In our tradition the prayer is hardly ever for one’s own happiness and prosperity. It is always for collective happiness and the removal of everyone’s distress.
दुर्भाग्यवश आज मॉरल वेल्यू की किताब ने रामायाण, गीता की जगह ले ली हैं। हालात ऐसे हैं कि यदि कोई गलती से भी ये कह दे कि स्कूली पाठ्यक्रम में इन ग्रन्थों को शामिल किया जाए तो चारों ओर से सब राजनीति चमकाने में लग जायेंगे।