सिर्फ डिग्री लेने से ही योग्यता नहीं आती. ये कड़वी सच्चाई है कि भारत में ज़्यादातर पढ़े-लिखे युवा नौकरी करने के काबिल ही नहीं हैं. वो किसी प्रकार की परीक्षा में अपनी काबिलियत साबित नहीं कर पाते हैं.
देश के बुद्धिजीवी और खुद को आम जनता का हमदर्द बताने वाले नेता इतने पत्थरदिल कैसे हो सकते हैं, कि उन्हें वर्षों तक कश्मीरी पंडितों का दर्द ही दिखाई ना दे..? अगर कश्मीरी पंडितों की ऐसी ही स्थिति बनी रही, तो उनका अस्तित्व ही मिट जाएगा और इसके ज़िम्मेदार हम सब होंगे।
पिछले सौ सालों में वामपंथी सोच के कारण मानवता के शरीर पर अनेक घाव लगे हैं. आज के दिन 31 वर्ष पहले थियानमेन चौक पर जो बर्बरता हुई, वो आने वाली पीढ़ियों को वामपंथ के वास्तविक चेहरे का परिचय कराती रहेगी.
1962 की हार सेना की हार नहीं थी बल्कि राजनैतिक नेतृत्व की हार थी। राजनैतिक नेतृत्व में गलतियां की थी इसकी वजह से हुआ था। 1962 में चीन के साथ युद्ध से ठीक पहले यही हो रहा था। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और जनरल थिमैया से जुड़ी हुई कहानी है।
इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना केरल के मलप्पुरम जिले की है यहां एक गर्भवती भूखी हथनी को पटाखे भरे अनानास खिलाने से मौत हो गयी। इस घटना के बाद देश भर में गुस्सा है।