मित्रों बिहार का दुर्भाग्य से पीछा नहीं छूट रहा। जिस बिहार की धरती ने नंद, मौर्य और शुंग जैसे महाप्रतापी राजवन्श दिया। जिस बिहार की पवित्र धरती ने राजकुमार सिद्धार्थ को कैवल्य प्रदान कर भगवान् बुद्ध का स्वरूप दिया। जो बिहार तर्पण, ज्ञान, त्याग और प्रेम की धरती है! जिस धरती के वीरो के आगे सिकन्दर नत्मस्तक होकर भाग निकला। जिस बिहार की धरती पर आचार्य चाणक्य ने “अर्थशास्त्र” जैसे ग्रन्थ की रचना की। जिस बिहार से पटना साहिब जैसी पवित्र भूमि जुडी है। जो बिहार की धरती इस देश में आधे से अधिक प्रशासनिक अधिकारी (IAS officer) उत्पन्न करती है, उस बिहार से वर्तमान परिवेश में जो दुर्भाग्य जुड़ा है, वो पीछा छोड़ने का नाम हि नहीं ले रहा।
कभी मगध और पाटलिपुत्र के गठजोड़ से दुनिया भर में अपने ज्ञान और सम्रद्धि से सम्पूर्ण विश्व को चकाचौंध कर देने वाला बिहार आज अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है।
जातिवाद और मुसलिम तुष्टिकरण के नापाक अस्त्र का उपयोग करते हुए लालू प्रसाद यादव जी के भयानक रक्तपात और भ्रष्टाचार के काले अध्याय ने बिहार की सांसो में वो ज़हर घोला की बिहारियों का शीश हर समय झुका रहता था। लोग बिहारियों को हेय दृष्टि से देखना शुरू कर दिए थे। एक बड़े नेता का यह कहना कि “एक बिहारी सौ बीमारी” अपने आप में सारी कहानी और सच्चाई स्पष्ट कर देता है।
खैर बिहार के किस्मत ने उस समय करवट ली जब लालू प्रसाद यादव जी का भयानक और रक्तपात युक्त भ्रष्टाचारी राज ,जनता ने समाप्त किया और नितीश कुमार मुख्यमंत्री बने भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से। वैसे तो नितीश कुमार जी “सुशासन” बाबू के नाम से मशहूर हुए परन्तु बिहार कि किस्मत ना बदल सकी। सुशासन बाबू ने बिहार के विकास के स्थान पर अपने स्वार्थ पूर्ति को प्रथम कर्तव्य माना और अपनी महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए कभी भाजपा तो कभी आरजेडी अर्थात लालू जी कि पार्टी की गोद में बैठते रहे और यही कारण था कि लालू जी के सपूतो ने उन्हें “पलटू चाचा” के नाम से कुख्यात कर दिया।
पिछले विधानसभा चुनाव में “ये मेरा आखिरी चुनाव है” का संकेत देकर जनता कि भावनाओं से खेलने वाले नितीश कुमार अपनी महत्वकांक्षा को दबा नहीं पाये और अपने चरित्र् और प्रकृति के अनुसार एक बार फिर पलट कर लालू जी के सपूतो कि गोद में जा बैठे क्योंकि अब उनको देश का प्रधानमंत्री जो बनना था। नितीश कुमार जी ने बिहार के १० से ज्यादा कीमती वर्ष अर्थहीन करने और बिहार को उसके अंधकारमय भविष्य के साथ छोड़ अब देश के भविष्य को अंधकार में ढकेलने के लिए कमर कस लिया है।
अब ज़रा बिहार की वर्तमान स्थिति के ऊपर ज़रा दृष्टि डाले तो तीन घटनाओ ने नितीश कुमार और लालू जी के सपूतो कि मिली जुली सरकार के राज की भयानकता और अराजकता को उजागर कर दिया है जो निम्न प्रकार है:-
