Sunday, April 28, 2024
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जम्मू कश्मीर के सबसे खूंखार अपराधी को सुप्रीम कोर्ट में ले आये

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

जी हाँ, मित्रों विधि व्यवसाय से जुड़े व्यक्तियों के लिए ये आश्चर्य और कौतुहल का विषय होगा कि, आखिर सर्वोचच न्यायालय के आदेश के बगैर एक अति खूंखार मलेच्छ रक्तपीपासु यासीन मलिक को आखिर दिल्ली के मालिक ने कैसे सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित कर दिया। क्या ये किसी बड़ी आतंकी घटना को क्रियान्वित करने की योजना के अनुसार किया गया या फिर एक बार पुन: मुस्लिम तुष्टिकरण का प्रपंच खेला गया।

मित्रों आपकी जानकारी के लिए बताते चलें की जम्मू में एक TADA /POTA अदालत ने वर्ष १९८९ में रुबिया सईद पुत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद के अपहरण और १९९० में चार भारतीय वायु सेना के अधिकारियों की हत्या के मामले में सितंबर २०२२ को एक आदेश पारित कर खुनी दरिंदे यासीन मलिक को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने को कहा था।

केंद्रीय जांच ब्यूरो ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील प्रेषित कर उक्त आदेश को चुनौती दी थी। जिस पर सुनवाई करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त आदेश पर रोक लगा दी थी।केंद्रीय जांच ब्यूरो का कहना था कि सुरक्षा कारणों तथा जम्मू कश्मीर में शांति व्यवस्था को बनाये रखने हेतु ऐसे खूंखार आतंकी को जम्मू कश्मीर भेजना ठीक नहीं होगा। वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से या अन्य तकनीकी माध्यम से भी कार्यवाही की जा सकती है।

अब यंहा पर देखने वाली बात ये है, कि जेल का प्रशासन व्यवस्था दिल्ली के मालिक के हाथ में है और इसी का लाभ उठाकर दिल्ली के मालिक के मंत्री सत्येंद्र जैन जेल में भी नवाबी जिंदगी जी रहे थे, मालिश करा रहे थे, और अन्य शारीरिक सुख भोग रहे थे।अब हुआ ये कि सर्वोच्च न्यायालय में इसी मामले के सुनवाई के दौरान दिल्ली के मालिक का हाथ और साख के निचे कार्य करने वाले जेल प्रशाशन ने टेरर फंडिंग मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के प्रमुख और खूंखार हैवान यासीन मलिक को मानक संचालन प्रक्रिया (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) का पालन किए बिना सर्वोच्च न्यायालय में पेश कर दिया।

अब जरा गौर करिये१:- क्या ये किसी आतंकी घटना को निमंत्रण नहीं था;२:- क्या इस खूंखार हैवान को छुड़ाने के लिए इसके गुर्गे किसी भयानक घटना को अंजाम नहीं दे सकते थे;३:- क्या सर्वोच्च न्यायालय की सुरक्षा को खतरे में नहीं डाला गया;४:- क्या दिल्ली के आम नागरिकों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया;५:-क्या ये एक सुनियोजित तरिके से किया गया।सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई कर रहे न्यायधीश भी भौचक्के रह गये। उनको अपनी आँखों पर विश्वाश नहीं हुआ।

न्यायधीश ने जब पूछा कि भईया आप लोग इसको सर्वोच्च न्यायालय में कैसे लेकर आ गये, क्या हमनें कोई आदेश पारित किया था।सूत्रों के अनुसार पता चला की न्यायधीश के प्रश्न पर अधिकारियों ने उत्तर दिया की, “साहेब यासीन मलिक ने कहा की मै व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर सुनवाई में भाग लेना चाहता हुँ, इस कारण हम लोग इनको ले आये।” इस प्रकार का उत्तर सुनकर उस न्यायालय कक्ष में उपस्थित अधिवक्ताओं का समूह, केंद्रीय जांच ब्यूरो के अधिकारी, न्यायालय के अन्य अधिकारियों ने अपना शिश पकड़ लिया।

केंद्रीय जाँच ब्यूरो ने त्वरित गति से न्यायालय से प्रार्थना कि इन जेल अधिकारियों और प्रशाशन के विरुद्ध उचित और समुचित आदेश पारित किया जाए ताकि भविष्य में पुन: इस प्रकार की भयंकर गलती ना की जाए।न्यायालय ने अगली सुनवाई में इसे संज्ञान में लेने की बात कही।पर मित्रों प्रश्न ये है की आखिर दिल्ली के मालिक के तत्वाधान में कार्य करने वाले जेल प्रशाशन ने आखिर किसके आदेश पर सभी की सुरक्षा को दरकिनार करते हुए एक खूंखार मलेच्छ आतंकी यासीन मालिक को सर्वोच्च न्यायालय में पेश कर दिया, क्या ये किसी योजना का प्रारम्भिक चरण है।

दिल्ली जेल अधिकारियों ने यासीन मलिक सुरक्षा चूक मामले में चार अधिकारियों को निलंबित कर दियाहै। एक अधिकारी ने शनिवार (२२ जुलाई) को यह जानकारी दी। इन चारों को प्रारंभिक जांच के आधार पर प्रथम दृष्टया जिम्मेदार पाया गया था।

मित्रों यदि एक सामान्य से चोर को भी सर्वोच्च न्यायालय में पेश करने की आवश्यकता महसूस होती है तो सर्वप्रथम जेल प्रशाशन के द्वारा न्यायालय में एक प्रार्थना पत्र प्रेषित करना पड़ता है। उस पर सुनवाई करने के पश्चात ही सर्वोच्च न्यायालय कोई आदेश पारित करता है।परन्तु यंहा पर जिसकी बात हो रही है वो एक खूंखार दैत्य है, जो सैकड़ों मासूमों की अकाल मृत्यु का जिम्मेदार है। ऐसे भयानक मलेच्छ को बिना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के और सुरक्षा की परवाह किये बिना सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित कराना निसंदेह एक अति गंभीर प्रश्न है, जो मंशा पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।

आखिर दिल्ली का मालिक चाहता क्या है?

लेखक:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

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