Friday, April 19, 2024
HomeHindiगिलगित-बाल्टिस्तान, जम्मू-कश्मीर और अनुच्छेद 370 व 35'A'

गिलगित-बाल्टिस्तान, जम्मू-कश्मीर और अनुच्छेद 370 व 35’A’

Also Read

anonBrook
anonBrook
Manga प्रेमी| चित्रकलाकार| हिन्दू|स्वधर्मे निधनं श्रेयः| #AariyanRedPanda दक्षिणपंथी चहेटक (हिन्दी में कहें तो राइट विंग ट्रोल)| कृण्वन्तो विश्वं आर्यम्|

वास्तव में अगर जम्मू-कश्मीर के बारे में बातचीत करनी है, तो जरूरत है सबसे पहले PoK-अक्साई चीन के बारे में बातचीत की। इसके ऊपर देश में चर्चा होनी चाहिए। गिलगित जो अभी PoK में है, विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जो कि 5 देशों से जुड़ा हुआ है – अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, पाकिस्तान, भारत और तिब्बत-चीन।

वास्तव में जम्मू-कश्मीर की महत्ता जम्मू के कारण नहीं, कश्मीर के कारण नहीं, लद्दाख के कारण नहीं बल्कि अगर यह महत्वपूर्ण है तो वह है गिलगित-बाल्टिस्तान के कारण।

इतिहास में भारत पर जितने भी आक्रमण हुए, यूनानियों से लेकर आज तक (शक, हूण, कुषाण, मुग़ल) वह सारे गिलगित के रास्ते हुए। हमारे पूर्वज जम्मू-कश्मीर के महत्व को समझते थे। उनको पता था कि अगर भारत को सुरक्षित रखना है तो दुश्मन को हिंदूकुश अर्थात गिलगित-बाल्टिस्तान के उस पार ही रखना होगा। किसी समय इस गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन अपना बेस गिलगित में बनाना चाहता था। रूस भी गिलगित में बैठना चाहता था। यहां तक कि पाकिस्तान ने 1965 में गिलगित को रूस को देने का वादा तक कर लिया था। आज चीन गिलगित में बैठना चाहता है और वह अपने पैर पसार भी चुका है। पाकिस्तान तो खैर बैठना चाहता ही था।

दुर्भाग्य से इस गिलगित के महत्व को सारी दुनिया समझती है केवल एक उसको छोड़कर, जिसका वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान है- वो है भारत। क्योंकि हमको इस बात की कल्पना तक नहीं है कि भारत को अगर सुरक्षित रहना है तो हमें गिलगित-बाल्टिस्तान किसी भी हालत में चाहिए।

आज हम आर्थिक शक्ति बनने की सोच रहे हैं। क्या आपको पता है गिलगित से थल मार्ग से आप विश्व के अधिकांश कोनों में जा सकते हैं। गिलगित से 5000 km दुबई है, 1400 Km दिल्ली है, 2800 Km मुंबई है, 3500 Km रूस है, चेन्नई 3800 Km है और लंदन 8000 Km है।

एक समय जब हमारा सारे देशों से व्यापार चलता था, 85% जनसंख्या इन मार्गों से जुड़ी हुई थी। मध्य एशिया, यूरेशिया, यूरोप, अफ्रीका सब जगह हम सड़कों से जा सकते हैं अगर गिलगित-बाल्टिस्तान हमारे पास हो।

आज हम पाकिस्तान के सामने ईरान-पाकिस्तान-भारत (IPI) गैस लाइन बिछाने के लिए गिड़गिड़ाते हैं। ये तापी की परियोजना है, जो कभी पूरी नहीं होगी। अगर हमारे पास गिलगित होता तो गिलगित के आगे तज़ाकिस्तान है। ऐसे में हमें किसी के सामने हाथ नहीं फ़ैलाने पड़ते।

हिमालय की 10 बड़ी चोटियां हैं, जो कि विश्व की 10 बड़ी चोटियों में से हैं और ये सारी हमारी है। इन 10 में से 8 गिलगित-बाल्टिस्तान में है। तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद जितने भी पानी के वैकल्पिक स्त्रोत (Alternate Water Resources) हैं, वह सारे गिलगित-बाल्टिस्तान में है।

