Wednesday, April 24, 2024
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भारतीय रूपए का ECS से UPI तक का सफर: PART-1 

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

मित्रों वित्तीय प्रणाली अर्थात बैंकिंग प्रणाली से संबंधित वित्तीय प्रणाली से तो आप थोड़ा बहुत परिचित अवश्य होंगे। हम लोगो के मस्तिष्क में अक्सर ये जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि आखिर बैंक को आय कँहा से आती हो? मित्रों ये कोई अत्यंत पेचीदा प्रश्न नहीं है, बैंक में आप और हम तथा हमारे जैसे करोड़ो ग्राहक जो अपने परिश्रम की कमाई जमा करते हैं, बैंक उन्हीं पैसों को जरूरतमंद लोगों को निर्धारित ब्याज की दर से ऋण के रूप में प्रदान करता है, अत: ऋण लेने वाले ग्राहकों के द्वारा दी गयी ब्याज की राशि में से कुछ हिस्सा आपको और हमें देता है तथा बाकि का हिस्सा उसकी आय होती है। अब बैंक में यदि खाता (Account) है तो कोई भी व्यक्ति आपके खाते में पैसे आपकी ओर से जमा करा सकता है, परन्तु आपके खाते में से पैसे निकालने के लिए आपकी विशेष आवश्यकता पड़ती है। 

पहले चेक बुक के रूप में मिलने वाला चेक ही एक माध्यम हुआ करता था, अपने खाते में से (स्वयं के लिए अथवा किसी अन्य को देने के लिए) पैसे निकालने के लिए फिर १९८७ ई में आया ATM अर्थात Automated teller machine इस संगणित विद्युतीय प्रक्रिया ने बैंकिंग प्रणाली में लेन देन के क्षेत्र में क्रांति ला दी। अब बैंक में जाये बिना आप बैंक के द्वारा दिए गए डेबिट कार्ड के माध्यम से अपने बैंक के  ATM से पैसे निकाल सकते थे। इसमें भी कालांतर में सुधार किया गया और १९९७ में, भारतीय बैंक संघ (आईबीए) ने भारत में साझा एटीएम का पहला नेटवर्क “स्वधन” (SWADHAN) स्थापित किया। इस नेटवर्क प्रणाली की देख रेख, प्रथम पांच वर्ष के लिए, इंडिया स्विच कंपनी (ISC) के हाथों में सौप दिया गया और इस नेटवर्क प्रणाली से  कार्डधारकों को नेटवर्क में किसी भी एटीएम से नकदी निकालने की अनुमति दी गई थी, यदि उनके पास एटीएम के स्वामित्व वाले बैंक में खाता नहीं था।

वर्ष २००२ में, भारतीय बैंक संघ (आईबीए) के ५३ सदस्य बैंकों के १००० से अधिक “एटीएम” इस नेटवर्क प्रणाली से जुड़े थे। यह नेटवर्क प्रति दिन २५0,000 लेनदेन को संभालने में सक्षम था, लेकिन प्रत्येक दिन लगभग ₹१00,000 मूल्य के केवल ५000 लेनदेन हुए। इसके विपरीत, आईसीआईसीआई बैंक के लगभग ६४० एटीएम के नेटवर्क ने प्रत्येक दिन लगभग ₹२0,000,000 के लेनदेन को संभाला। इंडिया स्विच कंपनी (ISC) के साथ अनुबंध समाप्त होने के बाद, भारतीय बैंक संघ (आईबीए) को इस गैर-किफायती नेटवर्क प्रणाली SWADHAN का प्रबंधन करने के लिए कोई नहीं मिला अत: दिनांक ३१ दिसंबर २००३ को इसे बंद कर दिया गया।

स्वधन के पतन के बाद, बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और सिंडिकेट बैंक ने “कैशट्री” (CASHTREE ) नामक एक एटीएम-शेयरिंग नेटवर्क का गठन किया। सिटी बैंक, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक और एक्सिस बैंक ने “कैशनेट” (CASHNET) नामक एक समान नेटवर्क का गठन किया।

पंजाब नेशनल बैंक और केनरा बैंक ने भी ऐसे नेटवर्क बनाए। अगस्त २००३ में, IDRBT (The Institute for Development & Research in Banking Technology i.e. IDRBT) ने घोषणा की कि वह देश के एटीएम को एक नेटवर्क में एक साथ जोड़ने के लिए राष्ट्रीय वित्तीय स्विच (National Financial Switch i.e. NFS) का निर्माण करेगा। आईडीआरबीटी ने यूरोनेट वर्ल्डवाइड और ओपस सॉफ्टवेयर के साथ सहयोग किया ताकि बैंकों को अपने स्वयं के स्विच को एनएफएस से जोड़ने की अनुमति मिल सके। एनएफएस में एक इंटर-एटीएम स्विच और एक ई-कॉमर्स पेमेंट गेटवे शामिल था।

