भाजपा की रणनीति छत्तीसगढ और राजस्थान दोनों राज्यों को फिर से अपने पास लाने की है। भाजपा की कोशिश है कि वहां पर अपनी खोई साख और सरकार दोनों वापस ला सके चूंकि अभी दो साल का समय है, इसलिए पार्टी के पास जमीनी काम करने का काफी समय भी है।भाजपा अपने चुनावी प्रचार मे लग चुकी है क्योकि दौनों राज्यो को अपने पास लाना है।
दलित और आदिवासी समुदाय से आने वाले स्थानीय नेताओं को आगे बढ़ाया जा रहा है। हालांकि काम इस तरीके से किया जा रहा है ताकि राज्य में किसी तरह की कोई गुटबाजी न पनपे और पार्टी का काम और पार्टी की जड़ें मजबूत हो सके। यह दोनों राज्य ऐसे हैं जहां भाजपा कांग्रेस में सीधा मुकाबला होता है। अन्य दल बेहद सीमित है। ऐसे में सत्ता भाजपा और कांग्रेस के बीच बंटती रहती है।
इस बार पार्टी दोनों के सामाजिक समीकरणों पर खास ध्यान दे रही है, छत्तीसगढ़ में सामाजिक समीकरण कुछ अलग है। वहां पर भाजपा पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), दलित और आदिवासी समुदायों पर ज्यादा ध्यान दे रही है। राज्य की लगभग आधी आबादी ओबीसी है। ऐसे में उसका फोकस इस बात पर ज्यादा है। गाैरतलब है कि भाजपा देश भर में शहरों के बड़े नाम वाले नेताओं से बाहर निकलकर दूरदराज के क्षेत्रों कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाले विभिन्न सामाजिक समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं को आगे बढ़ा रही है।
राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी पार्टी इस दिशा में काम कर रही है। राजस्थान में पार्टी राजपूत समुदाय के साथ गुर्जर, जाट और मीणा समीकरणों को साध रही है। राजस्थान में भाजपा की सबसे बड़ी नेता वसुंधरा राजे हैं। बीते सालों में पार्टी ने वसुंधरा राजे के साथ नए नेतृत्व को उभारने की कोशिश भी की थी, लेकिन उसकी एक कवायद परवान नहीं चढ़ सकी। पार्टी अब वहां पर नेतृत्व में बदलाव की जगह सामाजिक समीकरणों को साध रही है।
राजस्थान मे अगर भाजपा थोडा जमीनी स्तर पर डां किरोडीलाल की तरह काम करे तो निश्चित ही भाजपा की जीत होगी इसमें किसी प्रकार की कोई गुंजाइश नही है।