आप अचंभित हो जाएँगे यह जानकर कि वहां बड़ी-बड़ी यूरेनियम और सोने की खदाने हैं। PoK के मिनरल डिपार्टमेंट की रिपोर्ट को पढ़िए, आप आश्चर्यचकित रह जाएँगे। वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान का महत्व हमको (भारत को) मालूम नहीं है। और सबसे बड़ी बात यह कि गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग पाकिस्तान विरोधी हैं।

दुर्भाग्य है कि हम हमेशा कश्मीर बोलते हैं, जम्मू-कश्मीर नहीं बोलतेl कश्मीर कहते ही जम्मू, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान दिमाग से निकल जाता हैl ये जो पाकिस्तान के कब्जे में PoK है, उसका क्षेत्रफल 79000 वर्ग किलोमीटर है। उसमें कश्मीर का हिस्सा तो सिर्फ 6000 वर्ग किलोमीटर है लेकिन 9000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा जम्मू का है और 64000 वर्ग किलोमीटर हिस्सा लद्दाख का है, जो कि गिलगित-बाल्टिस्तान है। यह कभी कश्मीर का हिस्सा नहीं था। यह लद्दाख का हिस्सा था और वास्तव में सच्चाई यही है। इसलिए पाकिस्तान यह जो बार-बार कश्मीर का राग अलापता रहता है तो उसको कोई यह पूछे तो सही – क्या गिलगित-बाल्टिस्तान और जम्मू का हिस्सा जिस पर तुमने कब्ज़ा कर रखा है, क्या ये भी कश्मीर का ही भाग है? कोई जवाब नहीं मिलेगा।

भारत में आयोजित एक सेमिनार में गिलगित-बाल्टिस्तान के एक बड़े नेता को बुलाया गया था। उन्होंने कहा, “हम भारत भूमि के भुला दिए गए लोग हैं।” उन्होंने कहा कि भारत हमारी बात ही नहीं जानता।

किसी ने उनसे सवाल किया कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं ?

जवाब था – “60 साल बाद तो आपने मुझे भारत बुलाया और वह भी अमेरिकन टूरिस्ट वीजा पर और आप मुझसे सवाल पूछते हैं कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं l आप गिलगित-बाल्टिस्तान के बच्चों को IIT , IIM में दाखिला दीजिए, AIIMS में हमारे लोगों का इलाज कीजिए… हमें यह लगे तो सही कि भारत हमारी चिंता करता है, हमारी बात करता है। गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की सेना कितने अत्याचार करती है, लेकिन आपके किसी भी राष्ट्रीय अखबार में उसका जिक्र तक नहीं आता है। आप हमें ये अहसास तो दिलाइए कि आप हमारे साथ हैं।”

उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “आप सभी ने पाक को ‘हमारे’ कश्मीर में हर सहायता उपलब्ध कराते हुए देखा होगा। वह कहता है कि हम कश्मीर की जनता के साथ हैं, कश्मीर की आवाम हमारी है l लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि किसी भी भारत के नेता, मंत्री या सरकार ने यह कहा हो कि हम PoK या गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता के साथ हैं, वह हमारी आवाम हैं, उनको जो भी सहायता चाहिए होगी, हम उपलब्ध करवाएंगे – नहीं, आपने यह कभी नहीं सुना होगाl कॉन्ग्रेस सरकार ने कभी PoK या गिलगित-बाल्टिस्तान को पुनः भारत में लाने के लिए कोई बयान तक नहीं दिया, प्रयास तो बहुत दूर की बात है।

आपको बता दें कि पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय PoK का मुद्दा उठाया गया था, फिर 10 साल पुनः मौन धारण हो गया और फिर से नरेंद्र मोदी की सरकार आने पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में ये मुद्दा उठाया।

आज अगर आप किसी को गिलगित के बारे में पूछ भी लेंगे तो उसे यह पता नहीं होगा कि यह जम्मू-कश्मीर का ही भाग है l वह यह पूछेगा कि क्या यह किसी चिड़िया का नाम है? वास्तव में जम्मू-कश्मीर के बारे में हमारा जो गलत नजरिया है, उसको बदलने की जरूरत है।

अब करना क्या चाहिए ?

