1947 मे छद्म शांति के लिये देश विभाजन रूपी भारी मूल्य चुकाने का आत्मघाती निर्णय तुष्टीकरण की नीति का कुपरिणाम था यह नीति आज़ादी के अनंतर भी कायम रही। आज शासन के लिये इस नीति से मुक्त हो इतिहास की भूलों से सबक लेना, अपनी संवेधानिक शक्तियों के दृढ़ता पूर्वक प्रयोग द्वारा असामाजिक तत्वों को निर्मूल कर लोकतंत्र के मंदिरों मे इनका प्रवेश निषेध करना अत्यावश्यक है।
स्वस्थ और दीर्घायु लोकतंत्र के लिये सबल विपक्ष अनिवार्य है भाजपा का विकल्प कांग्रेस ही हो सकती है। कांग्रेस इस तथ्य को गंभीरतापूर्वक समझ ले और वर्तमान युग की नब्ज़ पहचान कर तदनुसार अपने समर्थकों के लिये सार्वजनिक आचरण संबंधी आचार संहिता नीयत करे।
गांधी के जाति मुक्त भारत की परिकल्पना को आज के गांधीवादियों द्वारा ही घुरे पर फेंक जातीय जनगणना की स्वीकृति दी गई। इसे धार्मिक कट्टरता के दुष्परिणामों की प्रतिक्रिया स्वरूप जन्मी सामाजिक एकता को जातीय कट्टरता मे परिवर्तित कर सामाजिक विभाजन द्वारा निर्बल करने की साज़िश के रूप मे देखा जाना चाहिये।
लोकतंत्र मे भी शक्ति का विवेकयुक्त प्रयोग देश मे सुशासन और शांति समृद्धि की गांरटी है। भारत की वर्तमान दुरावस्था लोकतांत्रिक परंपराओं को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकाता का संकेत करती है।