हे मित्रों इसके प्रथम भाग में हमने देखा की अडानी एक उद्भव कैसे हुआ और उनके विरुद्ध षड़यंत्र की शुरुआत कैसे हुई, आगे हम देखते हैं की ये हिंडेनबर्ग कैसे अडानी समूह से प्रेम करने लगा।
सीपीआई (एम) नेता सीताराम येचुरी की पत्नी सीमा चिश्ती एनएफआई में मीडिया फेलोशिप सलाहकार हैं। वह द वायर की संपादक हैं। वह द कारवां के लिए भी लिखती हैं। और इन सबको पैसे WIPRO वाला अजीम प्रेमजी देता है। प्रचार समाचार वेबसाइट, “द वायर” का सोरोस, फोर्ड, बिल गेट्स, अजीम प्रेमजी, ओमिडयार और रॉकफेलर द्वारा वित्त पोषित एनएफआई के साथ एक विशेष गठजोड़ है। दिलचस्प बात यह है कि “द वायर” ने २०१७ में अडानी के ऑस्ट्रेलिया प्रोजेक्ट के संबंध में उसके खिलाफ पांच प्रचार लेखों की एक श्रृंखला लिखी है। तो आप स्वय इसका अनुमान लगा सकते हैं कि WIPRO वाले अजीम प्रेमजी का कितना बड़ा हाथ है, इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में।
“द न्यूज मिनट” की सह-संस्थापक “धन्या राजेंद्रन” एनएफआई में मीडिया फेलोशिप सलाहकार भी हैं। “द न्यूज मिनट” को भी पैसे अजीम प्रेमजी के संगठन IPSMF द्वारा प्राप्त होता है और MDIF के माध्यम से सोरोस से समर्थन प्राप्त होता है। धान्य राजेंद्रन ने “डिजिपब (Digipub)” नाम से लोगों और प्रचार वेबसाइटों का एक कार्टेल बनाया है! adaniwatch.org नामक website द्वारा फैलाये जाने वाले दुष्प्रचार में रवि नायर का योगदान अत्यधिक है। बीबीएफ के ट्विटर हैंडल से उनके ज्यादातर पोस्ट का समर्थन किया जाता है।हिट-जॉब पीस/पोस्ट लिखने के लिए नायर कथित तौर पर अडानी समूह द्वारा मानहानि के मुकदमे का सामना कर रहा है। स्टीवन चाफर, जो बीबीएफ के सीईओ हैं, अतीत में ग्रीनपीस एंड एमनेस्टी (ऑस्ट्रेलिया शाखा) से जुड़े रहे हैं। संयोग से, भारत में इन दोनों एनजीओ को कई कानूनों के उल्लंघन के लिए बाहर कर दिया गया है।
“द न्यूज मिनट” में धन्या राजेंद्रन की पार्टनर और फाइनेंसर और “डिजिटल शार्पशूटर कार्टेल डिजिपब” की सह-संस्थापक “रितु कपूर” की भी यूके (UK) में एक शेल कंपनी थी। उन्होंने सालाना रिटर्न दाखिल किए बिना कुछ महीनों के भीतर इसे बंद कर दिया।अब प्रश्न ये भी है, मित्रों की केवल अडानी और अम्बानी ये दोनों ही क्यों? टाटा, प्रेमीजी, मूर्ति, वाधरा, या किसी और को क्यों नहीं टारगेट किया जा रहा है, कुछ तो गड़बड़ है। अडानी और अम्बानी तो एक बहाना है, आदरणीय श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी, अजीम प्रेमजी का असली निशाना है और इसीलिए वो “द न्यूज़ मिनट”, “द वायर”, “द कारवां” और “द अल्ट न्यूज़” जैसे भारत विरोधी प्रोपेगेंडाधारियों को जबरदस्त वित्त प्रदान करता है।
दूसरा चरण:
मित्रों आपको ज्ञात होगा कि भारत में भी Stock Market कि रचना करने वाले लोगों में इंग्लैंड और अमेरिका के विशेषज्ञ भी शामिल थे, अत: Stock Market कि कमजोरियो का इन्हें अच्छी प्रकार से ज्ञान है, जिसका लाभ ये पहले बहुत उठाते थे परन्तु अब धीरे धीरे ये कम होता जा रहा है।
याद करिये जब युक्रेन्- रसिया युद्ध के शुरुआत में “अडानी गैस” के शेयरों कि कीमत सामान्य थी, परन्तु जैसे जैसे युद्ध बढ़ता गया, अडानी गैस के शेयर भी बढ़ते गए, जबकि यूरोपिय कम्पनीओ के शेयर लगातार गिर रहे थे। इसी बात से ईर्ष्या करके विदेशी निवेशकों ने प्रत्येक दिन हजारों करोड़ रुपये निकालकर अडानी गैस के शेयर को तोड़ना और बाजार को ध्वस्त करना शुरू किया और २०२३ तक उन्होंने अपने षड्यंत्र में सफलता प्राप्त कर ली और अडानी गैस के शेयर वापस उसी स्थिति मे आ गए, जंहा वो युक्रेन और रूस का युद्ध शुरू होने से पूर्व थे। आइये इसे समझते हैं कैसे?
