भारतीय संस्कृति के बारे में इतिहासज्ञों एवं विद्वानों के पास एक भी प्रमाण ऐसा नहीं है कि जो इस सनातन संस्कृति को संकीर्ण, परंपरावादी, धर्मांध, नारी विरोधी एवं दलित विरोधी साबित कर सके। किंतु, जब भी कोई दुष्कर्म जैसी घटना होती है तो उसके तमाम संदर्भों को भुलाकर चोट केवल सनातन के प्रतीकों पर होती है।
पत्रकारिता को बेचने वाले वामपंथियों के झूठ से त्रस्त होकर लोग अब राइट की ऒर रुख कर रहे हैं। जब तक राइट विंग मीडिया एक 'सुर में गाने' का अभ्यास नहीं करेगी तब तक राइट कि आवाज़ लोगों तक नहीं पहुंचेगी।