केसरिया होली
वैसे तो सब रंग बड़े सुहाते,
पीले, लाल, नीले रंग भाते।
पर अब चलन कुछ ऐसा चला है,
देश में हवा, कुछ यूँ बदला है।
देशानुराग अब दहक रहा है,
केसरिया रंग अब छलक रहा है।
चहुँ-ओर माहौल ऐसा है,
कोई महायज्ञ या उत्सव जैसा है।
घर घर से एक लहर फूटा है,
‘जय श्री राम’ का गूँज उठा है।
महादेव चाहें जो होगा,
मंदिर अब तो वहीँ बनेगा।
सच है ये, ना की बड़बोली,
फागुन में आ गयी दिवाली।
रंग जाएँ हम भी, सखा-सहेली,
आओ खेलें, केसरिया होली।
– जीतू