अच्छा लेख लिखने के लिये जरूरी है कि लेख का एक केन्द्रीय विषय हो और लेख की शुरुवात किसी ऐसे प्रसंग, उदाहरण या quotation (उद्धरण) से किया जाये कि पाठक की रूचि लेख में बानी रहे। जरूरी नहीं कि इस शुरुवाती प्रसंग, उदाहरण या quotation (उद्धरण) का प्रत्यक्ष या किसी प्रकार का सम्बंध लेख के केन्द्रीय विषय से हो। पर आपको अपने लेख में उन शुरुवाती प्रसंग, उदाहरण या quotation (उद्धरण) को ऐसे जोड़ना है कि पाठक को पता चले कि आप ये जबरदस्ती कर रहे हैं।
ऐसे लेख लिखने और अपनी भाजपा-मोदी विरोधी कार्यक्रमों के लिये विख्यात हिन्दी समाचार चैनेल ndtv इंडिया के पत्रकार रवीश कुमार के लेखों के कायल तो उनके घोर आलोचक भी होंगे, ये जानते-मानते हुए भी कि उनके लेख विचारों और तथ्यों की कसौटी पर अक्सर फेल हो जाते हैं। अभी ndtv इंडिया पर भारत सरकार ने दूर-संचार नियमों के उलंघन करने के आरोप में सरकार के अंतर-मंत्रालयी समिति की अनुसंसा पर एक दिन का प्रसारण प्रतिबन्ध लगाया है। स्वाभाविक है कि ndtv और उसके तथाकथित पत्रकार, रवीश कुमार आदि इससे नाखुश हैं और उन्होंने अपनी नाखुशी अपने टीवी कार्यक्रमों और लेखों के माध्यम से जाहिर की है।
इसी क्रम में ndtv के ऑनलाइन पोर्टल khabar.ndtv.com पर 4 नवम्बर 2016 को रवीश कुमार का ब्लॉग-लेख– BMW कार दलितों को नहीं कुचलती है प्रधानमंत्री जी…लेख की शुरुवात हुई हाल ही में “रामनाथ गोयनका अवॉर्ड” कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के भाषण के एक अंश से जिसमे उन्होंने कहा कि ” ‘यह चिन्ता का विषय है. देश की एकता को बढ़ाने वाली चीज़ों पर बल कैसे दें. मैं उदाहरण देता हूं. मैं गलत हूं तो यहां काफी लोग बैठे हैं. अभी तो नहीं करेंगे, महीने के बाद करेंगे. पहले एक्सिडेंट होता था तो खबर आती थी कि फलाने गांव में एक्सिडेंट हुआ, एक ट्रक और साइकिल वाला इंजर हुआ और एक्सपायर हो गया. धीरे धीरे बदलाव आया, बदलाव यह आया कि फलाने गांव में दिन में रैश ड्राइविंग के द्वारा शराब पीया हुआ ड्राइवर निर्दोष आदमी को कुचल दिया. धीरे धीरे रिपोर्टिंग बदली. बीएमडब्लू कार ने एक दलित को कुचल दिया. सर मुझे क्षमा करना, वो बीएमडब्ल्यू कार वाले को मालूम नहीं था कि वो दलित है जी लेकिन हम आग लगा देते हैं. एक्सिडेंट की रिपोर्टिंग होना चाहिए. होना चाहिए. हेडलाइन बनाने जैसा हो तो हेडलाइन बनना चाहिए.: http://khabar.ndtv.com/news/blogs/ravish-kumars-blog-on-pm-modis-speech-at-ramnath-goenka-awards-1621345
अब मेरे जैसा साधारण बुद्धि-क्षमता का कोई भी आदमी ये समझ सकता है कि प्रधानमंत्री का आशय ये था कि— मीडिया कई बार ख़बरों को अनावश्यक sensationalize कर देता है और जरूरी मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया जाता है या दबा दिया जाता है।
