हमारा देश “धर्म निरपेक्ष” है या “पंथ निरपेक्ष”- एक सनातनी का एक वामपंथी से शास्त्रार्थ: PART-2

Hinduism

हे मित्रों आपने हमारे और हमारे वामपंथी मित्र के मध्य हुए शास्त्रार्थ का प्रथम अंक आपने पढ़ा जिसमे हमने अपने वामपंथी मित्र को “धर्म ” क्या है, इसके संदर्भ में अत्यंत अकाट्य और ज्ञानवर्धक जानकारी दी अत: अब इस अंक में हम “पंथ” के विषय में चर्चा करेंगे।

अब आओ हम देखते हैं कि “पंथ” क्या होता है?

श्रीमद भागवत गीता के चौथे अध्याय के ग्यारहवें श्लोक की दूसरी पंक्ति में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:-

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।

मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।

जो मुझे जैसे भजते हैं,  मैं उन पर वैसे ही अनुग्रह करता हूँ;  हे पार्थ सभी मनुष्य सब प्रकार से, मेरे ही मार्ग का अनुवर्तन करते हैं। अर्थात ‘लोग भिन्न-भिन्न मार्गों द्वारा प्रयत्न करते हुए अंत में मेरी ही ओर आते हैं।’ हे पार्थ याद रखो एक ही पुरुषमें मुमुक्षुत्व (मोक्ष कि इच्छा रखना) और फलार्थित्व (फलकी इच्छा करना) यह दोनों एक साथ नहीं हो सकते। इसलिये जो फलकी इच्छावाले हैं उन्हें फल देकर जो फलको न चाहते हुए शास्त्रोक्त प्रकारसे कर्म करनेवाले और मुमुक्षु हैं उनको ज्ञान देकर जो ज्ञानी संन्यासी और मुमुक्षु हैं उन्हें मोक्ष देकर तथा आर्तोंका दुःख दूर करके इस प्रकार जो जिस तरहसे मुझे भजते हैं उनको मैं भी वैसे ही भजता हूँ।

रागद्वेषके कारण यह मोहके कारण तो मैं किसीको भी नहीं भजता। हे पार्थ मनुष्य सब तरहसे बर्तते हुए भी सर्वत्र स्थित मुझ ईश्वरके ही मार्गका सब प्रकारसे अनुसरण करते हैं जो जिस फलकी इच्छासे जिस कर्मके अधिकारी बने हुए (उस कर्मके अनुरूप) प्रयत्न करते हैं वे ही मनुष्य कहे जाते हैं।

अत: स्पष्ट है कि पंथ और कुछ भी नहीं अपितु एक मार्ग एक विचारधारा एक प्रकार है धर्म तक पहुंचने का। उदाहरण के लिए हे वामपंथी मित्र यदि तुम्हें अपने आका चिन के कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मिलना है तो तुम्हें भारत से चिन जाना पड़ेगा। चिन जाने के लिए तुम या तो स्थल मार्ग से या जल मार्ग से या फिर वायु मार्ग से हि जा सकते हो, अब ये तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है कि तुम किस मार्ग का अनुसरण करते हो।

हे वामपंथी मैं इसे एक और उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ, सुनो श्री रामचरित मानस के लंकाकांड मे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रावण और विभीषण संवाद के रूप में लिखा है:-

काम क्रोध, मद, लोभ, सब, नाथ नरक के पंथ।

सब परिहरि रघुबीरहि, भजहुँ भजहिं जेहि संत।

अब इस चौपाई में “पंथ” शब्द का उपयोग किया गया है, ए वामपंथी मित्र सुनो विभीषणजी अपने अग्रज रावण को पाप के रास्ते पर आगे बढने से रोकने के लिए समझाते हैं कि काम, क्रोध, अहंकार, लोभ आदि नरक के रास्ते (पंथ) पर ले जाने वाले हैं। काम के वश होकर आपने जो देवी सीता का हरण किया है और आपको जो बल का अहंकार हो रहा है, वह आपके विनाश का रास्ता है। जिस प्रकार साधु लोग सब कुछ त्यागकर भगवान का नाम जपते हैं आप भी राम के हो जाएं। मनुष्य को भी इस लोक में और परलोक में सुख, शांति और उन्नति के लिए इन पाप की ओर ले जाने वाले तत्वों से बचना चाहिए।

अत: हे वामपंथी मित्र सुनो “पंथ” अर्थात मार्ग, रास्ता, सड़क या  रोड, जिस पर चलकर। आप अपने लक्ष्य तक पहुंचते है। यहां लक्ष्य है-धर्म। अब तक की मुख्य और मनोवैज्ञानिक चुनौती यह रही है कि आदमी के अंदर धर्म के इन दस लक्षणों (धृति अर्थात धैर्य, क्षमा , दम अर्थात अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना, अस्तेय अर्थात चोरी न करना, शौच अर्थात अन्तरंग और बाह्य शुचिता, इन्द्रिय निग्रहः अर्थात इन्द्रियों को वश मे रखना, धी अर्थात बुद्धिमत्ता का प्रयोग, विद्या अर्थात अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा, सत्य अर्थात मन वचन कर्म से सत्य का पालन और अक्रोध अर्थात क्रोध न करना) में से अधिक से अधिक को कैसे स्थापित किया जाए।