पहली बात कि सुरक्षा में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा का मुद्दा बहुत संवेदनशील है। इस पर अनावश्यक वाद-विवाद नहीं होना चाहिए।

एक अनावश्यक वाद-विवाद चलता है कि जम्मू-कश्मीर में इतनी सेना क्यों है?

तो बुद्धिजीवियों को बता दिया जाए कि जम्मू-कश्मीर का 2800 किलोमीटर का बॉर्डर है, जिसमें 2400 किलोमीटर पर LoC है l आजादी के बाद भारत ने पांच युद्ध लड़े, वह सभी जम्मू-कश्मीर से लड़े। भारतीय सेना के 18 लोगों को परमवीर चक्र मिला और वह 18 के 18 जम्मू-कश्मीर में वीरगति को प्राप्त हुए हैं। इन युद्धों में 14000 भारतीय सैनिक हुतात्मा हुए हैं, जिनमें से 12000 जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए हैं। अब सेना बॉर्डर पर नहीं तो क्या मध्य प्रदेश में रहेगी? जो सेना की इन बातों को नहीं समझते, वही यह सब अनर्गल चर्चा करते हैं। जम्मू-कश्मीर पर बातचीत करने के बिंदु होने चाहिए- PoK, पश्चिम पाकिस्तान के शरणार्थी, कश्मीरी हिंदू समाज, आतंक से पीड़ित लोग, धारा 370 और 35A का दुरूपयोग, गिलगित-बाल्टिस्तान का वह क्षेत्र जो आज पाकिस्तान-चीन के कब्जे में है।

जम्मू- कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान में अधिकांश जनसंख्या शिया मुसलमानों की है और वे पाक विरोधी हैं। वह आज भी अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं, पर भारत उनके साथ है, ऐसा उनको महसूस कराना चाहिए। दुर्भाग्य से देश कभी उनके साथ खड़ा नहीं हुआ। परंतु पूरे देश में इसकी चर्चा होनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदलना चाहिए। जम्मू-कश्मीर को लेकर सारे देश में सही जानकारी देने की जरूरत है। इसके लिए एक इंफॉर्मेशन कैंपेन चलना चाहिए। पूरे देश में वर्ष में एक बार 26 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर दिवस मनाना चाहिए।

कश्मीर को जड़ से समझिए। कश्मीर में सबसे मुख्य समस्या मिस-कम्युनिकेशन की है। मिस-कम्युनिकेशन यानि भ्रामक जानकारी। ये भ्रामक जानकारी कश्मीरी लोगों में भी है और उससे ज्यादा शेष भारत में है। इस भ्रामक जानकारी को फ़ैलाने में मीडिया, राजनीति और राजनैतिक दलों – सभी का योगदान है।

कश्मीर के नाम से हम जिस भूभाग को जानते हैं, उसके दरअसल चार मुख्य हिस्से हैं। और हम लोगों में से ज्यादातर लोग जम्मू-कश्मीर को तीन हिस्सों में जानते हैं – कश्मीर, जम्मू एवं लद्दाख। गिलगिट-बाल्टिस्तान इसका चौथा भाग है। और सबसे महत्वपूर्ण भाग भी। यही भाग करीब 5 देशों को आपस में मिलाता है – अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन, भारत और कजाकिस्तान। भारत के लिए सामरिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से बेहद महत्वपूर्ण भाग है यह। CPEC सड़क परियोजना इसी क्षेत्र से होकर गुजरती है। इसी क्षेत्र को काबू में करने के लिए पहले अमरीका और ब्रिटेन ने कोशिश की लेकिन अब ये चीन के हाथ लगा। पाकिस्तान ने बेहद चालाकी से इस इलाके को पहले आक्युपाइड जम्मू-कश्मीर से अलग किया। एक अलग प्रदेश बनाया और फिर चीन को इसमें प्रवेश करा दिया।

हम समझते हैं कि समस्त कश्मीर भारत के खिलाफ है। लेकिन ऐसा नहीं है। जम्मू-कश्मीर के लद्दाख और जम्मू रीजन के दस जिलों से में कहीं भी अलगाववादी भावना नहीं है। आतंकवाद जम्मू रीजन में जरूर रहा है लेकिन अलगाववाद नहीं। स्वयं कश्मीर के दस जिलों में से 5 जिलों में अलगाववादी भावना प्रबल है। श्रीनगर, अनंतनाग, सोपोर, बारामुला और कुपवाड़ा। अन्य जिलों में अलगाववाद नहीं के बराबर है। ये अलगाववाद मुख्यतः सुन्नी मुस्लिम इलाकों में है।

