तथाकथित उदारवादियों और वामपंथियों ने अत्यंत सूक्ष्मता से हम सनातन लोगों के मानस में उस प्रत्येक व्यक्ति, प्रक्रिया, स्थान, विचार, संस्कार, परंपरा के प्रति अनासक्ति उत्पन्न की है जो हमें हमारी पहचान या मूल से जोड़ता है. हमें अपने अस्तित्व के प्रति आस्थावान बनाता है.