एक ऐसा ग्रन्थ जिसके विषय में स्वयं श्री वेदव्यास कहते हैं, “यन्नेहास्ति न कुत्रचित्” अर्थात जो महाभारत में नहीं है वो कहीं नहीं है। जिस ग्रन्थ का उपक्रम मनुष्यों को उनके अंतःकरण पर विजय प्राप्त कराने के लिए किया गया है, हम उसी को नहीं पढ़ते, न घर में रखते हैं।