Friday, April 26, 2024

Hindi

साँस का खेल

मायूसी की मृगतृष्णा पर इतनी हताशा ठीक नहीं। छीन लो तुम अपनी ही साँसे ये तो इस जीवन की रीत नहीं।।

दर्जनों मेडल जितने वाली गीता सब्जी बेचने पर मजबूर

देेश एवं राज्य का नाम रोशन करने वाली वेस्ट बोकारो की खिलाड़ी गीता को कहां पता था की दर्जनों मेडल और आधा दर्जन पदक जीतने के बाद भी अपने मां-बाप और खुद के जीवन यापन के लिए सब्जी बेचकर पेट पालने की नौबत आ जाएगी। उसने तो पुलिस में जाकर देश और परिवार की सेवा करने का सपना देखा था मगर इस तरीके से गीता का सपना पूरा हो सकेगा क्या?

बौद्ध मत की वो बातें, जो बताई नहीं जाती (भाग 2)

बुद्ध एक समाज सुधारक की तरह थे, इसलिए उन्होंने अपने सबसे बड़े सिद्धांत को आर्य सत्य कहा है. वो भारत को पुन: उसकी आत्मा से मिलवाने आये थे. कालांतर में जब बौद्धों ने धर्म (रिलिजन वाला नहीं, सत्य और कर्तव्य वाला) का त्याग किया तो शंकराचार्य जी ने आकर हमारा मार्गदर्शन किया.

कड़वे ग्रास

पीटने और प्रताड़ित करने वाले राजनेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं होती, उनके जलवे ऐसे होते हैं कि राजनीतिक नेतृत्व भी उन्हें छेड़ने का खतरा मोल नहीं लेते। तबादले निलंबन या लाइन हाजिरी के रूप में सरकारी कर्मियों को ही सजा मिलती है। उन्हें जीवन भर अपमान का घूंट पीकर सब्र करना पड़ता है, जो सब्र नहीं कर पाते वे दुखद कदम उठा लेते हैं।

भारत में जातिवादी टकराव सच है या राजनीति

हाल के ही दिनों में दो प्रमुख घटनाएँ सामने आयीं है जिसे देख के लगता है की भारत में जातिवादी भावना भरी गई है ताकि हिन्दुओं में टकराव बना रहे और कुछ तथाकथिक धर्मनिरपेक्ष राजनितिक दल अपना प्रभाव और प्रभुत्व भारत में बना के रख सकें।

धुर्वीकरण की राजनीति से भारत का हितोपदेश

2014 के बाद देश कई तथाकथित राष्ट्र्वादी पत्रकार मैदान में उतरे हो जिसे उस बहुसंख्यक समाज ने ये मौका दिया जो तथाकथित महा उदारवादी पत्रकारों की न्यूज के व्यूज को गलत मान कर भी थाली में सरकाई रोटी खा रहा था।

पढ़े लिखे नौजवानों को दिहाड़ी मजदूर बनाने का जिम्मेदार कौन?

सिर्फ डिग्री लेने से ही योग्यता नहीं आती. ये कड़वी सच्चाई है कि भारत में ज़्यादातर पढ़े-लिखे युवा नौकरी करने के काबिल ही नहीं हैं. वो किसी प्रकार की परीक्षा में अपनी काबिलियत साबित नहीं कर पाते हैं.

6 सालों में ही केजरीवाल का राजनीतिक पतन और राष्ट्रीय राजनीति का अंत

केजरीवाल के पिछले कुछ सालों की राजनीति और फैसलों को देखें तो स्पष्ट होता है कि केजरीवाल ने खुद को दिल्ली तक सीमित रखने का फैसला कर लिया है। वरना केजरीवाल की शख्सियत रही है आरोप- प्रत्यारोप, मोदी विरोध, और फ्री आधारित राजनीति।

हरी चटनी और लाल सलाम

अब्दुल मियाँ की दुकान बढ़िया दूर से ही पहचान में आ जाती है। दसियों हरे झंडे दिखाई देते हैं। यही तो पहचान है जिसे गाँव के बुद्धिजीवी किलोमीटर से सूंघ लेते हैं।

साधुओं की पीड़ा- अतीत से लेकर वर्तमान तक

पालघर में साधुओं पर हुए हमले ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा, पर क्या यह पहली बार हुआ है जब हिन्दू साधुओं को निशाना बनाया गया है। हर साल हमे हिंदुओं तथा साधुओं पर हमले की खबरें सुनाई देती है पर चूँकि ये लोग किसी अल्पसंख्यक समुदाय से नहीं आते इन्हें मुख्यधारा में कोई स्थान नही मिलता।

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