फ्रांस की दुर्घटना मानवता के नाम पर वो कलंक है जो आने वाले समय मे एक ऐसा मानक तो स्थापित कर ही देगा कि तथाकथित शांति समुदाय के शरणार्थियों को शरण देने के लिए कितनी बार सोचें या उनके बारे में सोचने की प्रक्रिया ही निरस्त कर दी जाए।
जिन्हें आप मजदूर कह रहे हो वो सनातन परंपरा के लघु एवं कुटीर उद्योग के सर्वेसर्वा थे, जिनके सपनों को लाल सलाम के गमछे में लपेटकर बेच दिया गया, अब इनकी संवेदनाओं को बेचकर बाज़ारवाद अपनी झोली भर रहा है।