आज का दर्शक-पाठक जागरूक हो गया है रवीश जी। आप जिस रंग के चश्मे को लगा कर समाचार लिखते-दिखाते हैं, जरूरी नहीं कि वो उसी रंग के चश्मे से उसे पढ़े-देखे। वो अब पढ़ता-सुनता-देखता है और फिर सोचता है कि आपके बताये-दिखाये खबर में कितना सच है और कितना वैचारिक पक्षपात।
मैं वैसे तो टीवी नहीं देखा परंतु पिछले दस दिन में आपका तीन कार्यक्रम देख लिया है। हर कार्यक्रम में एक बात जो सामान्य थी वो यह थी कि यदि सोशल मीडिया ना होता तो शायद आज भारत सोने की चिड़िया होता।