हमारे राम, हमारे आराध्य, हमारी दृष्टि

इधर श्री रामनवमी की शुभकामनाएं दो और उधर वामपंथी मित्रों का कुबुद्धि जन्य कुतर्क प्रारंभ – जिसने सीता को जंगल भेज दिया वो राम, जिसने सीता की अग्नि परीक्षा ली वो राम, जिसने अपनी इच्छा प्रकट करने वाली शूपर्णखा के नाक –कान कटवा दिए वो राम, जिसके लिए एक कपड़े धोने वाला अपनी पत्नी से बड़ा था वो राम इत्यादि इत्यादि।

यूँ तो ऐसे शुभ अवसर पर इन कुतर्कियों  को मुस्करा कर टाल देना चाहिए, क्योंकि ये नहीं जानते ये क्या कह रहे हैं, किन्तु फिर भी यज्ञ कुंड में हड्डी डालने वालों पर क्रोध आना तो स्वाभाविक है और उनका उत्तर देना भी बनता है।

ये कुतर्क मूलतः श्री राम द्वारा अपनी पत्नी सीता के परित्याग से जुड़े होते हैं और इनके माध्यम से विशेष रूप से महिलाओं को ये सन्देश देने का प्रयास होता है कि, आप पितृ सत्तात्मक समाज की व्यवस्था से त्रस्त हैं और ऐसे पुरुष की पूजा कर रही हैं जिसने एक अन्य पुरुष के कहने पर, बिना प्रमाण अपनी पत्नी को जंगल में छोड़ दिया।

उत्तर रामायण के रूप में प्रचलित ये कथा कितनी प्रामाणिक है कोई नहीं जानता क्योंकि स्वयं महर्षि बाल्मीकि भी रावण विजय कर लंका से लौटे श्रीराम के राज्याभिषेक और फिर सहस्त्रों वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य करने की बात कहते हैं। श्री रामभद्राचार्य जी महाराज ने इस कथा का प्रमाण सहित खंडन करते हुए पूरी पुस्तक लिखी है।

अतः हम यहाँ रामकथा के कुछ अन्य सन्दर्भों की चर्चा करते है।

छल का भाजन बनी अहिल्या को ऋषि गौतम ने त्याग दिया, परित्यक्त अहिल्या पाषाण सी हो गयी, उदासीन। किसी ने अहिल्या का पक्ष नहीं लिया किन्तु अयोध्या के राजकुमार के रूप में दशरथनंदन राम ने अहिल्या को उनकी गरिमा और सम्मान वापस दिलाया उन्हें जीवन में वापस लाए,ये एक राजकुमार के रूप में स्त्री सम्मान की रक्षा हेतु श्री राम का प्रथम निर्णय था।

विवाह होने पर पति धर्म की मर्यादा स्थापित करते हुए श्री राम सर्वदा एक पत्नी व्रती रहने का निर्णय लेते हैं यद्यपि क्षत्रिय कुल में बहु पत्नी विवाह मान्य था स्वयं उनके पिता महाराज दशरथ की भी तीन रानियाँ थीं।  

वन गमन के समय मोहग्रस्त महाराज दशरथ कहते हैं, वचन तो मैंने दिया था राम तुम इसे मानने के लिए बाध्य नहीं हो। श्री राम उत्तर देते हैं, ये केवल पिता का वचन नहीं माँ का आदेश भी है, पिता का वचन तोड़ा जा सकता है किन्तु माँ के आदेश की अवहेलना कैसे संभव है?

माता शबरी, के जूठे बेर खाने में रंच मात्र संकोच नहीं रघुबर को। माता को विश्वास था, रामआएंगे तो राम उस विश्वास को कैसे तोड़ सकते थे? भक्त वत्सलता की पराकाष्ठा दिखती है यहाँ।

सीता हरण होता है तो एक सामान्य प्रेमी की भांति व्याकुल होते हैं, “हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी, तुम देखी सीता मृगनयनी?” सीता को ढूँढने के लिए प्राणपण लगा देते हैं।

सुग्रीव से मित्रता होती है, बाली को वृक्ष की ओट से मारते हैं। बाली कहता है, “धर्म हेतु अवतरेहु  गोसाईं, मारेहु मोहि ब्याध की नाईं, मैं बैरी सुग्रीव पिआरा, अवगुन कवन नाथ मोहि मारा।प्रभु श्री राम उतर देते हैं,अनुज वधू भगिनी सुत नारी, सुन सठ कन्या सम ये चारी, इनहिं कुदृष्टि बिलोकय जोई, ताहि बधे कछु पाप न होई”

स्त्री के सम्मान की रक्षा में इससे बड़ी , इससे स्पष्ट नीति विश्व के इतिहास में किसी नायक ने नहीं दी।

अपनी प्रिया सीता, जिनके लिए स्नेह से भरकर वे कहते हैं, “तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा, जानत प्रिया एकुमनु मोरा।  सो मनु सदा रहत तोहि पाहींजानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं”, उनका पता मिलते ही, समुद्र पर्यंत सेतु बांधकर, विकराल युद्ध करते हैं, अपहरण कर्ता का समूल नाश करते हैं और सिया को मुक्त कराके लाते हैं।

अहिल्या, कैकेयी, शबरी, रूमा ( सुग्रीव की पत्नी) और जनक नंदिनी – श्रीराम ने  अपने युग की हर स्त्री के लिए युद्ध किया, है, सम्मान किया है, आदर्श रखा है।

हमारे राम अहिल्या के राम हैं, हमारे राम कैकेयी के राम हैं, हमारे राम सीता के राम हैं, हमारे राम शबरी के राम हैं, हमारे राम रुमा के रक्षक राम हैं, हमारे राम असुर संहारक राम है। उन्ही राम के जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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