कल्याण सिंह स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े जनांदोलन श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के अगुआ और नायक मात्र ही नहीं थे। उन्होंने भारतीय राजनीति की दिशा तय की, राजनीति में सफलता के प्रचलित मानक एवं प्रतिमान बदले।
इक्कीसवीं सदी भारतीय ज्ञान-विज्ञान-विचार-परंपरा की सदी है। कम-से कम 21 जून को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय योग-दिवस और उसे मिलने वाला विश्व-बिरादरी का व्यापक जन-समर्थन यही संकेत और संदेश देता है।
शिवाजी का उदय केवल एक व्यक्ति का उदय मात्र नहीं था, बल्कि वह जातियों के उत्साह और पुरुषार्थ का उदय था, गौरव और स्वाभिमान का उदय था, स्वराज, सुराज, स्वधर्म व सुशासन का उदय था और इन सबसे अधिक वह आदर्श राजा के जीवंत और मूर्त्तिमान प्रेरणा-पुरुष का उदय था।
संघ विचार-परिवार जिस सुदृढ़ वैचारिक अधिष्ठान पर खड़ा है उसके मूल में माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरूजी के विचार ही बीज रूप में विद्यमान हैं। संघ का स्थूल-शरीरिक ढाँचा यदि डॉक्टर हेडगेवार की देन है तो उसकी आत्मा उसके द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी के द्वारा रची-गढ़ी गई है।
शुतुरमुर्गी सोच आत्मघाती होगी, आँखें खोलकर देखिए आपके आस-पड़ोस में रोज एक 'रिंकु' मारा जा रहा है, रोज एक 'निकिता' तबाह की जा रही है, रोज एक 'नारंग' 'ध्रुव तिवारी' इनकी जिहादी-ज़ुनूनी-मज़हबी हिंसा का शिकार हो रहा है।
कश्मीरी अवाम ने विगत 17 महीनों में जिस शांति, सद्भाव, सहयोग, समझदारी, परिपक्वता एवं लोकतांत्रिक भागीदारी का परिचय दिया है, दरअसल उसे ही भारत के लोकप्रिय एवं यशस्वी प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटलबिहारी बाजपेयी ने कश्मीरियत, जम्हूरियत, इंसानियत का नाम दिया था और यह निर्विवाद एवं अटल-सत्य है कि कश्मीरी पंडितों एवं ग़ैर मज़हबी लोगों को साथ लिए बिना वह कश्मीरियत-जम्हूरियत-इंसानियत आधी-अधूरी है।