Sunday, November 3, 2024

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Nirbhaya rape case

बस! अब और नहीं!

चाहे निर्भया कांड हो या कठुआ। उन्नाव की घटना हो या हाथरस। सब में मानवीय विकृति साफ झलकती है। इन घटनाओं की जितनी भी निंदा की जाय, कम है।

कौन जिम्मेदार…?

अपराधों में संलिप्त लोगो के साथ वह समाज भी उतना ही जिम्मेदार होता है जो छेड़खानी, लड़के-लड़कियों की आवारागर्दी और सरेराह बेशर्मी जैसी घटनाओं को सामान्य समझकर नज़रअंदाज़ करता है,और फिर बलात्कार होने के बाद पूछता है की कौन जिम्मेदार....?

Delhi crime & the brutalization of a society

Brutalization of society and individuals is a subject as old as the hills and in any history of the world we will find that it is the brutes that have dominated its pages, while the reconcilers are few and far between.

It’s high time we stop blaming the government for rapes

The opposition going ballistic over the government’s inability to “control” rapes sounds childish.

वो आग जो धुंधली पड़ गयी

क्योंकि वह एक महिला है, सुरक्षित नहीं रह सहती? खुलेआम स्वतंत्र सड़कों पर चल नहीं सकती? दस लोगों के बीच बैठ नहीं सकती, जिसे हम समाज कहते है?

Have our lawmakers learnt anything after Nirbhaya?

Apart form giving tough and quick punishment to the rapist, there are other loopholes which need to be worked upon.

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