महाराणा का जीवन वर्तमान का निकष है, उनका व्यक्तित्व स्वयं के मूल्यांकन-विश्लेषण का दर्पण है। क्या हम अपने गौरव, अपनी धरोहर, अपने अतीत को सहेज-सँभालकर रख पाए? क्या हम अपने महापुरुषों, उनके द्वारा स्थापित मानबिन्दुओं, जीवन-मूल्यों की रक्षा कर सके?
भारतीय राज्य व्यवस्था में सूरजमल का योगदान सैद्धांतिक या बौद्धिक नहीं अपितु रचनात्मक तथा व्यावहारिक था। मुसलमानों, मराठों, राजपूतों से गठबंधन का शिकार हुए बिना ही उसने अपने युग पर एक जादू सा फेर दिया था।
सनातन की सभ्यता, कला, ज्ञान,सामर्थ्य आदि के कारण भारत विश्व गुरु था किन्तु हिन्दुओ के अहंकार, जातिवाद, लालच एंव कायरता के चलते ना केवल हजार साल ग़ुलाम रहा अपितु पुनः अब विनाश की और अग्रसर हो रहा है।