समानता का नारा देकर नारी को पुरुष के स्तर पर लाने का प्रयास इस देश में वैसे ही है जैसे बड़ी लकीर को मिटाकर छोटी के बराबर कर देना। भारत में जहाँ नारी को स्वयंवर तक की स्वतंत्रता रही हो वहाँ स्वतंत्रता, समानता का नारा देना उसके महत्त्व को कमतर करने का ही दुस्साहस कहा जा सकता है।
हमारे राष्ट्र और हमें अब शक्तिशाली बनना ही होगा। शक्तिसंपन्न हुए बिना भला अशोक और गाँधीजी का अहिंसा और विश्वशांति का सन्देश "श्रेष्ठतम की उत्तरजीविता" जैसे जंगल के कानून में विश्वास करने वाले संसार को कैसे हम समझा पाएंगे?