हाल में ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा एनआईए को दिए एक आदेश नें देश भर में खूब बवाल मचाया था। मामला 2016 में केरल के एक हिंदू लड़की के धर्मांतरण और शादी का है। जिसकी जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को करनी थी। हाँ, केरल सरकार इसके विरोध में थी, और सरकार (केरल) नें ये साफ कर दिया था कि मामला सिर्फ अंतर-धार्मिक शादी का है। एनआईए नें शुरूआती जांच कर के कहा कि “पहली नजर में ये ऐसा पहला मामला नही है.. लगता है कि महिला का धर्मांतरण कराना और उसके साथ ही शादी करने के ऐसे कई और मामले नोटिस में आए हैं। दूसरे मामलों में कथित तौर पर वो लोग शामिल थे जो ऐसी हिंदू लड़कियों को कनवर्ट करा रहे थे, जिनके मां-बाप से मतभेद थे। हालांकि, मेरे इस लेख का मकसद लव जिहाद को उजागर करना नही है, लेकिन उन नामों को सबसे पहले उजागर करना जरूरी हो गया है जो ऐसे मामलों को सिर्फ अंतर-धार्मिक, सेक्यूलर शादी साबित करने पर तुले हैं।
दरअसल जब, अखिला अशोकन उर्फ हादिया (धर्मांतरण के बाद का नाम) ने कथित रूप से धर्म परिवर्तन कर निकाह किया तो लड़की के पिता ने केरल हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर शादी रद्द करने की गुहार लगाई। परिवार नें आरोप लगाया कि लड़की का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया है। शैफीन नाम के लड़के पर आरोप लगाते हुए परिवार नें कहा कि शैफीन के संबंध आतंकी संगठन ISIS से है। ट्रिपल तलाक जैसी समाजिक कुरीतियों की वकालत कर चूके कपिल सिब्बल और आतंकवादी याकूब मेनन कि फांसी के खिलाफ जंग लड़ने वाली इंदिरा जयसिंह नें शैफीन का बचाव किया। बचाव में दलील दी गई कि मामला सिर्फ अंतर-धार्मिक विवाह का है, और कुछ लोग जानबूझकर इसे लव जिहाद का रंग देने पर तूले रहते हैं। हालांकि जब कोई ऐसी दलील देता है तो वो भूल जाता है कि देश में कई ऐसे मामले हैं जिसमें पीड़िता नें खुद कबूला है कि वो लव जिहाद का शिकार हुई। लव जिहाद का मामला भी कुछ ऐसा ही है जैसे पूरा देश जानता हो कि औरंगजेब एक बेहद क्रूर शासक था, या टीपू सुल्तान नें भले कितने मासूम गैर मुस्लमानों कि हत्या करवाई हों, लेकिन फिर भी देश में एक विशेष विचारधारा रखने वाले बुद्धीजीवी इन्हें भारत के महान हिन्दू प्रेमी शासक साबित कर के रहेंगे।
ये मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हादिया नें सिर्फ दो महीने इस्लाम धर्म की पढ़ाई की है। हालांकि अब वो चाहती है कि उनका परिवार इस्लाम धर्म कबूल कर ले। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हादिया नें अपनी माँ को कई बार हिन्दू होने के लिए ताने भी मारे और नर्क में जाने से बचने के लिए इस्लाम कबूल करने कि बात करती है। लेकिन इन सब बातों की आज चर्चा कर के क्या फायदा? क्या ऐसे लेखों के जरीए समाज को बाटनें कि कोशिश कि जा रही है? नहीं, समाज तो पहले ही बट चुका है। जिस लड़की ने कोर्ट से कहा हो कि वो दो हजार कमाती है और वो अपने परिवार से अलग रह सकती है, जिससे उसने निकाह किया वो बेरोजगार है, फिर कपिल सिब्बल और इंदिरा जयसिंह जैसे वकील आर्थिक रूप से कमजोर इन लोगों का केस कैसे लड़ रहें है? या फिर कोई संगठन है जो ऐसे गैर कानूनी शादियों को बढ़ावा देता है?
चलिए इस पूरे मामले कि सबसे महत्वपूर्ण कड़ी पर नजर डालें। दरअसल कोर्ट के संज्ञान में मामला जाने के बाद, केरल कोर्ट नें शादी को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। जिसके बाद कई मुस्लिम संगठन और बुद्धिजीवियों की संस्थाओं नें कोर्ट को जी भर कर ज्ञान दिया। इस मामले को मुस्लिमों के अधिकारों का हनन बताया गया। मुस्लिम एकोपाना समिति जैसे कई केरल के संस्थानों ने हड़ताल किया और मांग थी कि अगर कोई गैर मजहबी महिला इस्लाम कबूल कर रही है तो उसे वैसे ही जीने दिया जाए। मगर ये सारा आक्रोश और न्याय का दिखावा शर्तिया है।
अब चंद दिनों पुराने एक घटना कि बात करते हैं। दरअसल, केरल के मलप्पुरम में एक मुस्लिम लड़की नें अपने परिवार के रजामंजी से एक ईसाई लड़के के साथ शादी कर ली। मामला का पता चलते ही बवाल मच गया। मलप्पुरम में मस्जिद समिति ने फरमान सुनाया है कि लड़की के पिता और परिवार का बहिष्कार किया जाए। हालांकि परिवार में से किसी नें इस्लाम धर्म नही छोड़ा। बस कारण ये कि लड़की के पिता ने अपनी बेटी को एक ईसाई से शादी करने की इजाजत दी थी। लड़की के पिता के खिलाफ 18 अक्टूबर को मस्जिद समिति ने (सेक्यूलर) सर्कुलर जारी किया। इस सर्कुलर में फरमान सुनाया गया था कि समिति का कोई भी सदस्य उनके परिवार की मदद ना करे। यूसेफ की बेटी जसीला की शादी टिस्को टोमी संग हुईं जिसके लिए उसके पिता ने रजामंदी दी। इसी महीने 18 अक्टूबर को दोनों ने अपने विवाह को रजिस्टर कराया।
अब गौर करने वाली बात ये है कि ना तो यहा लड़की पहले गायब हुई जैसा अखिला अशोकन के मामले मे हुआ। ना किसी ने परिवार से छुपा कर गैर कानूनी शादी की। ईसाई लड़के से शादी के बाद जसीला नें अपने परिवार पर ईसाई बनने का दबाव नही डाला। लड़के का संबध किसी गैर कानूनी या आतंकवादी संगठन से नही है। फिर भी इस फरमान के बाद लड़की के पक्ष में ना इंदिरा जयसिंह बोलेगी ना कपिल सिब्बल। बुद्धिजीवियों के वेबसाईट तो भूल ही जाईये..वो तो इस मामले को खबर भी नही मानते। हांँ, रही बात मुस्लिम एकोपाना समिति जैसे संगठनों कि, तो शायद आपने ध्यान नहीं दिया मगर पूरे लेख का मकसद ही यही साबित करना था, कि गैर मुस्लिम बहू मंजूर है, दामाद नही चलेगा।