आप और हम आये दिन अकसर टी.वी. पर समाचार बुलेटिन में या समाचार पत्रों में देखते सुनते हैं कि किसी इंसान ने या इंसानों के समूह ने किसी खास प्रक्रिया के द्वारा इस्लाम कबूल कर लिया या फिर किसी खास दिन या जगह पर तयसुदा कार्यक्रम द्वारा अपना धर्मान्तर्न करते हुए ईसाई धर्म या कोई अन्य धर्म अपना लिया।
मगर क्या आपने कभी ये सुना है कि किसी गैर-हिन्दु ने अपना धर्म परिवर्तन कर के हिन्दु धर्म अपना लिया है? अगर आपने नहीं सुना तो क्यूँ नहीं सुना है?
कहीं इसका कारण ये तो नहीं कि हिन्दु धर्म को किसी खास दिन, स्थान या इन्सान के द्वारा कारये गये धर्मान्तरन से अपनाय नहीं जा सकता!
हिंदुत्व धर्म से ज्यादा एक जीवन पद्धति है, जिसे कोई भी गैर-हिन्दु अपने धर्म में आस्था रखते हुए भी सिर्फ़ श्रधाभाव, सहिष्णुता और अच्छे आचरण से अपना सकता है।
अभी हाल ही में हॉलीवुड की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री के बारे में कहा गया की उसने हिंदुस्तान आकर हिन्दू धर्म अपना लिया। लेकिन दिलचस्प बात ये है की वो धर्म से तो अभी भी ईसाई ही है, उसने सिर्फ अपने जीवन पद्धति को हिन्दू धर्म के अनुसार ढाला है।
एक ओर जहां इस्लामिक जेहादि गैर-मुस्लिमों को काफिर कहते हुए पुरी दुनिया में सिर्फ़ इस्लाम धर्म का परचम लहराना चाहते हैं और दुसरी ओर वेटिकन का पादरी मुसलमान के युरोप में बढते आबादी से डरते हुए ईसाईयो को अधिक बच्चे पैदा करने को कहता है।
वहीं हिन्दु धर्म तो दुनिया के सभी धर्मों के लिये प्रेरणा का स्रोत और आदर्श होना चाहिये। पुरी दुनिया में अल्पसंख्यक हिन्दु अनुयायी हिन्दुस्तान में बहुसंख्यक होने के बाद भी सदियों से यहां अपमानित होता आया है।
मुगल काल में हिन्दुओ को अपने धर्म में आस्था रखते हुए तीर्थयात्रा करने पर मुआबजे के तौर पर मुगल शासन को तीर्थयात्रा मैसूद अदा करना होता था और आज के ईक्किस्वी सदि के आज़ाद् लोकतान्त्रिक हिन्दुस्तान कि मनोनित् प्रधानमन्त्री का कहना है “कि इस देश के संसाधनो पर पहला हक़् इस देश के मुसलमानो का है।”
क्या हिन्दुस्तान के संविधान के द्वारा दिये गये धर्मनिरपेक्षता, समभाव, मानवादिकार और समानता का अधिकार सिर्फ़ इस देश के मुस्लमान या अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लिये ही है?
इस देश में अगर कोई इन्सान या संगठन हिन्दुओ के हित के लिये आवाज़ उठाता है तो उस आवाज़ को दबने के लिये उसे साम्प्रदयिक़ घोषित कर दिया जात है।
लेकिन कोई सरकार या संगठन द्वारा मुसलमान या किसी अन्य धर्म के तुस्टीकरण के लिये किये गये कार्यो को धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक मान लिया जाता है।
ऊपर कही गयी बातों को अगर इतिहास के कुछ अप्रिय घटनाओं से जोड़ कर देखा जाये तो ये बाते सच लगती हैं।
हिन्दुस्तान के विभाजन के सुरुआति कारणो में से एक प्रमुख कारण दो नेताओं के आपसी रस्सा कस्सि, देश के पहले प्रधानमन्त्री बनने कि चाहत और उस चाहत को पुरा करने कि ज़िद्द रही है, जिसकी आड़ में अंग्रेजी हुकुमत ने अपने नापाक इरादों को पुरा करते हुए पाकिस्तान का निर्माण किया जिसके फलस्वरूप देश तीन भागों में विभाजित हो गाय और फिर सुरु हुआ देश में साम्प्रदयिक़ दंगों लम्बा दौड़, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे।
एक अन्य दुखद घटना सन 1984 में घटी, जब हिंदुस्तान की राजधानी में हुए देश के तत्कालीन प्रधानमन्त्री की हत्या की सज़ा पुरे देश भर में 4000 से ज्यादा सिख समुदाय के लोगों को ये कहते हुए दी गयी की “जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलति ही है।”
इस जनसंहार के दोषी संगठनों और लोगों को साम्प्रदयिक़ होने के दाग लगने से बड़ी चालकी से बचा लिया गया। ठीक उसी प्रकार आज भी उन दोषी लोगों को कानून के फ़न्दे से बचाया जा रहा है।
