Wednesday, April 24, 2024
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और जिम्मेदार लोग इतिहास कि इस समीक्षा से आसानी से बच के निकल गए।

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Shivam Kumar Pandey
Shivam Kumar Pandeyhttp://rashtrachintak.blogspot.com
Ex-BHUian • Graduate in Economics• Blogger • IR& Defence ,Political and Economic Columnist..

सन 1947, 15 अगस्त भारत आजाद हुआ चारों तरफ खुशहाली थी मिठाईयां बांटी जा रही थी भारत माता की जय के नारे लग रहे थे तो कहीं इंकलाब जिंदाबाद! ब्रिटिश राज का सूपड़ा साफ हो चुका है वह जा चुके हैं। पर जाते-जाते उन्होंने अपना एक और मकसद पूरा कर दिया था भारत की बर्बादी उस बर्बादी का नाम है पाकिस्तान- एक इस्लामिक राष्ट्र अर्थात भारत का बंटवारा हो गया। माता खंडित हो गई। इसमें अहम भूमिका भारत के उन नेताओं ने निभाई जो कहा करते थे। भारत का बटवारा हमारी लाशो से गुजर कर होगा,बड़ी-बड़ी बातें हुआ करती थी समय आया तो कोई अनहोनी को रोक नहीं पाया मजहब के आधार पर एक मुल्क बन गया।

पाकिस्तान 14 अगस्त को आजाद हुआ। भारत ने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया सभी धर्मों को यहां रहने की आजादी मिली भले ही पाकिस्तान से हिंदुओं का पलायन जारी रहा बंटवारे के वक्त इतना खून खराबा रक्तपात हुआ था कि लाखों लोग मारे गए थे। “भारत का बंटवारा हुआ भारतीयों के लाशों से सत्य अहिंसा की बातें करने वाले देख रहे थे खामोशी से” एक सवाल आज ही उठता रहता है। नेहरू को हिंद मिला जिन्ना को पाक मिला। शहीद भगत सिंह के सपने वाले भारत को क्या मिला?

हमें सुखदेव और राजगुरु को भी नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने भगत सिंह के साथ ही हंसते हुए फांसी के फंदे को गले लगाया था कि मातृभूमि का उद्धार हो सके। पर इन्हें क्या मालूम था आने वाले समय में भारत के टुकड़े हो जाएंगे। चंद्रशेखर आजाद रामप्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के अन्य क्रांतिकारी साथियों के बलिदानों को भुलाया नहीं जा सकता इनके विचारों ने देश में जागृति लाने का काम किया जिससे लोगों के विश्वास हो गया कि अब ब्रिटिश राज का वक्त खत्म होने को आया है पर किसी ने ख्वाबों में भी नहीं सोचा होगा आने वाले समय में यह दिन भी देखने को मिलेगा अपने ही सपूतों के सामने माता टूट के बिखर जाएगी और पूरे भारत को रक्त के आंसू बहाने पड़ेंगे। आजादी के नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस कहां करते थे “आजादी छीन कर हासिल होती है मांग कर नहीं तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” काश इस कथन का बाकी लोगों ने भी समर्थन किया होता शायद ये बर्बादी देखने को नहीं मिलती।

एक नाम को लोग हमेशा रटते रहते है महात्मा गांधी ये वो शख्सियत है जिसके जिक्र के बिना ये विवाद अधूरा रह जाता है। कुछ लोग कहते है देश के बटवारे को गांधी जी चाहते तो रोक सकते थे अगर वो नेहरू और जिन्ना के जिद्द के आगे झुकते नहीं। वो चाहते तो सरदार वल्लभाई पटेल का समर्थन कर उन्हें प्रधानमंत्री पद दिलवा कर सारे फसाद की जड़ नष्ट कर सकते थे पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले गांधी जी के सामने ऐसी क्या परिस्थिति आ पड़ी कि वो कुछ नहीं कर पाए और मजहब के आधार पर देश बट गया।गांधी जी की चर्चा तो हर महफ़िल में होती है कोई इनको आदर्श बताता है तो कोई गाली देता है। बिना गांधी के किसी काम नहीं चलता है कोई इन्हें दिल में रखता है तो कोई जेब में। कुछ तो ऐसे है गांधी की तरह दिखने की कोशिश करते है नकल उतारते हुए उनकी तरह चश्मा और वस्त्र पहनकर निकल पड़ते है और गांधीवादी होने का ढोंग करते है। मानो तो गांधी एक विचार है न मानो तो लाचार है।

गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को हुई नाथूराम गोडसे ने किया था इसके लिए इस को फांसी की सजा भी हुई। महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर को भी समझ अकेला गया इनके खिलाफ केस चला पर कोई नतीजा नहीं निकला। इतना ही नहीं गांधीवादियों ने गांधीवाद को ही मार डाला! गांधीवाद की कसमें खाने वालों ने हत्या की अगली सुबह तक गांधीवाद की भी हत्या कर दी थी। 30 जनवरी 1948 शाम करीब 5:30 बजे गोली मारकर हत्या कर दी गई थी उनके वैचारिक विरोधी गोडसे द्वारा पर इन तथाकथित गांधी वादियों को क्या हो गया था जिन्होंने दंगा भड़काने का काम किया हिंदू महासभा से गोडसे के जुड़े होने के कारण 30 जनवरी की रात को मुंबई और पुणे में हिंदू महासभा,आरएसएस और अन्य हिंदूवादी संगठनों से जुड़े लोगों और कार्यालाओ पर हमले शुरू हो गए।Dr koenraad Elst कि पुस्तक Why I killed the Mhatama के अनुसार 31 जनवरी की रात तक मुम्बई में 15 और पुणे में 50 से अधिक हिन्दू महासभा कार्यकर्ता, संघ के स्वयंसेवक और सामान्य नागरिक मारे दिए गए और बेहिसाब संपत्ति स्वाहा हो गई. 1 फरवरी को दंगे और अधिक भड़के और अब यह पूरी तरह जातिवादी और ब्राह्मणविरोधी रंग ले चुका था. सतारा, कोल्हापुर और बेलगाम जैसे ज़िलों में चितपावन ब्राह्मणों की संपत्ति, फैक्ट्री, दुकानें इत्यादि जला दी गई. औरतों के बलात्कार हुए. सबसे अधिक हिंसा सांगली के पटवर्धन रियासत में हुई।वीर सावरकर के घर पर भी हमला हुआ था। सावरकर तो बच गए लेकिन उनके छोटे भाई डॉ नारायण दत्त सावरकर घायल हो गए हैं और इसी घाव के कारण सन 1949 में उनकी मृत्यु हो गई। नारायण स्वतंत्रता सेनानी थे इन्होंने समाज में सुधार लाने का भी कार्य किया और समाज से बदले नहीं इन्हें पत्थर ही मिला। उस समय तक दंगों पर पत्रकारिता पर भी रोक लगी थी फिर भी एक अनुमान के अनुसार मरने वालों की संख्या 1000 से कम न थी। यह जितना कुछ भी हुआ सब का सब अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के नाम पर हुआ।महात्मा गांधी की हत्या का आरोप राष्ट्रीय स्वयंसेवक पर भी लगा लोग नाथूराम गोडसे को आरएसएस कार्यकर्ता बताकर आरएसएस को बदनाम करने में लग गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रतिबंध भी लगा दिया गया था। अगस्त 1948 में गांधी हत्या संयंत्रों से संघ के सदस्य बाइज्जत बरी कर दिए गए। इसके बाद संघ प्रमुख गोलवलकर गुरूजी ने प्रधानमंत्री नेहरु को चिट्ठी लिखकर संघ से प्रतिबंध हटाने की मांग की।संघ प्रमुख का कहना था कि प्रतिबंध जब गांधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने पर लगा है और आरोपों को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है प्रतिबंध स्वतः ही हट जाना चाहिए।

पहले तो टाल मटोल, आनाकानी हुई फिर शर्ते रखी गई जो संघ के लिए अपमानजनक भी था। बहुत संघर्ष करना पड़ा संघ को इसके बाद कुछ शर्तों के बाद प्रतिबंध वापस ले लिया गया सरकार द्वारा।गांधी जी एक बहुत बड़ी हस्ती थे अपने समय के इस बात में कोई संदेह नहीं है। उनकी हत्या का भारतीय राजनीति पर गंभीर असर पड़ा और आज भी कुछ तथाकथित लोग इसको लेकर घटिया राजनीति करते हुए संघ को बदनाम करते दिख जाएंगे पर कपूर कमीशन की रिपोर्ट पर ध्यान उनका नहीं जाता। भारत विभाजन बहुत बड़ी त्रासदी थी स्नेह हिंदू जनमानस को हिला कर रख दिया या एकदम से झकझोर दिया था। वर्तमान में भी लोग इसका जिम्मेदार कांग्रेस पर गांधी को मानते हैं और अपना गुस्सा जाहिर करते हैं पर गांधी की हत्या एक हिंदू राष्ट्रवादी ने कर दिया था न बस उसी को लेकर कांग्रेस अपनी नाकामियों को छिपाने में लगी रहती है। खैर जब गोलवलकर गुरुजी को महात्मा गांधी की हत्या और उसमें संघ को घसीटे जाने की खबर मिली उन्होंने मौजूद कार्यकर्ताओं से कहा कि संघ 30 वर्ष पीछे चला गया अभी संघ को 22 वर्ष ही हुए थे स्थापना को ऊपर से यह सब। सब कुछ दाव पर लग गया था संघ का कहा जाए तो भविष्य अंधेरे में अगर उस वक्त की स्थिति को देखा जाए तो। हिंदू महासभा हमेशा के लिए समाप्त हो गई और कांग्रेस में भी कुछ हिंदूवादी नेता थे जिन्हें पर्दे के पीछे धकेल दिया गया। कभी भी बंटवारे जैसे त्रासदी पर सार्थक वार्तालाप नहीं हुआ और बंटवारे जैसे त्रासदी के जिम्मेदार लोग इतिहास की इस समीक्षा से आसानी से बच के निकल गए।

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Shivam Kumar Pandey
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