माहौल बना दिया.
इसके परिणाम काफी घातक साबित हुए, दिल्ली में दंगे हुए कई लोगों की जाने गयी और सैंकड़ों लोग घायल हुए. दिल्ली दंगों के दौरान एक लाल शर्ट पहने हुए लड़का पुलिस पर बन्दूक तानते हुए नज़र आया. आनन-फानन में खुद को ब्रह्माण्ड का सबसे निष्पक्ष पत्रकार कहने वाले NDTV के रविश कुमार ने उस लड़के को अनुराग मिश्रा बता दिया.
पुलिस ने बाद में जब लड़के को गिरफ्तार किया तो इस बात की पुष्टि हो गयी, वो अनुराग मिश्रा नहीं बल्कि शाहरुख़ ही था. अब क्योंकि NDTV का प्यार मुसलमानों के साथ जगजाहिर है तो उन्होंने गिरफ्तारी की खबर में शाहरुख़ नाम का इस्तेमाल करना ही सही नहीं समझा.
दूसरी और दिल्ली चुनावों के ठीक पहले छोटी उम्र के लड़के रामभक्त गोपाल ने जामिया के एक विद्यार्थी पर गोली चला दी थी. रामभक्त गोपाल आज़ादी के नारों से बुरी तरह से भड़का हुआ था, पुलिस और न्याय प्रणाली के जामिया प्रदर्शनकारियों पर की जाने वाली कार्यवाही के सुस्त रवैये के चलते उसने इस घटना को अंजाम दिया.
जामिया का विद्यार्थी जब तक हॉस्पिटल पहुँचता उससे पहले रामभक्त गोपाल को वामपंथी मीडिया नए भारत का गोडसे साबित करना शुरू कर दिया. सवाल यही उठता हैं अगर आपको रामभक्त गोपाल में गोडसे नज़र आ रहा है तो फिर पुलिस पर बन्दूक तान कर दंगे में आठ फायर करने वाले शाहरुख़ में आपको कसाब क्यों नहीं नज़र आता?
आखिर ऐसी कौनसी नज़र हैं, जिसमे अपराधी हिन्दू हो तो उसमे आपको आतंकवाद दिख जाता हैं. वही अगर आतंकी मुसलमान हो तो आपको फिर उसका धर्म नज़र नहीं आता? अगर इस तरह से आप भेदभाव करके पत्रकारिता करते हैं और फिर खुद को निष्पक्ष कहते हैं तो भगवान् ही जाने कौन इस बात का निर्णय करता हैं की ‘रेमन मैगसेसे पुरस्कार’ किसे मिलेगा.