१:- नकली शराब कांड ने बिहार के कई परिवारों को उजाड़ दिया। शराब बंदी करने के पश्चात जो नकली और जहरीली शराब बनाकर लोगों तक पहुंचाने वाले दानव वर्ग पर वो लगाम नहीं लगा पाये जिसके कारण मैं परिवारो के लिए रोटी कमाने वाले लोग असमय काल के ग्रास बन गए। और जब नीतिश जी से पूछा गया तो उन्होंने अपने राजधर्म का पालन करते हुए कहा “पियोगे तो मरोगे” और अपना पल्ला झाड लिया।
२:-बिहार के बेरोजगार ने जब रोजगार कि माँग रखी तो बिहार कि सरकार ने उन पर लाठियां बरसा दी, बेचारे युवा अपने शरीर पर सरकार द्वारा दी गई चोटो से कराहते हुए सोच रहे हैं कि आखिर उनकी गलती क्या थी।
३:-कई महीनो से अपनी धरती को विकास के नाम पर सरकार द्वारा छीन लिए जाने पर मुवावजा कि माँग पर ८० दिनों से धरने पर बैठे अन्नदाताओ को उनके घर में आधी रात को बिहार पुलिस ने घुस कर जबरदस्त लाठीया बरसाई और उनके अरमानो को लहूलुहान कर दिया।
४:- नितीश कुमार जी ने एक बार फिर से सनातन धर्मी समाज को जातिवाद के जहर से बाटने का अपना महान कार्य शुरू कर दिया, जातिगत जनगणना शुरू कराकर।
५:- नितीश कुमार जी की सरकार यही नहीं रुकी अपितु उनके सरकार के शिक्षा मंत्री ने जातिगत युद्ध कराने की भी पृष्ठभूमि रच दी वो भी एक शिक्षा मंदिर में। ये विधायक हैं श्रीमान चन्द्रशेखर यादव। ये महाशय शिक्षा मंत्री है और अपनी शिक्षा का ज्ञान बाटते हुए उन्होंने विद्यालय के विद्यार्थियों के समक्ष महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित “श्री रामचरित मानस” को नफ़रत फैलाने वाला बतलाया।
६:- जब किसानों को पिटे जाने वाले मुद्दे पर जब लालू जी के सपूत होने के कारण बिहार के उप मुख्यमंत्री श्री तेजस्वी यादव जी से पूछा गया तो उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए कहा कि “मुझे जानकारी नहीं”।
७:- जब नितीश कुमार जी से उनके शिक्षा मंत्री के ज़हर घोलने वाले और जातिगत युद्ध भड़काने वाले वक्तव्य के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए और अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए कहा कि “उन्हें पता नहीं, मंत्री जी से पुछेंगे”!
अब आप स्वय उपर्युक्त तथ्यों के बारे में तनिक विचार किजिये कि ये नितीश कुमार प्रधानमंत्री बनना तो दूर कि बात क्या बिहार का मुख्यमंत्री बने रहने लायक हैं। मित्रों पहले जातिगत जनगणना कराने का निर्णय और फिर सनातन धर्मीयों के मध्य जातिगत युद्ध कराने वाले बयान देकर नितीश कुमार जी के सरकार ने अपना इरादा स्पष्ट कर दिया है।
और ऐसे हि लोगों के लिए हमारे शास्त्रों ने कहा है कि:-
मूर्खे नियोज्यमाने तु त्रयो दोषाः महीपतेः।
अयशश्र्चार्थनाशश्र्च नरके गमनं तथा॥
मूर्ख मानव की नियुक्ति करने वाले राजा के तीन दोष अपयश, द्र्व्यनाश और नरकप्राप्ति हैं।
आज बिहार कितनी भयानक परिस्थिति से गुजर रहा है, इस तथ्य का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपराध और भ्रष्टाचार को रोकने में विफल होने वाला मुख्यमंत्री ये कह कर कि “पियोगे तो मरोगे” अपने दायित्व से भाग जाता है। अपने पिता के परिश्रम का फल भोग रहा उप मुख्य मंत्री अपने राज्य में होने वाले बेरोजगारों की पिटाई और किसानों के दमन के बारे में कुछ नहीं जनता और वहीं शिक्षा मंत्री करोड़ो रामभक्तो की आस्था को अपने जहरीले मंतव्य और षड्यंत्र के तहत कुचलते हुए नफरत का बीज बो रहा है, और वो भी केवल इसीलिए कि एक विशेष मजहब का वोट उसे मिलेगा तथा हिन्दुओ को जाती विशेष में तोड़कर इनका भी वोट प्राप्त कर वह सत्ता और शक्ति का सुख भोगेगा।
