भारतीय इतिहास के एक ऐसे ज्योतिपुंज जिन्होंने अंधियारी सदियों को प्रकाशित किया- वे थे बाबासाहेब
भारत में जिन्होंने संतप्त और पीड़ित मानवता के कल्याण के लिए स्वयं के शरीर को चंदन की तरह घिसा है- वह थे बाबासाहेब
व्यक्ति स्वतंत्र्य और शिक्षा के द्वारा समता और न्याय प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हुए स्वर्ण की तरह जिन्होंने स्वयं को तपाया है- वे थे बाबासाहेब
वंचितों के लिए अधिकार न्याय, समता, स्वतंत्रता और शिक्षा के महान यज्ञ में समिधा बनकर स्वयं को जिन्होंने जलाया है -वे थे बाबासाहेब
हिंदू विचार जो "बहुजन हिताय" से कहीं आगे "सर्वजन हिताय" की बात करता है किंतु काल के प्रवाह में विकृति ने संस्कृति को प्रतिस्थापित कर दिया इसका परिणाम यह हुआ कि समाज व्यवस्था में विषमता का विष घुलता गया। अन्याय, अवमानना, उपेक्षा की सोच ने अपने ही समाज बंधुओं को दलित बना दिया। इस दौरान दलित समाज की चेतना कुंठित तो हुई किंतु समाप्त ना हुई। समाज ने फिनिक्स पक्षी की तरह अपनी ही राख से पुनः उत्पन्न होकर जीवन जीने का प्रयास निरंतर जारी रखा।
स्वातंत्र्य पूर्व के 30- 40 वर्ष तक भारत में चार व्यक्तित्व भारत की जनता को प्रमुखता से प्रभावित करते रहे। यह चारों ही पाश्चात्य शिक्षा से शिक्षित व्यक्तित्व थे।
He accepts matter in nature as real. In this way, he was closer to Materialism but still, he says no to Marxism. He maintained that religion is necessary for man. He was a socialist, he held that the individual is an end in himself.