गांधी के जाति मुक्त भारत की परिकल्पना को आज के गांधीवादियों द्वारा ही घुरे पर फेंक जातीय जनगणना की स्वीकृति दी गई। इसे धार्मिक कट्टरता के दुष्परिणामों की प्रतिक्रिया स्वरूप जन्मी सामाजिक एकता को जातीय कट्टरता मे परिवर्तित कर सामाजिक विभाजन द्वारा निर्बल करने की साज़िश के रूप मे देखा जाना चाहिये।
हमारी गिरावट और अंग्रेजों का उत्थान एक दुसरे के पूरक रहे क्योंकि जैसे जैसे हमारी सामाजिक व्यवस्थाओं से छेडछाड़ हुई और हमें तोड़ा गया हम आर्थिक मोर्चों पर कमजोर हुए, राजनीतिक क्षेत्र में परतंत्र हुए और हमारी मौलिक आजादी भी छीन ली गयी।