Tuesday, November 12, 2024
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एक कविता कार्यकर्ता के नाम

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बैठकों से लेकर सभाओं तक
घर से लेकर पूरे शहर तक
अपनी जी जान लगा देता है
बस इसी बात के लिए अब जीतेंगे
हार जीत का सबसे ज्यादा फर्क
उसको ही पड़ता है

नेता आते हैं जाते
कार्यकर्ता वहीं रह जाता है
आशाओं उमंगो की दुनिया में खड़ा
एक इंसान जो अपने जीवन से ज्यादा
अपने विचारों की जंग को जिंदा रखता है
अपने आदर्शों को दिल में समाए
जूझता रहता है इस दोगली दुनिया से
तब टूटता है कार्यकर्ता

जब सकंट मे साथ नहीं देता कोई
फिर भी कलेजे पर हाथ रख
जलाए रहता है विचारधारा की ज्वाला
क्योंकि उसी ने उसको जिंदा कर रखा है

बाकि मौन मूर्तियों ने तो
उसके कत्ल की आह तक नहीं सुनी
जलते घरो को देख
बोखला जाता है
अपनो के फोन ना लगने पर सहम जाता है

किसी से कुछ कहता नहीं
पर अंतर द्वंद मे मारा जाता है कार्यकर्ता

बैठकों से लेकर सभाओं तक
घर से लेकर पूरे शहर तक
अपनी जी जान लगा देता है
कार्यकरता

-अघोरी अमली सिंह

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