इन पांच जिलों में भी अलग-अलग पॉकेट हैं, जहाँ पत्थरबाजी की घटनाएँ होती हैं। जैसे श्रीनगर में डल लेक इलाके में कुछ नहीं है लेकिन लाल चौक इन घटनाओ में सबसे ऊपर है। कश्मीर में करीब 17% आबादी गुज्जर मुस्लिमों की है, जो इन अलगाववादियों के पक्ष में बिलकुल नहीं हैं। न ही शिया मुस्लिम। कारगिल की जनता इनके कतई खिलाफ है। और हमारे मीडिया बंधु इसे ऐसे दिखाते हैं मानो समस्त कश्मीर जल रहा है, हाथ से निकलता जा रहा है। एक-एक पत्थरबाजी की घटना को कवर करने के लिए पत्थरबाजों से ज्यादा पत्रकार वहाँ जमा होते हैं।

अब बात उदाहरण धारा 370 की। यह कुल जमा सिर्फ डेढ़ पेज की है लेकिन इसके इम्पैक्ट बेहद गंभीर हैं। जिसे ठीक से न हम समझते हैं और मजे की बात ये है कि कश्मीरी भी नहीं समझते। एक तरह से पूरा भारत (कश्मीर सहित शेष भारत) धारा 370 को जमीन से जोड़कर देखता है। हम समझते हैं कि धारा 370 की वजह से हम कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते, वहाँ घर नहीं बसा सकते। और कश्मीरी जनता को समझाया जाता है कि इसी धारा 370 की वजह से वो और उनकी जमीनें बची हुई हैं वर्ना उनका सब कुछ छीन कर उन्हें कश्मीर से खदेड़ दिया जाएगा। सच यह है कि लगभग हर पहाड़ी क्षेत्र को बचाने के लिए धारा 370, 371 व 372 है। जिसके तहत यहाँ बाहरी आदमी जमीन नहीं खरीद सकता। नॉर्थ-ईस्ट में तो प्रावधान और कड़े हैं।

लेकिन धारा 370 सिर्फ जमीन तक सीमित नहीं है। धारा 370 के अंतर्गत भारत के किसी भी कानून को जम्मू-कश्मीर में लागू होने से पहले वहाँ की विधानसभा से मंजूरी की जरूरत होती है। और खेल यहीं से शुरू होता है।

धारा 370 जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी होने की पहचान के बारे में भी प्रावधान रखती है, जिसका जमकर दुरुपयोग हुआ है। कुछ और ऐसे प्रावधान इसी धारा में जोड़े गए हैं, जो खुद कश्मीर की जनता के खिलाफ हैं और इसकी आड़ में समस्त फायदे कुछ गिने-चुने परिवारों तक सीमित रखे गए हैं।

इसी में एक पेंच केंद्रीय सहायता का भी है। जो पैकेज केंद्र सरकार लगातार कश्मीर को देती रही है, वो कश्मीर के कुछ जिलों तक सीमित होकर रह गया है। क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा लद्दाख, फिर जम्मू और तीसरे नंबर पर कश्मीर रीजन है। पर संसाधनों को हथियाने में सबसे आगे कश्मीर ही रहा है। यही बात टूरिज्म पर भी उतनी ही लागू होती है। कारगिल एवं उससे जुड़े क्षेत्रों को पर्यटन के लिए कभी प्रमोट नहीं किया गया।

जिस अनुच्छेद 35A (कैपिटल ए) का जिक्र आजकल जम्मू-कश्मीर पर विमर्शों के दौरान हो रहा है, वह संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता। जिस आर्टिकल 35A की वजह से लोग लोकसभा के चुनावों में तो वोट डाल सकते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर में पंचायत से लेकर विधान सभा तक किसी भी चुनाव में इन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं : वह 35A भारत के संविधान में नहीं है। हालाँकि संविधान में अनुच्छेद 35a (स्मॉल ए) जरूर है, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं है। दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है। यह चालाकी इसलिए की गई ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो।

भारतीय संविधान की बहुचर्चित धारा 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार देती है। 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था। भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ देना सीधे-सीधे संविधान को संशोधित करना है। यह अधिकार सिर्फ भारतीय संसद को है। इसलिए 1954 का राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह से असंवैधानिक है।

अनुच्छेद 370 पूर्णतः हटाए जाने तक जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेषाधिकार देता है। लेकिन कुछ लोगों को विशेषाधिकार देने वाला यह अनुच्छेद क्या कुछ अन्य लोगों के मानवाधिकार नहीं छीन रहा है? देश की पूर्व राजनैतिक सत्ताओं ने जम्मू-कश्मीर को लेकर जो संवैधानिक भ्रम और फरेब फैलाया है, उन भ्रमों को दूर किया ही जाना चाहिए।

जरूरी है कि नागरिक मूल अधिकारों के हनन का जिम्मेदार 35A न सिर्फ चर्चाओं में रहे बल्कि ‘एक देश, एक कानून’ को स्थापित करने के क्रम में 370 की समाप्ति से पहले उसकी शाखाओं को काटने तक का काम किया जाए।

अनुच्छेद 35A की वजह से ही :-

भारत के संविधान के अंतर्गत जो मौलिक अधिकार हैं, वह जम्मू-कश्मीर के लोगों पर लागू नहीं होते।

हम भारत के नागरिक होकर भी जम्मू-कश्मीर में जाकर बस नहीं सकते। वहाँ जमीन नहीं खरीद सकते, वहाँ जाकर कोई व्यवसाय नहीं कर सकते। जम्मू-कश्मीर में ही 70 सालों से रह रहे अस्थायी निवासी भी वहाँ जमीन नहीं खरीद सकते। उन्हें और उनकी पीढ़ियों को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, उनके बच्चो को उच्च शिक्षा, स्कॉलरशिप नहीं मिल सकती।

अनुच्छेद 35A महिलाओ में भी लैंगिक भेदभाव करता है। यदि कोई जम्मू-कश्मीर के बाहर की महिला [Non-PRC = जिसके पास PRC (Permanant Resident certificate) नहीं है] जम्मू-कश्मीर के किसी पुरुष से विवाह कर लेती है तो उसे और उसके बच्चों को PRC और सारे अधिकार मिल जाते हैं। इसके उलट अगर जम्मू-कश्मीर की महिला भारत के ही किसी अन्य राज्य के पुरुष के साथ विवाह करती है तो उसके पति और बच्चों को PRC के अधिकार नहीं मिलेंगे। अर्थात वह अपनी ही संपत्ति अपने बच्चों को ट्रांसफर नहीं कर सकती और न ही उसके बच्चे वहाँ पढ़-लिख (उच्च शिक्षा) या नौकरी कर सकते हैं।

अब आप देखिए फारुख अब्दुल्ला ने इंग्लैंड की लड़की से शादी की। उसके बाद वह जम्मू-कश्मीर की निवासी बन गई। उनका बेटा हुआ उमर अब्दुल्ला। ब्रिटिश लड़की से शादी कर उससे हुए बेटे को सब अधिकार है। उमर अब्दुल्ला ने शादी की पंजाब की लड़की से तो उसे भी सारे अधिकार मिल गए और उसके बच्चों को भी। लेकिन उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्लाह ने शादी की राजस्थान के वर्तमान कॉन्ग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पाईलट से तो सारा को तो सब अधिकार है लेकिन उसके बच्चों को अपनी माँ की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है और न ही सचिन पाईलट को।

इसी तरह रेणु नंदा का एक केस है, जो जम्मू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। उनका विवाह पश्चिम बंगाल के एक व्यक्ति से हुआ। दुर्भाग्यवश कुछ सालों बाद उनके पति का देहांत हो गया और वह अपने दो बच्चों के साथ अपने माता-पिता के घर जम्मू वापस लौट आईं। उनके बच्चे बड़े हो गए। अब उनको उच्च शिक्षा आदि में दाखिला नहीं मिल सकता, रेणु नंदा अपनी प्रॉपर्टी अपने बच्चों को ट्रांसफर नहीं कर सकतीं। रेणु नंदा जम्मू-कश्मीर की स्थायी निवासी हैं लेकिन उनके बच्चे वहाँ के निवासी नहीं हैं। क्या इससे बड़ा मानवाधिकार उल्लंघन कोई हो सकता है?