इस दुर्घटना के बाद देश में हुए आम चुनाव में तत्कालीन सरकार एतिहासिक भाड़ी बहुमत से सत्ता में वापस आती है और इसे जनता का न्याय बताया जाता है।बेशक लोकतंत्र में जनता का न्याय ही सबसे महत्वपूर्ण है। लेकिन अगले ही आम चुनाव में जनता ने इस सरकार को उखार बहार फेंक एक बार देश के साथ फिर न्याय किया।
लेकिन जब हिंदुस्तान के एक पश्चिमी प्रदेश में 60 राम भक्तों (जिसमें बच्चे, महिलाएं एवं बूढ़े भी सामिल थे) को ट्रेन के डब्बे में चारों तरफ से बंद कर के जिन्दा जला दिया जाता है तो उस अपराध को महज एक अनियोजित दुर्घटना का नाम दे दिया जाता है।
देश भर की सभी धर्मनिरपेक्ष शक्तियां और मानवाधिकार के ठेकेदार अपना मुख बंद किये तमाशा देखते रहे और जैसे ही उसी तथाकथित अनियोजित दुर्घटना के फलस्वरूप जनाक्रोश भड़का तो उस जनाक्रोश को साम्प्रदयिक़ता का नाम दे दिया गया। अचानक से नींद में सोयी हुई सभी धर्मनिरपेक्ष शक्तियां और मानवाधिकार के ठेकेदार जाग गए और अपनी आवाज़ जोर शोर से उठाने लगे।
आज भी, प्रदेश की उस सरकार को सांप्रदायिक करार दे कर उसे राजनैतिक अछूत बनाया रखा गया है, जबकि ये सरकार उस जनाक्रोश के भड़कने से हुए दंगों के बाद कई बार उसी जनता के द्वारा भाड़ी बहुमत से सत्ता में वापस लायी गई है और आज यह प्रदेश समूचे देश के विकास दर से अधिक दर से प्रगति कर रहा है, साथ में आज भी यहाँ शान्ति और अमन कायम है।
यहाँ इन घटनाओं की तुलना किसी भी प्रकार से किसी भी जनसंहार, हत्या या दंगों को उचित करार देने के लिए नहीं किया जा रहा है, बल्कि सिर्फ ये बताने की कोशिश की जा रही है की अन्याय किसी के साथ भी हो, पीड़ित कोई भी हो, चाहे उसका मजहब या उसकी जाती कुछ भी हो आवाज़ सबके लिए एक सामान उठनी चाहिए।
इंसान को सिर्फ कारोबारी या राजनैतिक फायदे नुकसान के लिए अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक समुदाय में बाँट कर नहीं रखा जाना चाहिए।
दुर्भाग्य ये रहा है की अपनी आवाज़ उठाने पर सांप्रदायिक सिर्फ एक खास समुदाय और संगठन को कहा जाता रहा है, जबकि अन्य समुदाय या संगठन अगर अपनी आवाज़ को बुलंद करें तो उसे हक की लड़ाई बताई जाती है।
एक अन्य सन्दर्भ में,
जहाँ इस्लाम किसी भी प्रकार की मूर्ति या आकृति की इबादत की इजाज़त नहीं देती है, वहीँ हिन्दू धर्म कण कण में भगवन के होने की बात करता है। रास्ते के पत्थर को उठा कर भगवन बना दिया जाता है।
आज भी देश का मुस्लमान एक ऐसे ढांचे को लेकर उलझा हुआ है जिसका इस्तेमाल वो खुदा की इबादत में सदियों से नहीं कर रहा। और देश के हिन्दू उसी जगह को मर्यादापुरुषोत्तम भगवन राम की जनम भूमि होने का दावा करते हैं।
जैसे-जैसे इस विवाद के अदालती फैसले का समय करीब आता रहा है ,देश भर की तथाकथित सांप्रदायिक शक्तियां और मिडिया के कुछ लोग सिर्फ सनसनी बनाये रखने और अपने फायदे के लिए ऐसा माहौल बनाने पे अड़े रहें की चाहे न्यायलय का फैसला किसी भी पक्ष में जाये, मंदिर समर्थित संगठन देश भर में अल्पसंख्कों के विरुद्ध अपनी तलवार निकाल लेंगे और हल्ला बोल देंगे।
यहाँ ये सवाल उठाना लाज़मी हैं की आखिर किस आधार पर माहौल को हिन्दुओं के खिलाफ बना कर बहुसंख्यक समुदाय को एक बार फिर अपमानित किया जा रहा है।
“कृपा कर के भगवन सहित सभी हिन्दुओं को अपना धर्मपरिवर्तन करने पर मजबूर न करें।”
साथ में, मेरा नम्र निवेदन देश के सभी जिम्मेदार नागरिकों, राजनेताओं और खास कर मिडिया के लोगों से है की वो अपना धयान इस मुद्दे से हटा कर खुद को अकाल – बाढ़, मंहगाई – भुखमरी, बेरोजगारी, नक्सल्वाद – आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों पर केन्द्रित करें।
|| अल्लाह देश के लोगों को नेकी बरतें और भगवन उन्हें सदबुद्धि दें ||