राष्ट्र को परमवैभव पर ले जाने के जिस उद्देश्य को लेकर विजयादशमी के दिन नागपुर में प्रखर राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी।
वर्ष 1949 में हिंदी को हमारे देश में सर्वोच्च दर्जा प्राप्त हुआ और तब से हिंदी को हमारी राष्ट्रभाषा माना जाता है, भले ही हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे दिया गया हो लेकिन आज भी वह अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। इस संघर्ष पर विराम क्यों नहीं लग रहा?
उपराष्ट्रपति राजनीति से ऊपर हैं. वे संवैधानिक पद पर हैं. क्या ट्विटर अन्य संवैधानिक पदों पर बैठे अन्य व्यक्तियों अन्य नेताओं के साथ ऐसा दुर्व्यवहार कर सकता है?
हमें यह बात नहीं भूलना चाहिए कि पर्यावरण की अनदेखी के कारण ही आए दिन भूकंप और खतरनाक समुद्री तूफान जनजीवन को नष्ट कर रहे है। जब तक पर्यावरण शुद्ध है, तभी तक समाज जीवित है।
कोरोना की प्रथम लहर की भांति दूसरी लहर में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक अनुषांगिक संगठन सेवा भारती सहित अन्य सबन्धित संगठन व संस्थाओं के माध्यम से प्रभावित परिवारों व जरूरतमंदों को सहायता उपलब्ध करवाने के कार्य में जुटे हुए हैं।
वीर सावरकर एक व्यक्ति नहीं, एक विचारधारा थे। चाहे जेल में हों, चाहे नजरबंदी में हों, चाहे खुले मैदान में, प्रखर राष्ट्रवाद की लौ उनमें सदैव जलती रही। इस जिंदा शहीद ने कभी भी अपने सिद्धांतों और अपनी विचारधारा के साथ समझौता नहीं किया।
देश में शिक्षा के नाम पर राजनीति करना यह आमचलन हो गया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विद्या भारती से जुड़े स्कूलों की तुलना पाकिस्तानी कट्टरपंथी मदरसों से करना कतई सोभनीय नही है.