Friday, March 29, 2024
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क्या 2018 के आम बजट में मध्यम वर्ग के लिए कुछ भी नहीं है ?

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RAJEEV GUPTA
RAJEEV GUPTAhttp://www.carajeevgupta.blogspot.in
Chartered Accountant,Blogger,Writer and Political Analyst. Author of the Book- इस दशक के नेता : नरेंद्र मोदी.

क्या 2018 के आम बजट में मध्यम वर्ग के लिए कुछ भी नहीं है ?

जिस दिन से २०१८-१९ के आम बजट की घोषणा हुई है, देश की विपक्षी पार्टियां और उसके नेता सकते में हैं. २०१९ के लोकसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार का यह आखिरी बजट है और “मिडिल क्लास” यानि कि मध्यम वर्ग भाजपा का सबसे प्रिय वोट बैंक है. २०१४ से अब तक मध्यम वर्ग के लिए अलग अलग बजटों में सरकार रियायत दे भी चुकी है. लेकिन इस बार के बजट में ४०००० रुपये की मानक छूट देने के साथ साथ १९२०० रुपये का यातायात भत्ता और १५००० रुपये के मेडिकल खर्चों के भुगतान को ख़त्म कर दिए जाने की वजह से , मध्यम वर्ग के लोगों को यह लग रहा है मानो यह छूट सिर्फ ५८०० रुपये की ही है, जबकि ऐसा सोचना सही नहीं है. आयकर कानून में इस बार जो ४०००० रुपये की छूट दी गयी है, उसके साथ कोई शर्त नहीं लगी है और वह सभी वेतन भोगियों और पेंशन भोगियों को सामान रूप से मिलने वाली है. इसके विपरीत जो १९२०० रुपये का ट्रांसपोर्ट अलाउंस मिलता था, वह इस शर्त पर मिलता था कि उतनी रकम कर्मचारी ट्रांसपोर्ट पर खर्चा करता होगा. इसी तरह १५००० रुपये के मेडिकल बिल्स देने पर ही मेडिकल के खर्चे मिलते थे. यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि पेंशन भोगियों को यह दोनों ही भत्ते यानि ट्रांसपोर्ट अलाउंस और मेडिकल खर्चे के भुगतान उपलब्ध नहीं था. जिन कर्मचारियों को दफ्तर की तरफ से कोई सवारी या आने जाने की सुविधा मिली हुई थी, उन्हें भी ट्रांसपोर्ट अलाउंस उपलब्ध नहीं था. मेडिकल के १५००० रुपये उन्ही को मिलते थे, जिन्होंने वास्तव में यह रकम खर्च की हो और उसके बिल पेश करने पर ही यह भुगतान मिलता था. इस तरह से हम देखें तो अभी घोषित की गयी ४०००० रुपये की छूट की तुलना उन छोटे मोठे भत्तों से करना सर्वथा अनुचित है. लेकिन क्योंकि इतनी बारीकी से लोगों को समझाने में समय लगता है, उसके चलते विपक्षी राजनेताओं और पार्टियों ने इसी को मुद्दा बनाकर दुष्प्रचार शुरू कर दिया और बजट को “मध्यम वर्ग” के विरुद्ध बताने की कवायद शुरू कर डाली.

बजट के तुरंत बाद ही केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल, केंद्रीय मानव संशाधन राज्य मंत्री सत्य पाल सिंह, भाजपा के नेता श्याम जाजू,ओम बिरला, मीनाक्षी लेखी और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और चार्टर्ड अकाउंटेंट गोपाल कृष्ण अग्रवाल , चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की एक सभा में बजट सम्बन्धी सवालों के जबाब देने के लिए मौजूद थे. उस मीटिंग में मैं खुद भी मौजूद था. जब इन नेताओं से मध्यम वर्ग द्वारा उठाई जाने वाली इन आशंकाओं के बारे में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने सवाल किये तो जो जबाब निकल कर सामने आये, उन्हें संक्षेप में इस तरह से लिखा जा सकता है :

१. सरकार के पास सीमित साधन होते हैं और उन्ही साधनों में से उसे समाज के सभी वर्गों का ध्यान रखना होता है. अगर सरकार को सिर्फ कागज़ों पर योजनाओं की घोषणा करनी हो और उन्हें अमल में नहीं लाना हो तो कुछ भी घोषणाएं की जा सकती हैं, लेकिन यह सरकार सभी घोषित योजनाओं को अमल में लाने के लिए कृत संकल्प है और इसलिए सिर्फ ऐसी घोषणाएं कर रही है जिन्हे वास्तव में पूरा किया जा सके.

२. साल १९७१ से ही देश में “गरीबी हटाओ” का नारा चलाया जा रहा है और अब तक किसी भी सरकार ने “गरीबी हटाने ” के लिए कोई ठोस काम नहीं किया है. मोदी सरकार ने आते ही जान धन बैंक खाते खुलवाकर , उन्हें आधार से लिंक करवाकर यह सुनिश्चित किया कि गरीबों को जो कुछ भी मिलना है वह न सिर्फ सीधे उनके खाते में जाए, बल्कि आधार से लिंक होने की वजह से यह भी सुनिश्चित किया कि गरीबों को मिलने वाली रकम किसी गलत हाथ में न चली जाए.

३. मध्यम वर्ग के लिए पिछले बजटों में दो बार रियायत दी जा चुकी है, उस समय समाज के कुछ और वर्ग छूट गए थे, क्योंकि संसाधन सीमित होते हैं. इस बार समाज के अन्य सभी वर्गों को भी रियायत देने का संकल्प लिया गया है, इसकी वजह से मिडिल क्लास के लिए जो कुछ भी किया गया है, वह उन्हें कम लग सकता है लेकिन सरकार ने इसी बजट में जो अन्य कदम उठाये हैं, उनका अपरोक्ष रूप से फायदा भी मिडिल क्लास को ही पहुँचने वाला है. सरकार के प्रतिनिधियों का यह भी कहना था कि किसानों के साथ साथ वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी इस बार दिल खोलकर रियायतें दी गयी हैं और सरकार वरिष्ठ नागरिकों को भी “मिडिल क्लास” का ही हिस्सा मानती है.

जब यह सारी बातचीत हो रही थी तो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भी अपने सवाल जबाब सरकार के प्रतिनिधियों से करके उन पर अपना स्पष्टीकरण मांग रहे थे. एक सवाल का स्पष्टीकरण देते हुए सरकार के एक प्रतिनिधि ने इस तरह से जबाब दिया :

” सिर्फ जो लोग वेतन पाते हैं, वही मध्यम वर्ग नहीं हैं. मध्यम वर्ग वे भी हैं जो वेतन नहीं पाते हैं और अपने अपने छोटे मोटे रोजगार या पेशे से जुड़े हुए हैं. अगर देश में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे में सुधार होगा तो क्या उसका फायदा मिडिल क्लास को नहीं मिलेगा ? सरकार की कोशिश किसी वर्ग विशेष को ज्यादा या कम सुविधाएँ देने की न होकर, इस तरह के बजट बनाने की थी, जिसका लाभ समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सामान रूप से पहुँचाया जा सके और जिस “गरीबी हटाओ” को १९७१ से सिर्फ एक नारा बनाकर छोड़ दिया गया था, उसे अमली रूप दिया जा सके.”

शेयर मार्किट में होने वाले दीर्घ कालीन लाभ पर १०% कर लगाने के बारे में यह बात बताई गयी कि इस छूट का दुरूपयोग बड़ी बड़ी कम्पनियाँ कर रहित आमदनी बनाने में कर रही थीं. सरकार ने इस पर १०% कर लगाया है लेकिन मिडिल क्लास के लिए यहां भी यह छूट दे दी है कि इस तरह से कमाए गए १००००० रुपये पर कोई टेक्स नहीं देना होगा. इस तरह से मिडिल क्लास को यहां भी छूट मिली है क्योंकि जो लोग गरीबी से तंग हैं, वे तो शेयर मार्किट में काम करते नहीं हैं और जो गरीबी की रेखा से बहुत ऊपर यानि उच्च आय वर्ग में आते हैं, उन्ही से १० प्रतिशत टेक्स लिए जाने की योजना है.

जब इस मीटिंग में से एक एक करके सारे मंत्री और नेता चले गए और सिर्फ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ही रह गए तो जो चर्चा हुई, वह काफी रोचक थी और उसका सार यह था कि जो बजट २०१८-१९ के लिए पेश किया गया है, उससे बेहतर बजट इन इन हालात में बनाना संभव नहीं था और शायद इसीलिये विपक्ष किसी और मुद्दे पर इसका विरोध भी नहीं कर पा रहा है. विपक्ष को थोड़ी सी आशा की किरण इसी बात में लग रही है कि “मिडिल क्लास” के मुद्दे पर दुष्प्रचार करके , भाजपा के वोट बैंक में थोड़ी बहुत सेंध लगाने में कामयाब हो सके. इस बात की भी चर्चा हुई कि ऐसे समय में सरकार को राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति,राज्यपाल और संसद सदस्यों के वेतन भत्तों पर प्रस्ताव नहीं लाना चाहिए था.

मेरा अपना मानना यह है कि “मिडिल क्लास” इस देश में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा, जागरूक और समझदार वर्ग है. कुछ टेक्स में कम रियायत मिलने पर वह यह नहीं करने वाला हैं कि मोदी को पी एम बनाने की जगह वह कुछ ऐसा कर बैठे जिससे राहुल, केजरी,अखिलेश,ममता,माया,मुलायम,तेजस्वी यादव जैसे लोगों में से कोई व्यक्ति इस देश का प्रधान मंत्री बन बैठे. मेरा अपना मानना यह भी है कि २०१९ के चुनावों में भाजपा को बड़ी चुनौती न तो “मिडिल क्लास” है और न ही बजट है. जो सबसे बड़ी चुनौती है वह कश्मीर से आने वाली है. कश्मीर में जिस तरह से देशद्रोहियों के साथ मिलकर भाजपा ने अपनी सरकार बना रखी है और जिस तरह से आम आदमी से वसूले हुए टेक्स को कश्मीरी देशद्रोहियों पर लुटाया जा रहा है, उसे लेकर सोशल मीडिया में काफी आक्रोश है. मेजर आदित्य पर FIR और ९७३० देशद्रोही पत्थरबाजों को बिना किसी दंड दिए छोड़ देना भी देशवासी हज़म नहीं कर पा रहे हैं. हुर्रियत के आतंकवादियों की सुरक्षा पर सरकार जिस तरह करोड़ों रुपये लुटा रही है, उसे भी देशवासी स्वीकार करने के मूड में नहीं हैं. बजट के बाद से ही कुछ विपक्षी नेताओं के इशारे पर जिस तरह से शेयर मार्किट को गिराया जा रहा है, उसे देखकर लगता है कि या तो सरकार का ख़ुफ़िया तंत्र ठप्प हो गया है या फिर सारी जानकारी होने पर भी ऐसे “आर्थिक अपराधियों” पर पर्याप्त सुबूत होने के बाबजूद भी कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही है. ४ फरवरी २०१८ के “सन्डे गार्जियन” में एक विस्तार से लिखे गए लेख में इस बात का खुलासा किया गया है कि एक वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शेयर मार्किट को २०१९ के आम चुनावों से पहले भी गिराने की योजना बना रहा है. इस नेता और उसके बेटे के खिलाफ पहले से ही कई मामले चल रहे हैं, लेकिन सरकार इस नेता से “जेल की चक्की” पिसवाने में किस बात का संकोच कर रही है, यह लोगों की समझ से परे हैं.

(लेखक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और टैक्स मामलों के एक्सपर्ट हैं.)

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