मित्रों शेयर बाजार में निवेश करने वाले चार खिलाडी होते, जिसमें से दो निम्नवत हैं।
१:- एक तो घरेलू निवेशक (Domestic Investors)
२:- विदेशी निवेशक (F. Investors)
ये जो विदेशी निवेशक हैं, ये जब लाभ कमाना होता है या किसी देश कि अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाना हो, तो अम्बानी और अडानी जैसे समूह के कम्पनीओ के शेयर खरीदना शुरू कर देते हैं और जब इन कम्पनीओ के शेयर बुलंदियों पर पहुंचने लगते हैं, तो धीरे धीरे प्रतिदिन ये अपना हजारों करोड़ रुपए निकालना शुरू कर देते हैं, जिसका परिणाम होता है कि बाजार टूटने लगता है और अस्थिर हो जाता है, जिससे अर्थव्यवस्था पर गंभीर चोट लगती है। मित्रों ये विदेशी निवेशक अडानी समूह के व्यापक और बढ़ते स्वरूप से डर गए और इन्होने इस कम्पनी से धीरे धीरे प्रत्येक दिन हजारों करोड़ रुपए निकालना शुरू कर दिया। जब अडानी समूह को जानकारी हुई तो उन्होंने इसकी शिकायत RBI से की, RBI ने जांच के दौरान आरोप सही पाया और चेतावनी जारी करते हुए विदेशी निवेशकों से कहा कि यदि वे फिर से ऐसा करेंगे तो RBI उन्हें प्रतिबंधित कर देगा।
अब इन विदेशी निवेशकों का षड्यंत्र तो असफल हो गया, क्योंकि प्रतिबंधित होने के डर से उन्होंने अपना निवेश वापस लेना बंद कर दिया, परन्तु इसके पश्चात उन्होंने हिंडनबर्ग रिसर्च के कंधे पर बंदूक रखी और गोली दाग दी। जी हाँ मित्रों इस हिंडनबर्ग रिसर्च में केवल १० कर्मचारी हैं और इन्होने TMC कि नेता और अखंड वामपन्थन महुआ मित्रा जैसे अल्प ज्ञानी और भारत विरोधी लोगों के द्वारा लिखें गए लेखो को आधार बनाकर अपनी रिपोर्ट तैयार कर दी। मित्रों इस रिपोर्ट में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो नया है, जो मुद्दे इस रिपोर्ट में उठाए गए हैं, वे सभी के सभी पहले से हि चर्चा में हैं, परन्तु इस रिपोर्ट की आड़ में विदेशी निवेशकों ने एक बार फिर एक साथ बड़ी मात्रा में अपना निवेश वापस ले लिया, क्योंकि अब यदि RBI इन्हें रोकता या प्रतिबंधित करता, तो ये पूरी दुनिया में छाती पीट पीट कर कहते कि भारत में निरंकुशता है, स्वतन्त्रता नहीं है।
अब सोचेंगे कि आखिर विदेशी निवेशक कम्पनियां ऐसा क्यों करेंगी, तो मित्रों इसका सीधा और स्पष्ट उत्तर है:-
१:- भारत का युक्रेन और रूस के युद्ध में यूरोपिय देशों कि बात ना मानना और रूस से व्यापार करना;
२:- भारत का खाड़ी देशों से जबरदस्त जुड़ाव;
३:- भारत की स्वतन्त्र विदेश निति;
४:- भारत चिन को लगातार दी जा रही पटकनी;
५:- भारत कि वेक्सिन कूटनीति इत्यादि।
तीसरा चरण
मित्रों तीसरे चरण में भारत कि उस अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाना था, जिसने हाल हि में गोरो को पीछे छोड़कर विश्व कि पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। मित्रों एक ओर, अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, रूस, फ्रांस, इटली, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अन्य यूरोपिय देशों कि स्थिति और अर्थव्यवस्था हासिये पर है, जंहा पाकिस्तान, अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे देश आर्थिक दीवालिआपन का शिकार हो चुके हैं और जंहा वामपंथी देश चिन कि अर्थव्यवस्था भी डांवांडोल है, वही पर भारत कि अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत है कि वो रक्षा क्षेत्र पर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बजट देने वाला देश बन गया है, वो अफगानिस्तान के विकास के लिए ₹२ हजार करोड़ का आवंटन करता है, भूटान के विकास के लिए इसका १०गुना बजट का आवंटन करता है, बंगलादेश और श्रीलंका सहित दक्षिण अफ्रीका के देशों के लिए भी बजट का आवंटन करता है।