आईडीआरबीटी द्वारा दिंनाक २७ अगस्त २००४  को तीन बैंकों, कॉर्पोरेशन बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम को जोड़ने के लिए राष्ट्रीय वित्तीय स्विच नामक नेटवर्क प्रणाली शुरू किया गया था। IDRBT ने तब भारत के सभी प्रमुख बैंकों को बोर्ड पर लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य करते हुए दिसंबर २००९ तक, देश के ३७ बैंकों के ४९,८८० एटीएम को जोड़ने के लिए इस नेटवर्क का फैलाव किया, जिससे देश में साझा एटीएम का सबसे बड़ा नेटवर्क राष्ट्रीय वित्तीय स्विच  NFS के रूप में अस्तित्व में आया।

भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा दिनांक १५ अक्टूबर २००९ को दिए गए आदेश के आधार पर National Payments Corporation of India (NPCI) ने दिनांक १४ दिसंबर २००९ को बैंकिंग प्रौद्योगिकी विकास और अनुसंधान संस्थान (IDRBT) से राष्ट्रीय वित्तीय स्विच (एनएफएस) के  संचालन और प्रबंधन के कार्य  को ‘जहां है जैसा है’ आधार पर अपने हाथो में ले लिया।

अब इस प्रणाली से लोगो को कई सुविधाएं हो गयी जैसे पैसे निकलना, बचत की जाँच करना, पिन पंजीकृत करना, पैसे का लें दें करना इत्यादि। पर ATM से सुविधाएं तो मिली परन्तु यह सब एक सिमित दायरे में हो सकता था अत: बड़े पैमाने पर आसानी से लेन देन के लिए किसी और प्रणाली को विकसित करने की आवश्यकता महसूस हुई और इस आवश्यकता ने जन्म दिया ECS (Electronic Clearance Service) को जन्म दिया।

Electronic Clearance Service: 

इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरेंस सर्विस (ईसीएस) योजना बैंकों/कंपनियों/निगमों /सरकारी विभागों द्वारा ब्याज/वेतन/पेंशन/कमीशन/लाभांश/वापसी के आवधिक (मासिक/त्रैमासिक/अर्धवार्षिक/वार्षिक) भुगतान जैसे थोक (Bulk) में भुगतान/ लेनदेन करने का एक वैकल्पिक तरीका प्रदान करती है। इस योजना के तहत लेन-देन एकल उपयोगकर्ता स्रोत (अर्थात बैंक/कंपनियां/निगम/सरकारी विभाग) से बड़ी संख्या में गंतव्य खाता धारकों (ग्राहकों/निवेशकों) तक जाते हैं। यह योजना कागजी लिखतों (जैसे चेक इत्यादि ) को जारी करने और संभालने की आवश्यकता को समाप्त करती है और इस प्रकार बैंकों और कंपनियों/निगमों/सरकारी विभागों द्वारा थोक में भुगतान करने वाली बेहतर ग्राहक सेवा की सुविधा प्रदान करती है।

इस पूरी प्रक्रिया को NACH या नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस नामक क्लियरिंग हाउस द्वारा प्रबंधित और संचालित किया जाता है। इसे वर्ष १९९० में प्रथम बार उपयोग में लाया गया। परन्तु जैसा कि आप जानते हैं कि यह थोक में और बड़े स्तर पर भुगतान करने की सुविधा देने वाली प्रणाली थी अत: फुटकर और त्वरित भुगतान करने के लिए उतना उपयोगी नहीं थी। 

इसके पश्चात वर्ष २००४ में IRDBT (The Institute for Development & Research in Banking Technology) RTGS अर्थात Real Time Gross Settlement) प्रणाली को अस्तित्व में लेकर आयी: “आरटीजीएस” का संक्षिप्त नाम रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट है। आरटीजीएस प्रणाली एक फंड ट्रांसफर तंत्र है जहां धन का हस्तांतरण “वास्तविक समय” और “सकल” आधार पर एक बैंक से दूसरे बैंक में होता है। यह बैंकिंग चैनल के माध्यम से सबसे तेज़ धन अंतरण प्रणाली है। “वास्तविक समय” में निपटान का अर्थ है कि भुगतान लेनदेन किसी प्रतीक्षा अवधि के अधीन नहीं है। जैसे ही वे संसाधित होते हैं, लेन-देन व्यवस्थित हो जाते हैं।

“ग्रॉस सेटलमेंट” का अर्थ है कि लेन-देन का निपटारा एक-से-एक आधार पर बिना किसी अन्य लेन-देन के बंचिंग के किया जाता है। यह ध्यान में रखते हुए कि धन हस्तांतरण भारतीय रिजर्व बैंक की पुस्तकों में होता है, भुगतान को अंतिम और अपरिवर्तनीय माना जाता है। परन्तु इसमें परेशानी ये थी कि रूपये २ लाख या इससे अधिक के लेन  देन के लिए इस प्रणाली का उपयोग किया जाता था, अत: रुपये २ लाख से निचे वाले लेन देन के लिए इसका उपयोग नहीं किया जा सकता था।

इसके पश्चात वर्ष २००५ में NEFT अर्थात National Electronic Fund Transfer प्रणाली अस्तित्व में आई। इस प्रणाली के अंतर्गत आरबीआई की एनईएफटी सेवा का उपयोग करते हुए अन्य सहभागी बैंक के साथ क्रेडिट खाते में धनराशि स्थानांतरित की जाती है। आरबीआई सेवा प्रदाता के रूप में कार्य करता है और क्रेडिट को दूसरे बैंक के खाते में स्थानांतरित करता है। अब इसमें रुपये २ लाख से कम की राशि का भुगतान आसानी से बड़े ही अल्प समय में किया जा सकता है। इस प्रणाली के अंतर्गत लेनदेन के १ घंटे के भीतर धनराशि आरबीआई को भेज दी जाती है। लाभार्थी को क्रेडिट करने में लगने वाला वास्तविक समय लाभार्थी बैंक द्वारा भुगतान की प्रक्रिया में लगने वाले समय पर निर्भर करता है।

अब यंहा पर RTGS और NEFT में एक जो सबसे बड़ी समस्या थी और वो थी Beneficiary को जोड़ना, जसके लिए उसका बैंक अकाउंट, IFSC No., बैंक का नाम इत्यादि जोड़ना पड़ता था, और इन सबकी अनुपस्थिति में आपका लेन देन नहीं हो पाता था। इसके साथ ही ये सिमित समय के लिए उपलब्ध थे अर्थात बैंक के कार्य दिवस और कार्य करने वाले घंटो के हिसाब से उपलब्ध थे। अत: इससे भी अधिक सुविधाजनक प्रणाली पर कार्य शुरू हुआ।

इसके पश्चात वर्ष २०१० में IMPS (Immediate Payment Service) भुगतान प्रणाली अस्तित्व में आयी:- आईएमपीएस एक और रीयल-टाइम भुगतान सेवा है, लेकिन विशिष्ट कारक यह है कि आईएमपीएस 24/7 उपलब्ध है और आप बैंक छुट्टियों पर भी सेवा का लाभ उठा सकते हैं। IMPS का उपयोग करके, आप तुलनात्मक रूप से कम राशि, रुपये 2 लाख तक तुरंत स्थानांतरित कर सकते हैं। आप IMPS को फंड ट्रांसफर मोड के रूप में सोच सकते हैं जिसमें RTGS और NEFT दोनों की बेहतरीन विशेषताएं हैं। आप तत्काल परिणामों के साथ, जितनी बार चाहें उतनी कम राशि स्थानांतरित कर सकते हैं। हालाँकि IMPS सेवाओं का उपयोग ज्यादातर ऑनलाइन किया जाता है, कुछ बैंक SMS सेवाएँ प्रदान करते हैं। यह देखने के लिए अपने बैंक से संपर्क करें कि क्या वे एसएमएस के माध्यम से आईएमपीएस हस्तांतरण का समर्थन करते हैं।

IMPS सेवा भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा प्रदान की जाती है। उनकी सेवाएं ग्राहकों को बैंकों और प्रीपेड भुगतान साधन (पीपीआई) जारीकर्ताओं दोनों के माध्यम से धन हस्तांतरित करने की अनुमति देती हैं। पीपीआई ऐसे उपकरण हैं जो आपको पीपीआई में संग्रहीत मूल्य का उपयोग करके सामान और सेवाएं खरीदने या फंड ट्रांसफर शुरू करने की अनुमति देते हैं। पीपीआई के कुछ उदाहरणों में स्मार्ट कार्ड, मैग्नेटिक स्ट्राइप कार्ड, डिजिटल वॉलेट और वाउचर शामिल हैं। जिन व्यक्तियों का बैंक खाता नहीं है वे पीपीआई का उपयोग करके आईएमपीएस द्वारा निधि अंतरण कर सकते हैं।

मित्रों शब्दों की मर्यादा है अत: इस भाग में इतना ही शेष चर्चा हम अगले भाग में. करेंगे।
लेखन और संकलन :- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता) [email protected]

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