Monday, September 9, 2024
HomeHindi२०१९ का चुनाव और लालू परिवार

२०१९ का चुनाव और लालू परिवार

Also Read

२०१९ का चुनाव कई मायनो में अहम था. जहाँ एक तरफ विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा गया, वही दूसरी ओर सिर्फ और सिर्फ एक व्यक्ति विशेष के विरूद्ध बनावटी मुद्दे बनाकर चुनाव लड़ा गया. जहाँ एक पार्टी अपने ५ साल के काम और आने वाले ५ साल का एक रोड मैप लेकर जनता के बीच में गयी थी. दूसरी पार्टी झूठे और मनगढंत आरोपों के साथ मैदान में थी और साथ में था वर्षो से चला आ रहा जातिगत समीकरण, अप्राकृतिक गठबंधन, वंशवाद और एक सर्व स्वीकार्य नेता की कमी. और यही कारन है की विपक्ष ने जनता के लिए चुनाव एकदम आसान बना दिया. अक्सर जब आपके पास एक ओर सशक्त विकल्प होता है तो झुकाव स्वाभाविक है. और वही हुआ भी.

लेकिन इन सब के बीच बिहार से एक खबर आ रही है की चुनाव नतीजों के बाद श्री लालू यादव जी अस्वस्थ हैं और चिकित्सक के सलाह के विपरीत अपना दिन का भोजन त्याग दिया है. उनका इस तरह उदास होना स्वाभाविक है, क्योंकि जबसे राजद बना है, तबसे अब तक का ये सबसे ख़राब चुनावी प्रदर्शन रहा है. राष्ट्रीय जनता दल का एक भी उम्मीदवार जीत नहीं पाया, मीसा, अब्दुल बारी इत्यादि सभी बड़े नेता चुनाव हार गए.

आखिर इस करारी शिकश्त की क्या वजह है? इसी चिंतन में शायद लालू जी लगे होंगे.

खैर हम थोड़ा पीछे चलते हैं, बिहार के २०१५ विधानसभा का चुनाव और उसका परिणाम. नितीश और लालू जी के गठबंधन की जीत हुई थी. लालू जी का वो गरजता हुआ भाषण और मोदी जी पर जोरदार प्रहार. उनकी किसी भी सभा का वीडियो देख लीजिये, इसके सिवाय उन्होंने कोई बात नहीं की. फिर भी उनकी जीत हुई. लालू परिवार की नज़र में भले ही वो उनके शानदार भाषण और चुनाव मैनेजमेंट की जीत थी, लेकिन सच्चाई कुछ और थी. जिसे न लालू ने समझा और न ही उनके विशाल राजद परिवार ने. लेकिन बिहार के किसी भी व्यक्ति से पूछ लीजिये, वो आपको बताते संकोच नहीं करेगा की उन्होंने नितीश की छवि पर वोट दिया था न की लालू जी को. लालू जी को तो जनता सालों पहले त्याग चुकी थी और उनको वापस लाने की कोई खास वजह लोगों के पास था नहीं. लोगों के सामने था तो नितीश का विकास पुरुष वाला छवि और जिसे लोगों ने भाजपा के विरूद्ध जाने पर भी छोरा नहीं.

लेकिन यही बात तेजस्वी नहीं समझे और उन्हें हमेशा से ये गुमान रहा है की वो जीत उनके युवा नेतृत्व की वजह से मिली थी.

आप २०१५ का बिहार का शपथ ग्रहण समारोह देखिये, ऐसा लग रहा था जैसे राजा लालू के लाल का राज्याभिषेक हो रहा है. और लालू राबड़ी की वो नम आँखे, एक माता पिता के रूप में वो पल अविस्मरणीय होगा. लेकिन यही सबसे बड़ी चूक हो गयी उनसे. ये अच्छा मौका था, वो अपने बेटों को थोड़ा ग्रास रुट लेवल का पॉलिटिक्स सीखने देते और जनता के बीच थोड़ा समय बीता लेने देते. लेकिन इसके विपरीत सत्ता का नशा लालू सहित पूरे परिवार पर चढ़ गया, जनता धीरे धीरे समझ गयी की ये लोग सिर्फ और सिर्फ नाम पर राजनीती करते हैं इन्हे जनता से कोई मतलब नहीं था. बाकि लालू यादव का पुराना ट्रैक रिकॉर्ड सामने था. बाकि रही सही कसर उस वक़्त राजद परिवार के नेताओ के बयानों ने पूरा कर दिया.

जनता के साथ साथ, नितीश ने भी जनता के मन की बात सुनी और समझी. और हवा का रुख समझकर गठबंधन से बहार निकले और भाजपा में वापसी की.

लेकिन न लालू समझ पाए और न लालू के लाल. चुनाव में सभी वरिष्ठ नेताओ को दरकिनार किया गया, सिर्फ और सिर्फ व्यक्ति विशेष पर निशाना साधा गया, किसी भी सभा में जन सरोकार की बात नहीं की, और ग्राउंड रियलिटी समझे बिना टिकट का बटवारा किया और सिर्फ चुनिंदा चाटुकार को तरजीह दी. नतीजा सबके सामने है और यही बात लालू जी को परेशान कर रही होगी. उनके नाम के बदौलत उन्होंने अपने बेटों को मंत्री तो बना दिया, लेकिन राजनीति शायद सीखा नहीं पाए. वरना वो भी एक दौर बिहार ने देखा है की लालू की एक आवाज़ पे बिहार में चक्का जाम हो जाया करता था, पटना के गाँधी मैदान में लाठी रैली में लाखो में लोग जुट जाते थे.

खैर हम तो यही कहेंगे लालू जी आप परेशान न हो और अपना ध्यान रखें. जब सब कुछ तेजस्वी को सौप ही चुके हैं तो अब बस राजनीतिक मोह माया त्यागिये, बाकी की सजा पूरा कीजिये और देखते रहिये बाहर की ब्रेकिंग न्यूज़.

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

- Advertisement -

Latest News

Recently Popular