शिक्षा किसी भी समाज और देश के विकास का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। भारत में पहली शिक्षा नीति 1968 में बनाई गयी। इसके बाद 1986 में। 1992 में इसमें कुछ संशोधन किये गए थे। यधपि इसमें सुधारों और क्रियान्वयन के लिए समय-समय पर कुछ परिवर्तन भी किये जाते रहे है। सरकार ने नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी है। यह एक दृष्टि दस्तावेज है। इस शिक्षा नीति को के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति ने तैयार किया है।
शिक्षा भारत में समवर्ती सूची का विषय है ऐसे में राज्य और केंद्र दोनों की ही भूमिका इस पर क़ानून बनाने और लागू करने में अहम् है। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए की ऐसे में जरूरी नहीं की नई शिक्षा नीति के सभी सुझावों को माना ही जाए। अतः इन सुझावों को लागू होने में तत्परता केंद्र और राज्य दोनों तरफ से होनी चाहिए। इस शिक्षा नीति में अनेको ऐसे सकारात्मक सुझाव है जो भारत को शिक्षा के क्षेत्र में नए मानक स्थापित करने में मदद करेगा। यह शिक्षा नीती स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के सभी पहलुओं पर दृष्टि डालती है। जैसे शिक्षा के अधिकार, स्कूलों के समवर्ती विकास, छात्रों के सम्पूर्ण विकास। प्राथमिक शिक्षा मात्रा भाषा में हो इसके लिए त्रि-भाषा फार्मूला पर जोर दिया गया है ताकि विद्यार्थिओं पर कोई भी भाषा थोपी न जाये इसका भी इसमें ध्यान रखा गया है।
उच्च शिक्षा में भी महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए है। शोध के महत्व को देखते हुए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की जाएगी। लॉ और मेडिकल को छोड़ कर सभी के लिए एकल नियामक संस्था ‘हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ़ इण्डिया’ होगी। मल्टीडिसीप्लिनरी शिक्षा पर भी जोर दिया गया है मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी अब शिक्षा मंत्रालय के नाम से जाना जायेगा। विश्विद्यालयों को और स्वायत्तता दी जाने की बात भी इसमें कही गयी है। अभी तक के सिस्टम में यदि कोई छात्र बैचलर डिग्री में एक साल या दो साल की पढाई कर के और किसी कारण से आगे की पढाई नहीं कर पाता है तो उसकी इन सालों की पढाई का उसे कोई भी फ़ायद रोजगार में नहीं मिलता है। लेकिन नई शिक्षा नीति में ऐसे छात्रों को एक साल या दो साल की पढाई के अनुसार सर्टिफिकेट और डिप्लोमा दिए जायेंगे ताकि उसकी इन सालों की मेहनत व्यर्थ ना जाये। छात्रों के हित में यह एक महत्वपूर्ण फैसला है।
शोध में जाने वाले छात्रों को 4+1 अर्थात चार साल में डिग्री एवं एक साल में एम् ए (M.A.) करने का भी प्रावधान है। महत्वपूर्ण बात यह भी है की पहली बार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6 प्रतिशत शिक्षा पे खर्च होगा जो की अभी तक 4.4 प्रतिशत के आसपास है। हालांकि इस शिक्षा नीति में जरूरत में हिसाब से आने वाले समय में आवश्यक परिवर्तन भी किये जा सकते है। लेकिन पिछले चौतींस सालों में शिक्षा के ढांचे में किये ये परिवर्तन अवश्य की मील का पत्थर साबित होंगे।
-डॉ. राधा मोहन मीना