My question is when will this attitude of treating women as inferior to men change and evolve? For how long can we uphold the principles of patriarchy and continue to suppress a woman mentally, physically and sexually?
Whatever Jilebi-argument an Islamic apologist can give, the inherent problem of Islam is obvious like daylight. Either one is an exclusive, violent and intolerant Momin or a Munafiq/Mushrik/Kafir.
A minority community of Muslims can live in a non-Muslim majority country. Muslims there may follow the rules and laws made by the non-Muslims government there. But they can’t accept the rules and laws of Kafir from the bottom of their heart.
We have been so deeply secular, sensitive and frightened at the same time out of our brethren in minority that most of the time, in the remote of my village we had to re-course and redesign the religious processions and ritual according to their comfort and convenience.
वो अपनी इच्छानुसार बेंगलुरु, पूर्णिया, मालदा में भीड़ जुटाते हैं, मजहबी नारे लगाते हैं और अपने धर्म पर टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए आगजनी, दंगे करते हैं।
हमारे देश के अल्पसंख्यक कट्टर धार्मिक समूह ने धर्मनिरपेक्ष शब्द का अपने फायदे के लिए हमेशा गलत इस्तेमाल किया।वह चाहे शाहीन बाग हो या बाबरी मस्जिद। उनके इस कृत्य में हमारे देश के तथाकथित इतिहासकार और वामपंथी समूह ने बराबर साथ दिया।
अभी के कोरोना संकट में जो तब्लीगी जमात ने किया वो फिर से इस बात की पुष्टि करता है की मुस्लमान परिवार सहित मरने को तैयार है लेकिन भारत के कानून को नहीं मानेगा।
धर्म गलत करने को नहीं बोला लेकिन कुछ लोगों ने अपने फायदे या किसी उद्देश्य विशेष की पूर्ति के लिए द्वेष भावना पाली और अपने प्रभाव का प्रयोग करते हुए उसे फैलाया।