4 नवंबर यानी बुधवार की तरोताजा सुबह ने मुंबई में जैसे आपातकाल की याद दिला दी हो यानी अभिव्यक्ति की आजादी जैसे सो कोस दूर हिलोरे मार रही हो ,स्वंत्रता की आजादी जैसे गड्ढे में दम ले लिया हो।
जब चीन के सामानों के बहिष्कार की लहर चल रही थी तो अपने ही देश के कुछ लोग चीन की वफादारी में लगे थें। हाँ ये बात अलग है कि अब वैसे लोग जेल जा रहे है जो अच्छी बात है।