ईमानदार पत्रकार कहीं मिलेंगे या राजनीति में दब जाएंगे

आज 21 वीं सदी में भारत में निष्पक्ष रहना मुश्किल है कौन सही है कौन गलत है यह कहना मुश्किल है। हम जिसको गलत समझे वो सही भी हो सकता है और जिसको सही समझे वो ग़लत भी हो सकता है। भारत में हर व्यक्ति किसी ना किसी विचारधारा का प्रचार प्रसार कर रहा है वो चाहे एक पत्रकार हो या एक आम नागरिक, राजनीति की चपेट से कोई अछूता नहीं रहा है और ऐसा करना गरीब लोगो के लिए घातक बिष का काम करता है।

राजनीति में नेता निष्पक्ष पत्रकार को अपनी राजनीति की चपेट में ले लेते है और कह देते है कि यह लोगो को भड़का रहा था और उसके ऊपर मुकदमा कर देते है। राजनीति ने पक्ष विपक्ष के पत्रकार भी पैदा कर दिए है। पत्रकार कोई जादूगर तो नहीं होते की गायब हो जाए, उनका भी परिवार होता है और उनकी भी भावनाएं होती है। वह पत्रकार इसीलिए बना की वह सच की आवाज को उठा सके और गांव और समाज की हालत को सुधार सके। गांव के पत्रकारों में ही ईमानदारी शेष है वो भी राजनीति में दब जाते है।

टीवी और अखबारों के पत्रकार : आज टीवी चैनलों के पत्रकार और अखबारों के अधिकतर पत्रकार किसी ना किसी पार्टी की विचारधारा से समानता रखते है और उसका प्रचार करते है, टीवी और अखबार के पत्रकार गांव तक नहीं पहुंच पाते है जिससे गांवों की हालत दब जाती है। टीवी पर केवल नेताओ को दिखाते रहते है। इस नेता ने अब पानी पी लिया, इस नेता ने अब हंग दिया, इस नेता ने अब पेशाब किया यही सब चलता है। यह कभी नहीं दिखाते की इस नेता ने इस गांव के विकास के लिए इतने रुपए दिए और यह काम जब तक हो जाएगा! समय लगता है लेकिन जीवन भर का समय नहीं? आज लोगो को सच्चाई को खोजना पड़ता है टीवी चैनलों पर अब भरोसा ना के बराबर रह गया है।

ग्रामीण पत्रकारों की ईमानदारी: टीवी मीडिया से ईमानदारी गायब हो रही है लेकिन ग्रामीण पत्रकारों में ईमानदारी का जज्बा कायम है। ग्रामीण पत्रकार किसी छोटे अखबार का न्यूज पोर्टल के लिए काम करते है तो वो सच्चाई लिखते है। गांव की राजनीति उन नेताओं के लिए उस सच्चाई को दबा देती है और उन पत्रकारों पर दवाब डालने लगते है लेकिन सच्चाई के लिए काम करने वाला पत्रकार उनसे भय नहीं खाता है, उनको दबाने की पूरी कोशिश की जाती है धमकाया भी जाता है ऐसे अनेकों उपाय उसको रोकने के लिए किए जाते है।

गुंडागर्दी का बोलबाला: भारत की राजनीति में गुंडागर्दी का बोलबाला है देश में हर दिन किसी ना किसी पत्रकार को जान से मारने की धमकी मिलती ही रहती है और उसकी बजह होती है कि उसने किसी काले कारनामे को उजागर किया है। इनमे अधिकतर गांव के ही पत्रकार होते है जिनको धमकी मिलती है और कई पत्रकारों को जान से मार भी दिया जाता है पुलिस प्रशासन कुछ नहीं करता क्योंकि उसे तो नेताजी ने मरवाया है।

न्याय मिलना कठिन है : भारत में न्याय की प्रक्रिया बहुत धीरे है और न्याय मिलने में कितने बर्ष लग जाए कहना कठिन है। भारत में लोग कहते है “क्यों कोर्ट के चक्कर में पड़ रहा है बर्षो तक कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ेंगे, खेती और घर बिक जाएगा “गरीब लोग इस अन्याय की चक्की में पिसते रहते है और न्यायपालिका के दरवाजे तक नहीं पहुंच पाते है। यह हम ही नहीं बल्कि भारत के कई पूर्व न्यायाधीश भी कह चुके है, इसीलिए भारत में एक ग्रामीण पत्रकार को न्याय मिलने की उम्मीद करना भी जुर्म है।

भारत में अनेकों उदाहरण है जिनको न्याय नहीं मिला और वकीलों और कोर्ट के चक्कर में जमीन और घर तक बिक गए। कोर्ट में बर्षो से लाखों मामले लंबित है और गांव के एक छोटे से पत्रकार के पास अकूत संपत्ति तो नहीं हो सकती, जिससे वह न्याय की उम्मीद करें।

अगर आपके पास अकूत धन वैभव है तो न्याय भी आपके पक्ष में ही होगा, कमजोर व्यक्ति भारत में न्याय की उम्मीद नहीं करता है

Jitendra Meena: Independent Journalist | Freelancers .
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