Thursday, April 25, 2024
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Jyoti Ranjan Pathak

‘परीक्षा पर चर्चा’ से दूर होगा तनाव

प्रधानमंत्री के द्वारा परीक्षा से पहले छात्रों के साथ बातचीत बहुत ही सराहनीय कदम है।

मादक पदार्थों का दुरुपयोग सामाजिक गंभीर समस्या

अनेक पश्चिमी देशों में मादक पदार्थों के दुरुपयोग को काफी समय से एक महत्वपूर्ण सामाजिक समस्या के रूप में स्वीकार किया जा रहा है लेकिन भारत में पिछले तीन दशकों से नशीली द्रव्यों का सेवन बड़ा ही सामाजिक खतरा बनता जा रहा है।

दलित प्रेम दिखावा है?

बार–बार दलित–मुस्लिम एकता के दुहाई देने वाले नेता गण इस मामले से बचने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? क्या दलित–मुस्लिम गठजोड़ की बात करना सिर्फ चुनावी स्टंट है? देश में स्वघोषित दलित नेता का दलित प्रेम सिर्फ दिखावा है।

एक गलत फैसला और न्याय व्यवस्था पर उठते सवाल

नागपुर एकल पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने पौक्सो एक्ट को अपने तरीके से परिभाषित करते हुए 12 वर्षीय एक बच्ची पर हुए यौन हमले के लिए नागपुर सत्र न्यायालय द्वारा पौक्सो एक्ट के तहत इस मामले में दोषी ठहराए गए सतीश बंधु रगड़े को इस अपराध से मुक्त कर दिया।

देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून बने

जनसंख्या नियंत्रण कानून का उद्देश्य न केवल व्यक्तियों की संख्या की अनियंत्रित वृद्धि (जनसंख्या विस्फोट) पर नियंत्रण करना होना चाहिए, बल्कि जनसंख्या के अनियंत्रित आवागमन को रोका जाना शहरी क्षेत्रों में लोगों के बढ़ते केन्द्रीकरण को रोका जाना, तथा जनता के पर्याप्त आवास स्थान एवं स्वस्थ पर्यावरण भी करवाया जाना होना चाहिए।

खेला होबे या विकास होबे

मोदी जी का कहना है कि, ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास ‘ यही भारत के विकास के मूलमंत्र हैं। भारत की राजनीतिक पार्टियां इन नारों को आत्मसात कर ले, तो किसी प्रकार की खेला खेलने की जरूरत न होगी।

भारत का आत्मनिर्भर अभियान

जहां विश्व की राजनीति की बुनियाद बदली या बदलने की पूरी संभावना है, वहीं भारत का वैश्विक पटल पर बढ़ता हुआ कद हमें गौरान्वित कर रही है। आज हम उस भारत की बात कर रहें हैं, जहां हम आत्मनिर्भर बनने की राह में बहुत आगे निकल चुके हैं।

समान नागरिक संहिता- देश की जरूरत

जब एक देश –एक टैक्स लागू किया जा सकता है, और एक देश –एक चुनाव की बात चल रही है, तो समतामूलक समाज निर्माण के उदेश्य की पूर्ति हेतु एक देश एक कानून क्यों नहीं लागू किया जा सकता है।

‘लव-जिहाद’ को अनदेखा करना सामाजिक खतरा

समाज को समझने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए कि अधिकांश मुस्लिम पुरुषों का प्रेम मजहबी अभियान के अपेक्षा निम्न स्तर का है, जिसका हम साफ-साफ अर्थ यह समझ सकते हैं कि यह इस्लाम के विस्तार हेतु किया गया नापाक कोशिश है। इस मजहबी फैलाव के नाम पर धोखे को सभ्य समाज कब तक नजर अंदाज करेगा?

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