अमिट अमर अटल

“अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा” – ये शब्द केवल भविष्यवाणी नहीं। इन शब्दों ने जब वास्तविकता का रूप लिया तो केवल इनके वक्ता का नहीं, उसके दल का नहीं, एक राष्ट्र का इतिहास बदल दिया।

अटल बिहारी वाजपेयी – क्या पहचान है इस नाम की? कवि, कार्यकर्ता, संगठक, नेता, प्रधानमंत्री, भारत रत्न? मेरे जैसे करोड़ों आम भारतीयों के लिए अटल जी की पहचान इन सारे पदों और पदवियों से परे एक ऐसे व्यक्तित्व की है जिसने पचास वर्ष पुराने एक राष्ट्र को बड़े सपने देखना और उन्हें पूरा करना सिखाया, आत्मबल की अनुभूति कराई और हज़ारों साल पुरानी अपनी सभ्यता पर गर्व करना सिखाया।

आजादी के पांच दशक बाद भी जो देश दैनिक आवश्यकताओं – रोटी, कपड़ा, मकान – की पूर्ति में ही उलझा था, उसे प्रगति के हाइवे और उन्नति के एक्सप्रेसवे पर ले जाना, दस वर्ष पूर्व विदेशों में सोना गिरवी रखनेवाले देश को पोखरन के बाद लगे आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद अपने पैरों पर खड़ा रखना, संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देना, “रग-रग हिन्दू मेरा परिचय” कहते हुए भी विश्व पटल पर भारत का मान और मान्यता बढ़ाना, पाकिस्तान के साथ अभूतपूर्व शांति-पहल करना और विश्वासघात होने पर मुंहतोड़ जवाब देना – यह पहचान है वाजपेयी की।

स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेज़ों के विरुद्ध संघर्ष, स्वतंत्र भारत में सत्ता पर लगभग एकाधिकार रखनेवाली कांग्रेस के विपक्ष का संघर्ष, इमरजेन्सी में लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष, प्रतिकूल परिस्थितियों में नयी सोच लेकर एक नये दल का गठन, उसे दो सांसदों से सत्ता-प्राप्ति के लिए पर्याप्त संख्याबल तक पहुँचाने का संघर्ष, २३ दलों के गठबंधन की सरकार को चलाना, देश को विश्वास दिलाना कि गैर-कांग्रेसी सरकार भी संभव और सफल हो सकती है, और इस पूरी यात्रा में आदर्शों और लोकतांत्रिक मूल्यों से किसी तरह का समझौता ना करना, एक कवि की कल्पना के विस्तार का समन्वय एक कर्मठ, आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी नेता में होना – यह पहचान है वाजपेयी की।

लोग कहते हैं कि वाजपेयी भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह हैं। मेरा मानना है – नहीं, वे भारतीय राजनीति के मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। 🙏

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