लेकिन रवीश जी विद्वान हैं, intellectual हैं। इस लिए उन्होंने हमें बताया कि- प्रधानमंत्री नहीं चाहते कि दलितों के मुद्दे उठाये जायें। पर ऐसा करना जरूरी हैं और वो ऐसा कर के रहेंगे। उनका पूरा लेख (सिवाय आखिरी para के) इसी बिंदु के आस-पास घूमता रहा। लगभग 1500 सब्दों में उन्होंने गूगल से लेकर संविधान और क़ानून से लेकर सामाजिक व्यवस्था पर लेक्चर लिख दिया।
लेकिन आखिरी para में उन्होंने अपने मन की पीड़ा व्यक्त कर ही दी–नोटिस भेजने का दर्द छलक ही गया।
रवीश कुमार उस तथाकथित उदारवादी मीडिया का हिस्सा हैं जिसने संविधान से इतर खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ घोषित कर दिया है और जो खुद के लिए असीमित/अनियंत्रित अभिव्यक्ति की आज़ादी चाहता है पर अपनी आलोचना सुनने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि खुब (एकतरफा) लिखने-बोलने वाले उदारवादी सेक्युलर रवीश कुमार ने खुद को ट्विटर से एक साल पहले ही अलग कर लिया, क्योंकि वहाँ एकतरफा भाषणबाजी संभव नहीं था। तब रवीश कुमार ने कहा था कि ट्विटर पर इनटॉलेरेंस हो गया है और उनके आलोचक असल में सत्ताधारी पार्टी के पेड एजेंट हैं।
खैर, वर्तमान प्रसंग में- अभिव्यक्ति की आज़ादी न तो असीमित हो सकती है ना राष्ट्रीय सुरक्षा, संविधान और क़ानून से ऊपर। इस लिये अगर ndtv इंडिया ने नियमों का उलंघन किया है तो ना सिर्फ उसे सूचना-प्रसारण मंत्रालय द्वारा अनुसंशित सजा का पालन करना चाहिये, बल्कि उसे देश से माफ़ी भी मांगनी चाहिये।
रवीश कुमार जैसे वरिष्ठ पत्रकार को बताने की जरूरत नहीं कि पत्रकारिता का मूल होता है निष्पक्षता और तटस्था। अगर पत्रकार खुद को किसी मुद्दे में बाँध ले या किसी विशेष विचारधारा अनुसरण करने लगे तो फिर वो एक्टिविस्ट बन जायेगा। एक्टिविस्ट बनने में कुछ गलत नहीं, बस खुल के सामने आ जाना जरूरी है ताकि दर्शक-पाठक भ्रमित न हो।
आज का दर्शक-पाठक जागरूक हो गया है रवीश जी। आप जिस रंग के चश्मे को लगा कर समाचार लिखते-दिखाते हैं, जरूरी नहीं कि वो उसी रंग के चश्मे से उसे पढ़े-देखे। वो अब पढ़ता-सुनता-देखता है और फिर सोचता है कि आपके बताये-दिखाये खबर में कितना सच है और कितना वैचारिक पक्षपात।
देश का एक बड़ा वर्ग आज ये जानता-समझता है कि आप जैसे कई पत्रकारों-मीडिया के लाख कोशिश करने के बाद भी जनता ने इस सरकार को बहुमत दिया है। इस सरकार में पहले की तरह दलाली नहीं चलती। मंत्री तो क्या संत्री भी नहीं बनवा सकते। इस लिए ये सरकार पसंद नहीं। और इसी लिये बेवजह भी सरकार की आलोचना करनी ही है।
खैर, आपके लिये अच्छी खबर ये है कि ये सरकार “आपातकाल” नहीं लगाने वाली है। निडर होकर सरकार के खिलाफ प्रोपगैंडा करते रहिये। आप सब को “प्रोपगैंडा का पूरा अधिकार है”
बस एक बात का ध्यान रखियेगा– कानून के खिलाफ कुछ मत कीजियेगा। नहीं तो कानूनी कार्यवाई तो होगी जैसा आपके मित्र अरविन्द केजरीवाल ने कहा है— “ये भाजपा वाले किसी के नहीं है, अपने बाप के भी नहीं ”
P.S. आपके लेख शैली से प्रेरित आपका भूतपूर्व पाठक-दर्शक “रवि पवार”