इसके विपरीत अगर पाकिस्तान का कोई लड़का जम्मू-कश्मीर की लड़की से शादी कर लेता है तो उस लड़के को सारे अधिकार और भारत की नागरिकता मिल जाती है।

अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर के लोगों के मानवाधिकारों का हनन करता है। और यह सब किया गया है अनुच्छेद 370 खण्ड (1) उपखण्ड (d) की आड़ में।

इसके अलावा भी अनुच्छेद 370 (1) (d) की आड़ में अनेक संवैधानिक आदेश पारित किए गए, जिससे हमारे संविधान के 130 से ज्यादा अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते। अपवाद व उपांतरण के नाम पर यहाँ के लिए कई प्रावधानों को संशोधित कर दिया गया ताकि राज्य को हर क्षेत्र में असीम शक्तियाँ दी जा सके।

अब कुछ उदाहरण देखिए, क्या-क्या संशोधित किया गया :-

हमारे देश के संविधान का अनुच्छेद-1 और जम्मू-कश्मीर का संविधान भी कहता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। अनुच्छेद-3 राज्य की सीमाओं में संशोधन का अधिकार भारत सरकार को देता है। लेकिन उसमें संवैधानिक आदेश के द्वारा संशोधित किया गया कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर राज्य की सीमा में कोई परिवर्तन नहीं कर सकती।

इसी तरह अनुच्छेद-13 मौलिक अधिकार की जान है। जो यह कहता है कि भारत में कोई भी ऐसी विधि, यंत्रणा अथवा व्यवस्था संविधान में आए और यदि वो मौलिक अधिकार से किसी भी प्रकार से असंगत है तो वो शून्य (Void) माने जाएँगे। लेकिन यहाँ फिर से संवैधानिक आदेश के द्वारा संशोधन किया गया कि अगर जम्मू-कश्मीर के लिए कोई विधि, यंत्रणा अथवा व्यवस्था आए फिर चाहे वो मौलिक अधिकार से विसंगत ही क्यों न हो, वो अमान्य नहीं होंगे।

अनुच्छेद-238 कहता है कि भारत के अन्य राज्यों में विधायिका की अवशिष्ट शक्तियां (Residuary Powers) केंद्र सरकार में निहित है। इसे ऐसे संशोधित कर दिया कि जम्मू-कश्मीर राज्य के संदर्भ में यह शक्तियाँ राज्य में ही निहित होंगीl

केंद्र सरकार की राज्य सूची (State List) जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होंगी।

अनुच्छेद-368 यह कहता है कि संविधान के किसी भी प्रावधान में संशोधन का अधिकार सिर्फ देश की संसद को है। लेकिन संवैधानिक आदेश पारित किया गया कि अनुच्छेद-368 के अंतर्गत संविधान में संशोधन किए गए प्रावधान जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होंगे।

क्या देश की संप्रभु सत्ता अपनी शक्ति को इस हद तक प्रत्यायोजित कर सकती है कि उसके अपने खुद के ही हाथ कट जाएँ?

क्या देश की संप्रभु संसद अनुच्छेद-370 के माध्यम से इस प्रकार की शक्ति का इस्तमाल कर सकती है कि उसकी स्वयं की शक्तियाँ ही क्षीण हो जाए और दूसरे को प्रत्यायोजित हो जाए?

धोखे की इस श्रृंखला में एक और आदेश जारी किया गया और उससे उच्चतम न्यायालय के भी हाथ काट दिए गए। जम्मू-कश्मीर के लोग मौलिक अधिकारों के तहत अनुच्छेद-32 को लेकर सुप्रीम कोर्ट तो आ सकते हैं लेकिन अनुच्छेद-135 और अनुच्छेद-139 जो सुप्रीम कोर्ट को प्रादेश पारित करने की और निर्णय देने की शक्ति प्रदान करता है, ये दोनों ही जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं है।

जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम लागू नहीं होता। एंटी-रेप कानून लागू नहीं होता है और लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो सकती है।

जम्मू कश्मीर में सूचना का अधिकार (RTI) लागू नहीं हो सकता, शिक्षा का अधिकार (RTE) लागू नहीं हो सकता।

