हिंदी की पुस्तक ‘रिमझिम’ को पढ़ते हुए लगता है देवनागरी लिपि में उर्दू और अंग्रेजी को पढ़ रहे हैं। इन शब्दों को बलात डाला गया है, जबकि इनके स्थान पर हिंदी के लोकप्रिय शब्द हिंदी में उपलब्ध हैं। लेकिन नरैटिव चलाने वालों के दिमाग में हिंदी है ही कहां?
क्या ये तथाकथित आंदोलनकारी इतने फौलादी हो गए हैं कि इनसे निपटने के लिए आपके तरकश में कोई तीर नहीं है। क्या मौलवी इतने ताकतवर हो गए हैं कि किसी भी फ्लाईओवर पर मजारों के नाम पर सरकारी जमीनों पर कब्जा कर लें।
क्यों राजनैतिक नेतृत्व इन अराष्ट्रीय गतिविधियों के प्रति घोर उदासीन बना हुआ है। उसकी क्या सियासी मजबूरियां हैं। क्या वह जानबूझकर इन घटनाओं को अनदेखा कर रहा है? क्या हिंदू समाज को कमजोर करने में ही उसे अपनी सियासत नजर आ रही है?
गहलोत-पायलट युग्म सरकार को राजस्थान में महज अभी आठ-नौ महीने ही हुआ है, लेकिन जिस तरह इस युग्म सरकार का एक खास समुदाय के प्रति तुष्टिकरण हो रहा है, उससे लगता है आने वाले दिनों में प्रदेश में कानून और व्यवस्था के हालात बेकाबू होने वाले हैं।