एक बार धर्मान्तरण कर लिया तो हिन्दू लड़की को विवाह से मिलने वाले सारे अधिकार खो दिए, शरई अदालत के सामने तो उनकी अपनी औरतें ही लाचार हैं, धर्मान्तरित को क्या अधिकार मिलेगा?
समाज को समझने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए कि अधिकांश मुस्लिम पुरुषों का प्रेम मजहबी अभियान के अपेक्षा निम्न स्तर का है, जिसका हम साफ-साफ अर्थ यह समझ सकते हैं कि यह इस्लाम के विस्तार हेतु किया गया नापाक कोशिश है। इस मजहबी फैलाव के नाम पर धोखे को सभ्य समाज कब तक नजर अंदाज करेगा?