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG), वहाँ किसी घोटाले की जांच नहीं कर सकते।

कश्मीर की महिलाओं पर शरीयत कानून लागू होता है।

जम्मू-कश्मीर के 30% अल्पसंख्यक हिंदू, सिख को आरक्षण नहीं दिया जाता है। वहां के 30% अल्पसंख्यक हिन्दू व सिख को बहुसंख्यक का दर्जा मिला हुआ जबकि 70% मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिला हुआ है।

जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है जबकि भारत की अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता हैl

वहाँ के विधानसभा क्षेत्रों को परिसीमन करने का अधिकार भारत के परिसीमन कमिश्नर को नहीं है। क्योंकि आज तक भारत के परिसीमन आयोग को वहाँ लागू नहीं किया गया।

आज सारे देश की राजनीति OBC, ST और SC के इर्द-गिर्द चलती है। इन ओबीसी, एसटी-एससी नेताओं को एक बार जम्मू-कश्मीर जाना चाहिए। आज जम्मू-कश्मीर में 14% ST है। 1991 तक जम्मू-कश्मीर में ST को आरक्षण नहीं था। 1991 में पहली बार ST को आरक्षण मिला और वह भी केवल शिक्षा और रोजगार में जबकि राजनीतिक आरक्षण तो आज भी नहीं है। पंचायत, विधानसभा, नगरपालिका इनमें कोई आरक्षण नहीं है। SC को आरक्षण केवल जम्मू में है, कश्मीर में नहीं।

अब आप कहेंगे कि एक ही राज्य में ऐसा कैसे हो सकता है?

पूरे जम्मू-कश्मीर में 5 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। इनमें से 4 लाख कश्मीर घाटी में हैं। वहाँ पर नौकरियों को जिले और संभाग के आधार पर बांट दिया गया और कश्मीर घाटी में आरक्षण नहीं दिया गया। 2007 में जब सुप्रीम कोर्ट का डंडा चला तो SC को पूरे जम्मू-कश्मीर में आरक्षण मिलना शुरू हुआ। जबकि ओबीसी को तो आज तक आरक्षण नहीं है। आरक्षण तो छोड़िए, उनकी आज तक गणना भी नहीं हुई है।

राष्ट्रपति के द्वारा चुनाव आयुक्त के चुनाव संबंधी नोटिफिकेशन को जब तक जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल जम्मू-कश्मीर के संविधान में नोटिफाई नहीं कर देता, तब तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव करवाने का अधिकार भारतीय निर्वाचन आयोग को नहीं है।

ऊपर के उदाहरण जम्मू-कश्मीर को ध्यान (ख़ास परिवार व लोग) में रखकर कुछ धोखों के बारे में है, जो देश के संविधान के द्वारा किए गए। देश के संविधान की गरिमा को नष्ट करने में कोई कसर बाकि नहीं रखी गई और ये सब कुछ हुआ कॉन्ग्रेस सरकार के तत्वाधान में।

राष्ट्रपति को किसी भी तरह से नया अनुच्छेद संविधान में जोड़ने का कोई अधिकार नहीं है। यह अधिकार सिर्फ देश की संसद का है। इसलिए अनुच्छेद-35A देश की एकता विरोधी, मानवाधिकार विरोधी तो है ही, साथ ही यह संविधान विरोधी भी है। अतः देश के भले के लिए इसका हटना अनिवार्य है और इसके लिए जागरूकता का कार्य हम सब को मिलकर करना है। अतः आप सभी से अनुरोध है कि जितना भी हो सके इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगों के बीच प्रसारित कर एक जन चेतना लाएँ ताकि न्याय से वंचित लोगों को न्याय मिल सके।

(यह लेख मनीष श्रीवास्तव जी के ट्विटर थ्रेड से बनाया गया है।)

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

anonBrook
anonBrook
Manga प्रेमी| चित्रकलाकार| हिन्दू|स्वधर्मे निधनं श्रेयः| #AariyanRedPanda दक्षिणपंथी चहेटक (हिन्दी में कहें तो राइट विंग ट्रोल)| कृण्वन्तो विश्वं आर्यम्|
- Advertisement -

Latest News

Recently Popular