इन्हीं उपायों को भगवान् गौतम बुद्ध ने बौद्ध शिक्षा के माध्यम से बताया, तो महान तीर्थंकर महावीर स्वामी ने जैन शिक्षा,परम पूज्यनीय गुरुनानक देव जी ने “सिक्ख शिक्षा”, आदि शंकराचार्य ने “वैदिक शिक्षा” नारायण स्वामी महान कवि  कबीरदास, आदि महान एवं पवित्र आत्माओं ने अपनी-अपनी तरह से। ये उपाय ही हैं ‘पंथ’, जिसे संविधान की प्रस्तावना में ‘विश्‍वास एवं उपासना’ कहा गया है। ‘पंथ’ को हम धर्म तक पहुंचने का विधान कह सकते हैं, पद्धति कह सकते हैं।

इसी प्रकार यूरोप और अरब में पैगम्बर मूसा ने यहूदी पंथ के अनुसार, ईसा मसीह ने “ईसाई पंथ” और पैगम्बर मोहम्मद ने इस्लाम पंथ के अनुसार “धर्म” तक पहुंचने का मार्ग बताया।

और चुंकि हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिक्ख पंथ सब सनातन धर्म कि शाखाएं हैं और इसी प्रकार, यहूदी, ईसाई और इस्लामिक पंथ अब्राहमिक होते हुए भी यूरोप और अरब में फैली सनातनी धर्म के हि अंश हैं।

अब एसे मे यदि ‘सेक्‍युलर’ को हिन्दी में ‘पंथनिरपेक्ष’ न कहकर ‘धर्मनिरपेक्ष’ कहा जाए तो अंतर पड़ जाएगा। राष्ट्रपति के रूप में स्व डॉ. शंकरदयाल शर्मा भी हिन्दी में ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द ही बोलते थे।

 इसलिए ‘पंथनिरपेक्ष’ तो हुआ जा सकता है, ‘धर्मनिरपेक्ष’ नहीं। और यही भारतीयता भी है, जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने सन् १८९३ ई में शिकागो के विश्‍व धर्म सम्मेलन में कहा था, ‘मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव कहता हूं, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी है।’

तो हे मित्र उपर्युक्त विस्तृत रुपरेखा के खींच जाने के पश्चात आपके मन में उत्पन्न होने वाला भरम दूर हो गया होगा और आप समझ गए होंगे कि “पंथ” शब्द का अर्थ है विचारधारा, उदाहरण के लिए वामपंथ, दक्षिण पंथ, ईश्वर प्राप्ति के लिए कबीर पंथ, ईशा पंत ईसाई, मोहम्मद पंथी, मूसा पन्थ  इत्यादि अंग्रेजी में इसका शाब्दिक अर्थ कल्ट अथवा कल्चर अथवा Path हो सकता है।

अब अंत में आओ तुम्हें सनातन का अर्थ भी बता हि देते हैं:

सनातन’ का अर्थ है– शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। अर्थात ऐसा धर्म जो वैदिक काल से भी पूर्व धरती पर व्याप्त रहा हो और आने वाले समय में भी यह अनंत काल तक ऐसे ही विश्व में व्याप्त रहेगा।

सनातन धर्म  विश्व का एकमात्र धर्म  है। सनातन धर्म की उत्पत्ति धरती पर मानवों की उत्पत्ति से भी पहले हुई अतः इसे ‘वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म’ के नाम से भी जाना जाता है। हे मित्र याद रखो:-

पैगम्बर मूसा से “यहूदी”, पैगम्बर ईसा से “ईसाई”, पैगम्बर मोहम्मद से “इस्लाम”। कबीरदास जी से “कबिरपंथ” तथा कार्ल मार्क्स से “वामपन्थ” इत्यादि का उदय हुआ परन्तु सनातन धर्म को पैदा करने वाला तो सर्व शक्तिमान निराकार वो परमेश्वर है, जिसने सब कुछ अपने नियम के अनुसार बनाया।

इसीलिए हमारा देश एक “पंथ -निरपेक्ष” देश है और संविधान में  प्रयुक्त Secular  शब्द “पंथ निरपेक्षता” का हि द्योतक है।

हमारे इन अकाट्य तर्को और जानकारी से हमारे वामपंथी मित्र  शिकस्त खाए खिलाडी कि भांति शीश झुका कर चलें गए।

लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

aryan_innag@yahoo.co.in

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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