When human society first developed on an appreciable scale, the concept of a well-organized and efficient State exercising the tools of civil, political, and coercive power was not as well-developed as it is today. The traditional role of the law, thus, in acting as the arbiter between persons, was taken over by an institution far more pervasive and powerful: religion.
संविधान की अब तक की सफलता एक महान उपलब्धि है किंतु आगामी समय में चुनौतियां भी कम नहीं है आवश्यकता है कि हम संवैधानिक व नैतिक मूल्यों को सहेजें और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें, अन्यथा संविधान हीलियम के बक्से में बंद एक पुरानी पोथी से बढ़कर कुछ नहीं रहेगा।