बाबरी के गुस्से से दंगो को जस्टिफाई करने वालों ये बताओ की जून 1851 में "माइनॉरिटी"-पारसी दंगो को कैसे जस्टिफाई करोगे? बस एक छोटा सा लेख ही तो लिखा था "चित्रा दिनन दर्पण" नामक मैगजीन ने।
चुनाव खत्म हुए, परिणाम घोषित हुआ और फिर शुरू हो गया असली खेल। इस बार खेल सत्ता का नहीं गांधी परिवार को उस हार के जिम्मेदारी से बचाने का खेल शुरू हुआ है।
दो गिद्ध अपनी हैवानियत साबित करने जब इंसानों की भीड़ में पहुँचे, एक स्वर में बोले- "हम दोनों ही अपनी हार स्वीकार करते हैं। आज हमारा घमण्ड चूर चूर हो गया। इंसानी बुद्धिजीवियों की भीड़ थी वहां पर"।