हमारे शास्त्र एक राजा के उत्तरदायित्व को निम्न प्रकार से निरूपित करते हैं:-
प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम्।
नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम्।।
:- प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है; अर्थात् जब प्रजा सुखी अनुभव करे तभी राजा को संतोष करना चाहिए। प्रजा का हित ही राजा का वास्तविक हित है। वैयक्तिक स्तर पर राजा को जो अच्छा लगे उसमें उसे अपना हित न देखना चाहिए, बल्कि प्रजा को जो ठीक लगे, यानी जिसके हितकर होने का प्रजा अनुमोदन करे, उसे ही राजा अपना हित समझे।
अब ये बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री को किस प्रकार समझाया जाए, वो कौन सी भाषा है, जिसे वो समझते हैं। बिहार के शिक्षा मंत्री ने श्रीरामचरितमानस की जिस दोहे को लेकर विष से भरा वमन किया है, वो निम्न प्रकार है:-
“हर कहुँ हरि सेवक गुर कहेऊ। सुनि खगनाथ हृदय मम दहेऊ॥
अधम जाति मैं बिद्या पाएँ। भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ॥”
उत्तरकांड में यह काकभुशुंडी कौवा और गरुड़ दोनों पक्षीयो के मध्य हुए संवाद का हिस्सा है। जिसमें काकभुशुंडी गरुड़ से अपने गुरु और अपने मध्य के प्रकरण का उल्लेख कर रहे हैं।इसका अर्थ है: गुरुजी ने शिवजी को हरि का सेवक कहा! यह सुनकर हे पक्षीराज! मेरा हृदय जल उठा, नीच जाति (कौवा) का मैं विद्या पाकर ऐसा हो गया जैसे दूध पिलाने से साँप॥ यहां कौवारुपी काकभुशुंडी स्वय को नीच कह रहे है, लेकिन बिहार के शिक्षामंत्री ने बड़ी ही कुटिलता से और निम्न कोटि कि निकृष्ट मानसिकता का मनोरोग दर्शाते हुए और हिंदू समाज को बांटने के उद्देश्य से इस दोहे को अत्यंत हि घटिया ढंग से परिवर्तित कर दिया और केवल एक पंक्ति कहकर जहर फैलाया कि “अधम जाति में बिद्या पाएँ। भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ॥”
अब आप ध्यान से देखिये ऊपर दिए गए दोहे में यही पंक्ति कुछ इस प्रकार है” अधम जाति मैं बिद्या पाएँ। भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ॥ यंहा “अधम जाति मै” लिखा है जबकि विषाक्त चन्द्रशेखर ने इसको “अधम जाती में” पढ़ कर सुनाया जो को स्पष्ट रूप से इनके विषाक्त मंतव्य को सामने लाता है।
तो मित्रों इस प्रकार हम सबने देखा कि किस प्रकार बिहार को एक बार पुन: हिन्दुओ को आपस में लडाने की पूरी योजना बना ली गई है और समाज में जहरीले बयान देकर बस अग्नि प्रज्वलित करने का प्रयास किया जा रहा है, क्योंकि इनको लगता है कि हिन्दुओ के खून से हि इनको सत्ता का सुख मिल सकता है। खैर बिहार आतंकित है एक बार फिर कई वर्ष पीछे जाने के लिए।
लेखन और संकलन: नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)