यही नहीं विश्व बैंक और IMF कि दृष्टि में भारत विश्व कि सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है। मित्रों हाल हि में भारत, रूस और सऊदी अरेबिया ने जिस प्रकार डॉलर के स्थान पर अपने अपने देश कि मुद्रा में व्यापार करने की शुरुआत कि है, इससे भी अमेरिका और यूरोपिय देशों के हाथ पाव फुले हुए हैं, क्योंकि इससे डॉलर कि खटिया खड़ी होने लगी है।
चौथा चरण
चिन के पिछ्वाड़े बम्बू:-
मित्रों आपको तो ज्ञात हि होगा कि भारत ने अडानी समूह के सहयोग से चिन के कर्ज के जाल से श्रीलंका को बचाते हुए एक अत्यंत महत्वपूर्ण समझौता किया था:-भारत ने चीनी ड्रैगन को बड़ा झटका देते हुए श्रीलंका में ७० करोड़ डॉलर का टर्मिनल समझौता किया है। स्पष्ट है कि भारत ने श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव को जवाब देने के लिए यह समझौता किया है।
यह नया पोर्ट श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में चीन के बनाए ५० करोड़ डॉलर के चीनी जेटी के पास है। “द श्रीलंका पोर्ट्स” ने एक बयान जारी करके कहा, ‘यह समझौता करीब ७० करोड़ डॉलर का है जो श्रीलंका के बंदरगाह सेक्टर में अब तक का सबसे बड़ा विदेशी निवेश है।’ इसमें कहा गया है कि अडाणी इस बंदरगाह को स्थानीय कंपनी जॉन कील्स के साथ मिलकर बनाएगी। इस टर्मिनल में जॉन कील्स का हिस्सा करीब ३४ फीसदी होगा जबकि अडाणी के पास ५१ फीसदी की हिस्सेदारी होगी।
मित्रों बताने कि अवश्यक्ता नहीं कि ये समझौता चिन को परास्त करके हि हासिल किया गया था। अभी इस दर्द को अपने पिछ्वाड़े लेकर चिन अच्छे तरिके से कराह भी नहीं पाया था और उसके पालतू भारतीय स्वान ठीक से छाती भी ना पीट पाये थे कि अडानी ने दूसरा मुक्का सीधा चिन कि नाक पर मारा, जी हाँ मित्रों अदानी ने ९ हजार ४२२ करोड़ रुपए की बोली लगाकर इजराइल का १७०० वर्ष पुराना “हाइफा” बंदरगाह खरीद लिया। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस मौके पर अदानी के साथ फोटो खिंचवाई!
विपक्ष का आरोप:-
मित्रों, कुछ मोदी के विरोध में अंधे हो चुके और कुछ चिन के टुकड़ो पर पूँछ हिलाने वाले विपक्षी और NGO, भारत के LIC और SBI के निवेश के डूब जाने का आरोप लगा रहे हैं और इसे घोटाला बता रहे हैं, जबकि सच्चाई ये है कि:-
LIC: – का निवेश .८८% के आस पास है और LIC के शेयर अभी भी लाभ कि स्थिति में बने हुए हैं। या स्वय LIC का कथन है।जी हाँ मित्रों दिनांक जनवरी २०२३ को LIC ने बयान दिया कि उसने अदानी ग्रुप के शेयर में ३० हजार करोड़ का निवेश किया, हिडनबर्ग की रिपोर्ट के पहले LIC के इस निवेश की वैल्यू ७०००० करोड़ हो गई थी लेकिन रिपोर्ट आने के बाद LIC के इस निवेश की वैल्यू ५६ हजार करोड़ ही रह गई । यानी अब भी अदानी के शेयर से ही LIC २६ हजार करोड़ के लाभ कि स्थिति में है लेकिन वो लोग केवल झूठ बोलने में लगे हैं।
SBI:- ने secure निवेश किया है अर्थात निवेश के बदले में अडानी समूह के असेट्स गिरवी रखे हैं। SBI और PNB किसी के निवेश को कोई खतरा नहीं है।
अडानी समूह के शेयर के भाव कम ज़रूर हुए हैं पर अडानी समूह अभी भी ६५ बिलियन डालर के नेट worth के साथ टीका हुआ है।
मित्रों याद रखिये।
फोर्ब्स मैगजीन के मुताबिक, अमेरिकी न्याय विभाग दर्जनों बड़े शॉर्ट-सेलिंग निवेश और शोध फर्मों की जांच कर रहा है। इनमें मेल्विन कैपिटल और संस्थापक गेबे प्लॉटकिन, रिसर्चर नैट एंडरसन और #हिंडनबर्ग रिसर्च सोफोस कैपिटल मैनेजमेंट और जिम कारुथर्स भी शामिल हैं।
ये रिपोर्ट जानबूझकर उस समय प्रकाशित कि गई जब अडानी अपना FPO बाजार में लाकर भारतीय जनमानस को बड़ा मुनाफा देकर ज्यादा से ज्यादा संख्या में Stock market से जोड़ने वाले थे, ताकि भारतीय Stock Market को शक्तिशाली बनाया जा सके, परन्तु एक षड्यंत्र ने इसे सफल ना होने दिया। मित्रों कुछ भी हो जाए हम राष्ट्रवादी तो अपने अडानी और अम्बानी के साथ थे, साथ हैं और साथ रहेंगे। और इन देश के गद्दारो से यही कहेंगे:-
“सुनो गौर से दुनिया वालों
चाहे जितना जोर लगा लो
सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी”