काशी की धरा अब डोल रही है मुक्ति मुक्ति बोल रही है – कविता
काशी की धरा अब डोल रही है; मुक्ति मुक्ति बोल रही है. बाबा का नंदी जाग उठा है; प्रभु के दर्शन को खड़ा है
24 May 2022
काशी की धरा अब डोल रही है; मुक्ति मुक्ति बोल रही है. बाबा का नंदी जाग उठा है; प्रभु के दर्शन को खड़ा है
बढ़ रही है जनसंख्या तो बढ़ने दो; आ रही है मुश्किले तो आने दो, अगर यह भीड़ गायब हो गई; तो पत्थर कौन फेंकेंगा,…
हार जीत का सबसे ज्यादा फर्क; उसको ही पड़ता है. नेता आते हैं जाते; कार्यकर्ता वहीं रह जाता है.